loader

कर्नाटक: कौन हैं लिंगायत, हिंदू धर्म से किस तरह अलग हैं इनकी मान्यताएं

कर्नाटक में बीएस येदियुप्पा की जगह अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, यह तय करने में बीजेपी हाईकमान से लेकर संघ परिवार तक के पसीने छूट गये। इस दौरान एक बार फिर कर्नाटक का लिंगायत समुदाय जोरदार ढंग से चर्चा में आया। क्योंकि इस समुदाय ने बीजेपी हाईकमान को चेताया था कि वह बीएस येदियुरप्पा से इस्तीफ़ा न ले। 

कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन के लिए पिछले डेढ़ साल से मशक्कत की जा रही थी लेकिन बीजेपी हाईकमान और संघ परिवार के सामने मुश्किल बहुत बड़ी थी। 

यह मुश्किल थी लिंगायत समुदाय की नाराज़गी का डर। यह माना जा रहा था कि लिंगायत संतों की नाराज़गी को देखते हुए बीजेपी येदियुरप्पा की पसंद को नज़रअंदाज नहीं करेगी और आख़िरकार उसने ऐसा ही किया। 

ताज़ा ख़बरें

येदियुरप्पा के भरोसेमंद माने जाने वाले बसवराज बोम्मई को कर्नाटक का नया मुख्यमंत्री बनाया गया है। येदियुरप्पा को लिंगायत समुदाय का सबसे प्रभावशाली नेता माना जाता है। 

यह साफ है कि कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की क्या राजनीतिक हैसियत है। लेकिन यहां हम जानेंगे कि लिंगायत समुदाय के लोगों की मान्यताएं क्या हैं और ये हिंदू धर्म से किस तरह अलग हैं। 

कौन हैं लिंगायत और वीरशैव? 

लिंगायत 12वीं सदी के समाज सुधारक बसवन्ना के अनुयायी माने जाते हैं। ये उनके वचनों को मानते हैं जबकि वीरशैव समुदाय का कहना है कि वे बसवन्ना के आने से पहले से हैं यानी लिंगायत समुदाय की मान्यताएं पहले से ही प्रचलित थीं। वीरशैव को लिंगायतों का एक उप-संप्रदाय माना जाता है। 

What is Lingayat sect  - Satya Hindi
बसवन्ना

ब्राह्मणवादी व्यवस्थाओं पर चोट

बसवन्ना ने ब्राह्मणवादी आधिपत्य के ख़िलाफ़ एक मज़बूत आध्यात्मिक, सामाजिक और धार्मिक आंदोलन छेड़ा था और यह सिद्धांत दिया था कि कर्म ही पूजा है। उन्होंने महिलाओं को बराबर का दर्जा दिया था। लिंगायतों ने 12 वीं सदी में हिंदू धर्म में प्रचलित ग़लत बातों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी और इस धर्म की कई परम्पराओं को मानने से इनकार कर दिया था। 

उस दौरान कर्नाटक में ब्राह्मणवादी हिंदू मान्यताओं का बोलबाला था और समाज जाति व्यवस्था पर आधारित था। वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं और कर्नाटक के बाहर भी कुछ राज्यों में इनकी आबादी है। हालांकि लिंगायत भी भगवान शिव की पूजा करते हैं लेकिन वे हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था और जनेऊ पहनने जैसी मान्यताओं का विरोध करते हैं। 

बसवन्ना ने मनुष्यों की आज़ादी, समानता, तर्कशक्ति और भाईचारे पर जोर दिया था। उनके अनुयायियों ने उनके वचनों का प्रचार किया और जाति व्यवस्था पर जोरदार चोट की थी। बसवन्ना ने हिंदू धर्म के ग्रंथों और वेदों को भी पूरे तरीक़े से खारिज किया था। 

कुछ लोग यह मानते हैं कि लिंगायत और वीरशैव एक ही हैं लेकिन इतिहास में दर्ज कुछ बातें इसे ग़लत बताती हैं। 

इतिहासकार मनु देवादेवन के मुताबिक़, वीरशैव इस बात का दावा करते हैं कि बसवन्ना ने लिंगायत समुदाय और इसकी मान्यताओं की स्थापना नहीं की थी और वह सिर्फ़ सुधारक थे जबकि लिंगायत समुदाय की मान्यताएं पहले ही प्रचलित थीं और इन्हें वीरशैववाद कहकर पुकारा जाता था।

वीरशैव ख़ुद के शिवलिंग से पौराणिक उत्पत्ति होने का दावा करते हैं और यह बात ब्राह्मणवादी व्यवस्था में प्रचलित बातों से मिलती-जुलती है जबकि बसवन्ना ने सभी ब्राह्मणवादी बातों का विरोध किया था, इसलिए इन दोनों समुदायों को अलग भी माना जाता है। इसके अलावा वीरशैव जाति व्यवस्था को भी मानते हैं जबकि लिंगायत इसके पूरी तरह ख़िलाफ़ हैं। 

कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की आबादी 17 फ़ीसदी है। 224 सीटों वाले कर्नाटक में इस समुदाय का असर 90-100 विधानसभा सीटों पर है। कर्नाटक में इस समुदाय के 500 मठ हैं। 

लिंगायत समुदाय की मान्यताओं को मानने वालों में निवर्तमान मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के साथ ही पत्रकार गौरी लंकेश और तर्कवादी एमएम कलबुर्गी शामिल थे। गौरी लंकेश और एमएम कलबुर्गी की हत्या कर दी गई थी। 

कर्नाटक से और ख़बरें

धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा 

साल 2018 में कर्नाटक में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने केंद्र सरकार से इस बात की सिफ़ारिश की थी कि वह लिंगायतों और वीरशैव-लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दे। बीजेपी ने इसे हिंदुओं का बांटने वाला क़दम बताकर इसका विरोध किया था। 

लेकिन केंद्र सरकार ने इस मामले में कर्नाटक हाई कोर्ट को दिए गए जवाब में कहा था कि उसने कर्नाटक सरकार की इस सिफ़ारिश को रद्द कर दिया है। केंद्र का कहना था कि ये दोनों समुदाय हिंदू धर्म का हिस्सा हैं और ये ख़ुद से अपना अलग धर्म नहीं बना सकते। 

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

कर्नाटक से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें