केंद्रीय चुनाव आयोग ने कर्नाटक भाजपा के विवादित वीडियो को हटाने का आदेश सोशल मीडिया साइट एक्स (ट्विटर) को दिया है। इस एनिमेटेड वीडियो में मुस्लिम समुदाय के लिए आरक्षण पर जारी विवाद को मुद्दा बनाया गया है लेकिन वीडियो मुस्लिम समुदाय और कांग्रेस को आपत्तिजनक रूप से पेश करता है। चुनाव आयोग ने इस बात पर आपत्ति जताई कि जब कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इसे हटाने का निर्देश दिया था, लेकिन उनके आदेश का पालन नहीं किया गया। जब यह रिपोर्ट लिखी जा रही है तो उस समय भी यह वीडियो एक्स पर मौजूद था। अगर आपको क्लिक करने पर वीडियो नहीं मिलता है तो शायद बाद में एक्स इसे हटा ले।
ಎಚ್ಚರ.. ಎಚ್ಚರ.. ಎಚ್ಚರ..! pic.twitter.com/Pr75QHf4lI
— BJP Karnataka (@BJP4Karnataka) May 4, 2024
केंद्रीय चुनाव आयोग ने मंगलवार शाम को कहा कि कर्नाटक भाजपा का सोशल मीडिया पर साझा किया गया एनिमेटेड वीडियो मौजूदा कानूनी ढांचे का उल्लंघन है। कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने इस संबंध में एक एफआईआर दर्ज कराई और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और आईटी (डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 प्रावधानों के अनुसार आपत्तिजनक पोस्ट को हटाने के लिए 5 मई को 'एक्स' को लिखा था। हालांकि, पोस्ट अभी तक नहीं हटाई गई है। इसलिए, 'एक्स' को तुरंत पोस्ट हटाने का निर्देश दिया जाता है।"
क्या है वीडियो मेंः वीडियो में एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को स्पष्ट रूप से आरक्षण की टोकरी में "अंडे" के रूप में दिखाया गया है। वीडियो में राहुल गांधी के एक एनिमेटेड चरित्र को आरक्षण टोकरी में मुस्लिम समुदाय का एक और "अंडा" डालते हुए दिखाया गया है। इसमें कांग्रेस नेताओं को उनके मुंह में अधिक फंड डालकर एससी, एसटी और ओबीसी के मुकाबले मुस्लिम समुदाय का पक्ष लेते हुए दिखाया गया है। रमेश बाबू ने कहा, "उस वीडियो में, ऐसे पेश किया गया है जैसे कि मुस्लिम समुदाय के मुंह में राहुल पैसे डाल रहे हैं और मुस्लिम समुदाय एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय को बाहर निकाल देता है।"
कांग्रेस नेता रमेश बाबू ने शिकायत में कहा था- “यह वीडियो न सिर्फ आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है बल्कि एससी/एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत अपराध भी है। कांग्रेस नेता ने चिंता व्यक्त की कि इस तरह की कार्रवाइयों से समुदायों के बीच नफरत और दुर्भावना भड़क सकती है। यह वीडियो...एससी/एसटी समुदाय को कांग्रेस को वोट न देने के लिए डराने के अलावा और कुछ नहीं है। यह एससी/एसटी समुदाय के सदस्यों को डराने-धमकाने और एससी/एसटी समुदाय के लोगों को "अंडे" के रूप में दिखाकर उनकी छवि खराब करने का स्पष्ट मामला है।“
पहला मामला नहींः 30 अप्रैल को भी भाजपा ने इंस्टाग्राम सहित तमाम सोशल मीडिया पर एक एनिमेटेड वीडियो डाला था, जिसमें मोदी के राष्ट्र को बचाने के लिए आने से पहले, मध्ययुगीन भारत पर हमला करने और उसकी संपत्ति लूटने वाले हिंसक और लालची मुस्लिम पुरुष हमलावरों का रूढ़िवादी चित्रण दिखाया गया था। वीडियो में बताया गया अगर कांग्रेस चुनी गई तो वह हिंदू धन और संपत्ति को मुसलमानों के बीच बांट देगी। इस वीडियो के खिलाफ तमाम नागरिक संगठनों ने ऐतराज जताया। केंद्रीय चुनाव आयोग से शिकायत की गई। अदालत में जाने की धमकी दी गई। भाजपा ने सोशल मीडिया से अगले दिन इस एनिमेटेड वीडियो को चुपचाप हटा लिया।
नफरत किसी भी रूप में फैलाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देश हैं। 2023 में तो सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि अगर किसी जगह साम्प्रदायिक भाषण से माहौल बिगाड़ा जाता है तो वहां के डीएम और एसपी इसके जिम्मेदार होंगे। उन्हें ऐसे लोगों के खिलाफ फौरन कोई कार्रवाई करना होगी। लेकिन चुनाव 2024 के दौरान जब सबसे ज्यादा हेट स्पीच हो रही है तो चुनाव आयोग चुप बैठा है। आदर्श आचार संहिता राजनेताओं को ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल होने से रोकती है जो मौजूदा मतभेदों को बढ़ा सकती है या आपसी नफरत पैदा कर सकती है। आचार संहिता के पहले ही पैराग्राफ में लिखा है, "कोई भी पार्टी या उम्मीदवार ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होगा जो मौजूदा मतभेदों को बढ़ा सकता है, या आपसी नफरत पैदा कर सकता है या विभिन्न जातियों और समुदायों, धार्मिक या भाषाई के बीच तनाव पैदा कर सकता है।"
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