कर्नाटक में लिंगायत मठ के मुख्य पुजारी शिवमूर्ति शरणारू को यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। उन पर हाई स्कूल में पढ़ने वाली दो नाबालिग छात्राओं ने यौन शोषण का आरोप लगाया है। लेकिन सवाल यह है कि छात्राओं द्वारा आरोप लगाए जाने के बाद भी मठ के मुख्य पुजारी की गिरफ्तारी में एक सप्ताह का वक्त क्यों लग गया?
इस सवाल का जवाब यह है कि लिंगायत समुदाय कर्नाटक में प्रभावशाली समुदाय है इसलिए मठ के मुख्य पुजारी की गिरफ्तारी को लेकर राजनीतिक दलों ने भी चुप्पी साधे रखी।
लेकिन कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की राजनीतिक ताकत कितनी है और लिंगायत समुदाय के लोगों की मान्यताएं क्या हैं और ये हिंदू धर्म से किस तरह अलग हैं, इस बारे में जानना जरूरी है। पहले बात करेंगे लिंगायत समुदाय की मान्यताओं के बारे में।
लिंगायत और वीरशैव कौन हैं?
लिंगायत 12वीं सदी के समाज सुधारक बसवन्ना के अनुयायी माने जाते हैं। लिंगायत उनके वचनों को मानते हैं जबकि वीरशैव समुदाय का कहना है कि वे बसवन्ना के आने से पहले से हैं। उनके मुताबिक, लिंगायत समुदाय की मान्यताएं पहले से ही प्रचलित थीं। वीरशैव को लिंगायतों का एक उप-संप्रदाय माना जाता है।
ब्राह्मणवादी व्यवस्थाओं पर की चोट
बसवन्ना ने ब्राह्मणवादी आधिपत्य के ख़िलाफ़ एक मज़बूत आध्यात्मिक, सामाजिक और धार्मिक आंदोलन छेड़ा था और यह सिद्धांत दिया था कि कर्म ही पूजा है। उन्होंने महिलाओं को बराबर का दर्जा दिया था। लिंगायतों ने 12 वीं सदी में हिंदू धर्म में प्रचलित कुरीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी और इस धर्म की कई परम्पराओं को मानने से इनकार कर दिया था।
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उस दौरान कर्नाटक में ब्राह्मणवादी हिंदू मान्यताओं का बोलबाला था और समाज जाति व्यवस्था पर आधारित था। वीरशैव भगवान शिव की पूजा करते हैं और कर्नाटक के बाहर भी कुछ राज्यों में इनकी आबादी है। हालांकि लिंगायत भी भगवान शिव की पूजा करते हैं लेकिन वे हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था और जनेऊ पहनने जैसी मान्यताओं का विरोध करते हैं।
बसवन्ना ने मनुष्यों की आज़ादी, समानता, तर्कशक्ति और भाईचारे पर जोर दिया था। उनके अनुयायियों ने उनके वचनों का प्रचार किया और जाति व्यवस्था पर जोरदार चोट की थी। बसवन्ना ने हिंदू धर्म के ग्रंथों और वेदों को भी पूरे तरीक़े से खारिज किया था।
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कुछ लोग यह मानते हैं कि लिंगायत और वीरशैव एक ही हैं लेकिन इतिहास में दर्ज कुछ बातें इसे ग़लत बताती हैं।
इतिहासकार मनु देवादेवन के मुताबिक़, वीरशैव इस बात का दावा करते हैं कि बसवन्ना ने लिंगायत समुदाय और इसकी मान्यताओं की स्थापना नहीं की थी और वह सिर्फ़ सुधारक थे जबकि लिंगायत समुदाय की मान्यताएं पहले ही प्रचलित थीं और इन्हें वीरशैववाद कहकर पुकारा जाता था।
वीरशैव ख़ुद के शिवलिंग से पौराणिक उत्पत्ति होने का दावा करते हैं और यह बात ब्राह्मणवादी व्यवस्था में प्रचलित बातों से मिलती-जुलती है जबकि बसवन्ना ने सभी ब्राह्मणवादी बातों का विरोध किया था, इसलिए इन दोनों समुदायों को अलग भी माना जाता है। इसके अलावा वीरशैव जाति व्यवस्था को भी मानते हैं जबकि लिंगायत इसके पूरी तरह ख़िलाफ़ हैं।
राजनीतिक ताकत
कर्नाटक में लिंगायत समुदाय की आबादी 17 फ़ीसदी है। 224 सीटों वाले कर्नाटक में इस समुदाय का असर 90-100 विधानसभा सीटों पर है। कर्नाटक में इस समुदाय के 500 मठ हैं। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा भी लिंगायत समुदाय से आते हैं। कर्नाटक में पिछले साल हुए नेतृत्व परिवर्तन के लिए बीजेपी हाईकमान और संघ परिवार को लिंगायत समुदाय की नाराजगी का डर था इसलिए येदियुप्पा को हटाने में पार्टी को लंबा वक्त लग गया था।
तमाम बड़े नेता लिंगायत समुदाय के मठों में जाते रहे हैं और कुछ दिन पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी लिंगायत समुदाय के मठ में गए थे और वहां जाकर दीक्षा ली थी।
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धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा
साल 2018 में कर्नाटक में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने केंद्र सरकार से इस बात की सिफ़ारिश की थी कि वह लिंगायतों और वीरशैव-लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा दे। बीजेपी ने इसे हिंदुओं का बांटने वाला क़दम बताकर इसका विरोध किया था।
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