कर्नाटक के मंदिरों में अब 'सलाम आरती' की जगह 'संध्या आरती' होगी। हिंदू मंदिरों की देखरेख करने वाले राज्य के सर्वोच्च निकाय ने इस मामले में एक प्रस्ताव को शनिवार को मंजूरी दे दी है। क़रीब सात महीने पहले इस प्रस्ताव की सिफारिश की गई थी। इसमें आरती के नाम में आने वाले फारसी शब्द को बदलकर संस्कृत शब्द से रखने की बात कही गयी थी।
यह सिफारिश इसलिए की गई थी क्योंकि कुछ लोगों ने सदियों पहले से चली आ रही आरती के उस नाम को लेकर आपत्ति की थी। कहा जाता है कि उस आरती के नाम से टीपू सुल्तान का कुछ जुड़ाव था। तब यह मामला एक मंदिर का था। कई हिंदू संगठनों के विरोध के बाद राज्य के मंड्या में मेलुकोटे चेलुवनारायण स्वामी मंदिर की 'सलाम आरती' का नाम 'संध्या आरती' करने की सिफारिश जिला प्रशासन ने की थी। सलाम आरती को सदियों से 'देवतीगे सलाम' प्रथा के तौर पर जाना जाता रहा है।
ऐसा कहा जाता है कि टीपू सुल्तान के शासनकाल के दौरान मंदिर के पुजारियों ने पीठासीन देवता की 'देवतीगे सलाम' के नाम से प्रथा रोजाना शाम 7 बजे शुरू की थी। जानकार और राज्य धार्मिक परिषद के सदस्य काशेकोडी सूर्यनारायण भट ने पहले कहा था कि ये नाम टीपू के शासनकाल के दौरान हिंदू मंदिरों पर 'थोपे गए' थे। उन्होंने तब यह भी संकेत दिया था कि 'सलाम शब्द हमारा नहीं है'।
इसी मामले में शनिवार को संध्या आरती की मंजूरी दी गई। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार इस क़दम के बाद राज्य के हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (मुजरई) जल्द ही सीएम बसवराज बोम्मई, मुजरई मंत्री से अंतिम मंजूरी मिलने के बाद आधिकारिक आदेश जारी करेंगे। इससे न केवल मेलुकोटे में बल्कि कर्नाटक के सभी मंदिरों में 'आरती' का नाम बदलने पर मुहर लग जाएगी।
तब जिला कलेक्टर ने पांडवपुरा सहायक आयुक्त और मंदिर कार्यपालक अधिकारी से रिपोर्ट मांगी थी। रिपोर्ट में दावा किया गया था कि दोनों अधिकारियों ने आरती का नाम बदलने के प्रस्ताव का समर्थन किया। हालाँकि तब मुजरई विभाग ने अभी इस पर आदेश जारी नहीं किया था।
इससे पहले विश्व हिंदू परिषद यानी विहिप ने भी कर्नाटक के ही एक अन्य मंदिर में ऐसी ही प्रथा का नाम बदलने की मांग की थी। विहिप ने कहा था कि कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर से देवतीगे सलाम को समाप्त किया जाए, क्योंकि यह मंदिर में टीपू सुल्तान को याद करने की एक रस्म है।
वैसे, टीपू सुल्तान को लेकर बीजेपी बार-बार मुद्दा उठाती रही है और इस वजह से इस पर विवाद भी होता रहा है। राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने 2019 में माध्यमिक स्कूलों के इतिहास की किताब से टीपू सुल्तान के पाठ को हटाने की बात की थी तो इस पर काफी विवाद हुआ था। कर्नाटक में सत्ता में आने के तुरंत बाद जुलाई में बीजेपी सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती समारोह को ख़त्म कर दिया था। यह एक वार्षिक सरकारी कार्यक्रम था जिसको सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू किया गया था। इसका 2015 से ही बीजेपी विरोध कर रही थी।
टीपू सुल्तान को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का दुश्मन माना जाता था। श्रीरंगपटना में अपने क़िले का बचाव करते समय ब्रिटिश सेना से लड़ाई के दौरान मई, 1799 में उनकी हत्या कर दी गई थी।
कई इतिहासकार टीपू को एक धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक शासक के रूप में देखते हैं जिसने अंग्रेज़ों की ताक़त को चुनौती दी थी। टीपू एक राजा थे और किसी भी मध्ययुगीन राजा की तरह उन्होंने बग़ावत करने वाली प्रजा का मनोबल तोड़ने के लिये अत्याचार किया। मध्य युग के राजाओं का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है।
इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जो ये साबित करते हैं कि टीपू सुल्तान ने हिंदुओं की मदद की। उनके मंदिरों का जीर्णोंद्धार करवाया। उसके दरबार में लगभग सारे उच्च अधिकारी हिंदू ब्राह्मण थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है- श्रंगेरी के मठ का पुनर्निर्माण।
1790 के आसपास मराठा सेना ने इस मठ को तहस-नहस कर दिया था। मठ के स्वामी सच्चिदानंद भारती तृतीय ने तब मैसूर के राजा टीपू सुल्तान से मदद की गुहार लगायी थी। दोनों के बीच तक़रीबन तीस चिट्ठियों का आदान-प्रदान हुआ था। ये पत्र आज भी श्रंगेरी मठ के संग्रहालय में पड़े हैं। टीपू ने एक चिट्ठी में स्वामी को लिखा- “जिन लोगों ने इस पवित्र स्थान के साथ पाप किया है उन्हें जल्दी ही अपने कुकर्मों की सजा मिलेगी। गुरुओं के साथ विश्वासघात का नतीजा यह होगा कि उनका पूरा परिवार बर्बाद हो जायेगा।'
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