कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मंगलवार को कहा कि उनके कैबिनेट सहयोगियों और अधिकारियों को अंग्रेजी के बजाय कन्नड़ में नोट्स तैयार करना शुरू करना चाहिए। उन्होंने राज्य में एक ऐसा माहौल बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है जहां रोजमर्रा के काम-काज में कन्नड़ का उपयोग स्वाभाविक और अपरिहार्य हो।
टाइम्स नॉउ की एक रिपोर्ट के मुताबिक मंगलवार को मुख्यमंत्री ने अफसोस जताया है कि राज्य के एकीकरण के 67 साल बाद भी कन्नड़ को आधिकारिक भाषा के रूप में इस्तेमाल करने के लिए कोई अनुकूल माहौल नहीं है।
उन्होंने कहा है कि कर्नाटक में रहने वाले हर व्यक्ति को कन्नड़ बोलना भी सीखना चाहिए। तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना या उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में स्थानीय भाषा सीखे बिना सिर्फ कन्नड़ बोलकर गुजारा करना नामुमकिन है। लेकिन आप कन्नड़ न बोलते हुए भी कर्नाटक में रह सकते हैं। हमारे राज्य और अन्य राज्यों के बीच यही अंतर है। उन्होंने कहा कि इसे बदलना चाहिए।
सिद्धारमैया ने 1 नवंबर, 1973 को मैसूर राज्य का नाम बदलकर कर्नाटक करने की स्वर्ण जयंती मनाने के लिए 'कर्नाटक संभ्रम-50' के प्रतीक का अनावरण करने के बाद यह टिप्पणी की है।
उन्होंने कन्नड़ को प्रशासनिक भाषा के रूप में इस्तेमाल नहीं किए जाने पर कहा कि मेरे कई मंत्री और खासकर अधिकारी फाइलों में अंग्रेजी में ही नोट लिखते हैं। केंद्र और अन्य राज्यों को लिखते समय अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन लेकिन राज्य के भीतर उन्हें संचार के लिए कन्नड़ का उपयोग करना होगा।
उन्होंने कहा कि, हालांकि कन्नड़ कई दशकों से आधिकारिक भाषा रही है, लेकिन प्रशासन में कन्नड़ को लागू न करने के पीछे लापरवाही भी कारण हो सकती है। इसके अलावा, अंग्रेजी के प्रति हमारी दीवानगी बढ़ी है।
इस रवैये ने कन्नड़ को नुकसान पहुंचाया
टाइम्स नॉउ की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिद्धारमैया ने कहा, कि इस स्थिति को बदलने की जरूरत है। कर्नाटक संभ्रम 1 नवंबर, 2023 से एक साल के लिए मनाया जाएगा। इससे लोगों में कन्नड़ के बारे में जागरूकता पैदा करने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, कि हम कन्नड़ लोग उदार लोग हैं क्योंकि हम अन्य भाषा बोलने वालों को कन्नड़ सिखाने के बजाय अन्य भाषाएं सीखते हैं। इस रवैये ने कन्नड़ को फायदे से ज्यादा नुकसान पहुंचाया है।
उन्होंने कहा कि गैर-कन्नडिगा लोग जिन्होंने कर्नाटक को अपना घर बनाया है, उन्हें कन्नड़ बोलना सीखना चाहिए। अगर आप कन्नड़ नहीं बोलते हैं तो भी आप कर्नाटक में रह सकते हैं। हमारे राज्य और अन्य राज्यों के बीच यही अंतर है।
सिद्धारमैया के इस बयान के बाद दो तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। पहली प्रतिक्रिया कन्नड़ भाषियों की है जो उनके इस बयान का समर्थन कर रहे हैं। ऐसे लोगों का कहना है कि कन्नड़ भाषा के संरक्षण और इसको बढ़ावा देने के लिए उन्होंने बेहतर पहल की है।
वहीं एक तबका मान रहा है कि इस तरह के बयानों से राज्य में बड़ी संख्या में रहने वाले गैर कन्नड़ भाषियों को परेशानी होगी। राज्य में भाषा के नाम पर टकराव बढ़ सकता है। कन्नड़ को लेकर सिद्धारमैया की इन टिप्पणियों का क्या असर कर्नाटक की राजनीति में होगा यह आने वाला समय ही बतायेगा।
पहले भी कन्नड़ सीखने की बात कह चुके हैं
सिद्धारमैयाकर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पहले भी समय-समय पर कन्नड़ भाषा को सीखने और इसका अधिक से अधिक उपयोग राज्य में करने की बात कह चुके हैं। 1 नवंबर 2017 को जब वे मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने कहा था कि कर्नाटक में रहने वाले लोगों को कन्नड़ सीखनी चाहिए।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया था कि क्षेत्रीय भाषा नहीं जानने का मतलब इसका अनादर करना होगा। सिद्धारमैया ने कहा, था कि कर्नाटक में रहने वाला हर व्यक्ति कन्नड़ है। जो भी कर्नाटक में रहता है उसे कन्नड़ सीखना चाहिए और अपने बच्चों को भी इसे सिखाना चाहिए। आप भाषा का अनादर कर रहे हैं।
उन्होंने कन्नड़ लोगों से अपने राज्य की भाषा के प्रति अधिक स्नेही होने की बात भी तब कही थी। 2017 में भी उन्होंने कन्नड़ भाषा के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हुए कन्नड़ सीखने के लिए माहौल बनाने की दिशा में प्रयास करने का आह्वान किया था।
तब कहा था कि राज्य के सभी स्कूलों में कन्नड़ पढ़ाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा था कि कर्नाटक पिछले 60 वर्षों में कन्नड़ को प्राथमिकता बनाने में सफल नहीं हुआ।
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