इस फैसले के बाद बीजेपी सरकार राजनीतिक रूप से शक्तिशाली समुदायों को से वोट की उम्मीद कर रही है। दोनों समुदाय अपने कोटा में बढ़ोतरी चाहते थे। सरकार पर विशेष रूप से लिंगायतों के मजबूत उप-संप्रदाय पंचमसालियों का दबाव था। यानी आसान शब्दों में कहें तो पंचमसालियों को खुश करने के लिए सरकार ने यह फैसला लिया है। अब यह अलग बात है कि वो लोग इस फैसले से कितना खुश होते हैं और कितना वोट देते हैं।
इस सरकारी फैसले ने कर्नाटक में आरक्षण प्रतिशत को भी बढ़ा दिया है, जो पहले से ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाए गए 50 फीसदी की सीमा से अधिक है। यह अब लगभग 57 फीसदी है। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने पहले से ही कह रखा है कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं होना चाहिए।
बोम्मई ने समझाया- "धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण के लिए संविधान के तहत कोई प्रावधान नहीं है। यह किसी भी राज्य में नहीं है। आंध्र प्रदेश में, अदालत ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षण को रद्द कर दिया। यहां तक कि बीआर अंबेडकर ने भी स्पष्ट रूप से कहा कि आरक्षण जातियों के लिए है।
बोम्मई ने कहा- जल्द या बाद में, कोई धार्मिक अल्पसंख्यकों के आरक्षण को चुनौती दे सकता था। इसलिए, सरकार ने निर्णय लिया है। ओबीसी आरक्षण का लाभ उठाने के लिए आर्थिक मानदंड हैं, यहां तक कि अल्पसंख्यकों के लिए भी यह है। हम मुस्लिमों को 4 प्रतिशत पूल से 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटे की ओर ले जा रहे हैं, जहां वही आर्थिक मानदंड जारी रहेगा। बोम्मई ने साफ किया कि सभी समुदायों के गरीब जो एससी, एसटी या ओबीसी नहीं हैं, ईडब्ल्यूएस कोटा के तहत फायदा प्राप्त करेंगे। सीएम ने कहा कि सरकार जल्द ही ईडब्ल्यूएस कोटे के कार्यान्वयन को अधिसूचित करेगी।
10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस कोटा के तहत, मुसलमानों के साथ-साथ ब्राह्मणों, जैनियों, आर्य वैश्यों, नागरथों और मुदलियारों को लाभ होने की उम्मीद है। बोम्मई ने कहा - यदि आप इसे आशावादी होकर देखें तो मुसलमान अब 10 प्रतिशत आरक्षण के बड़े पूल के तहत फा.दा प्राप्त करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ मुसलमान कैटेगरी 1 और कैटेगरी 2ए के अंतर्गत भी आते हैं, जिन्हें लाभ मिलता रहेगा। हालांकि बोम्मई की यह सफाई कोई मायने नहीं रखती क्योंकि कर्नाटक में हाशिए पर पड़े मुसलमानों को पहले भी कोटे का बहुत फायदा नहीं मिल पा रहा था।
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