एक लंबी चलने वाली लड़ाई के पहले दौर को अकेले आदमी ने आज जीतकर दिखा दिया है ! क्या आप अब भी इस तिरपन साल के ‘नौजवान’ को कोई बधाई या शाबाशी नहीं देना चाहेंगे ? उसकी हिम्मत की दाद नहीं देंगे ? उसकी तरफ़ एक बार भी जी भरकर नहीं देखेंगे ? उसकी आँखों में आँखें डालकर मुस्कुराएँगे नहीं ? उससे उसके घुटने के बारे में कुछ भी नहीं पूछेंगे कि अब दर्द और कितना बचा है ? वही घुटना जिसमें उसकी ऐतिहासिक यात्रा के वक्त चलते-चलते पीड़ा का ज्वालामुखी फूट पड़ता था ! जिसके कदम कड़कती ठंड, गर्मी और बरसात में भी नहीं रुकते थे ! जिसने सड़क को ही अपना घर और आकाश को छत बना लिया था !