कर्नाटक में सियासी नाटक जारी है। राज्यपाल वजुभाई वाला की ओर से शुक्रवार को दो बार दी गई समयसीमा में भी फ़्लोर टेस्ट नहीं हुआ। इसके बाद देर शाम सदन को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया। उधर, सियासी संकट को हल न होता देख कांग्रेस-जेडीएस ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। अब सभी की निगाहें राज्यपाल वजुभाई वाला के अगले क़दम पर टिकी हुई हैं।
बता दें कि शुक्रवार को राज्यपाल वजुभाई वाला ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को एक और चिट्ठी लिखकर शुक्रवार शाम 6 बजे से पहले विश्वास मत हासिल करने के लिए कहा था। लेकिन यह समयसीमा ख़त्म हो गई और फ़्लोर टेस्ट नहीं हुआ। इससे पहले भी राज्यपाल ने शुक्रवार दोपहर 1.30 बजे तक का वक्त दिया था, लेकिन तब भी सदन में फ़्लोर टेस्ट नहीं हुआ था।
सियासी संकट का हल न होते देख कर्नाटक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव ने दोबारा सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है। दिनेश गुंडू राव ने अदालत में याचिका दायर कर कहा है कि कोर्ट के पिछले आदेश से उनकी पार्टी के अधिकारों का हनन हुआ है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में विधायकों को व्हिप से छूट दे दी थी। कांग्रेस का कहना है कि उसके पास यह अधिकार है कि वह पार्टी विधायकों को व्हिप जारी कर सकती है और जब सदन चल रहा हो तो राज्पाल किसी तरह के निर्देश नहीं दे सकते या डेडलाइन नहीं जारी कर सकते हैं। पार्टी का कहना है कि अभी फ़्लोर टेस्ट की ज़रूरत है। कुमारस्वामी ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राज्यपाल के आदेश को चुनौती दी है।
मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने बहस के दौरान शुक्रवार को विधानसभा में कहा, ‘फ़्लोर टेस्ट पर निर्णय करने का अधिकार मैं विधानसभा स्पीकर को सौंपता हूँ। यह दिल्ली से निर्देशित नहीं होगा। मैं प्रार्थना करता हूँ कि वह राज्यपाल की ओर से भेजी गई चिट्ठी से मेरी रक्षा करें।’
Siddaramaiah,Congress on trust vote debate in Karnataka assembly: The discussion is still not complete and 20 members are yet to participate.I don’t think it will finish today and it will continue on Monday also. (file pic) pic.twitter.com/pmCUng1GeL
— ANI (@ANI) July 19, 2019
बता दें कि गुरुवार को भी राज्यपाल ने विधानसभा के स्पीकर रमेश कुमार को पत्र लिखकर कहा था कि उसी दिन (गुरुवार को) विश्वास मत की प्रक्रिया को पूरा कर लिया जाए। लेकिन स्पीकर रमेश कुमार ने सदन को दिन भर के लिए स्थगित कर दिया था। इसके बाद बीजेपी के विधायक विधानसभा के भीतर ही रात भर के लिए धरने पर बैठ गए थे और उन्होंने सरकार से राज्यपाल के पत्र का जवाब देने और फ़्लोर टेस्ट कराने की माँग की थी।
बीजेपी फ़्लोर टेस्ट की माँग पर अड़ी हुई है। गुरुवार को सदन में पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने स्पीकर से कहा था कि भले ही रात के 12 बज जाएँ, मगर विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग गुरुवार को ही कराएँ। इस तरह कर्नाटक का यह सियासी ड्रामा गुरुवार दिन व रात भर चला था। शुक्रवार सुबह बीजेपी विधायकों की विधानसभा परिसर में मॉर्निंग वॉक पर जाने की तसवीरें भी सामने आईं थीं।
लेकिन कर्नाटक के सियासी संकट पर संवैधानिक स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है कि राज्यपाल स्पीकर को किसी भी तरह का आदेश या सलाह नहीं दे सकते। और संविधान के ही मुताबिक़, स्पीकर इस मामले में राज्यपाल की सलाह या आदेश मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। तो फिर ऐसी स्थिति में क्या होगा। अगर आज भी स्पीकर बाग़ी विधायकों के इस्तीफ़ों पर या उन्हें अयोग्य साबित करने को लेकर कोई फ़ैसला नहीं लेते, तो फिर क्या होगा। ऐसे में लगता है कि कांग्रेस-बीजेपी फिर से सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।
इससे पहले विधानसभा में विश्वास मत के दौरान कांग्रेस के संकटमोचक कहे जाने वाले डीके शिवकुमार की बीजेपी के विधायकों से जमकर बहस हुई थी। सभी की नज़रें इस पर टिकी हैं कि राज्य की कांग्रेस-जेडीएस सरकार बचेगी या जाएगी।
आंकड़ों के लिहाज से सरकार की गणित को समझें तो 224 सदस्यीय सदन में कर्नाटक-जेडीएस गठबंधन के पास स्पीकर को छोड़कर कुल 116 विधायक हैं। इसमें कांग्रेस के 78, जेडीएस के 37 और बीएसपी का 1 विधायक है। बहुमत के लिए 113 विधायकों का समर्थन ज़रूरी है लेकिन 16 विधायकों के इस्तीफे़ के बाद कांग्रेस-जेडीएस के पास विधायकों की संख्या घटकर 100 हो गई है। दो निर्दलीय विधायकों के समर्थन के साथ बीजेपी के विधायकों की संख्या 107 है। यह कहा जा सकता है कि सरकार बचेगी या जाएगी, यह अब बाग़ी विधायक ही तय करेंगे।
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