कर्नाटक में बीजेपी अपने धुरंधर बुजुर्ग बी एस येदियुरप्पा के आगे फिर से घुटने टेकती नजर आ रही है। बीजेपी ने जल्द होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी की बजाय येदियुरप्पा को अपना पोस्टर ब्वॉय बनाने का फैसला किया है। मोदी होंगे लेकिन येदियुरप्पा के साथ होंगे। अभी तक बीजेपी बहुत जोरशोर से पीएम मोदी को ही चुनावों में प्रोजेक्ट करती रही है लेकिन कर्नाटक में उसकी रणनीति बदलती हुई दिख रही है।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक येदियुरप्पा चुनावी राजनीति से पहले ही अपने रिटायरमेंट की घोषणा कर चुके हैं। लेकिन इस 80 वर्षीय बुजुर्ग को सत्ताधारी पार्टी के केंद्रीय नेताओं द्वारा पद पर बैठाने की मांग की जा रही है। चार बार के मुख्यमंत्री, जिन्होंने जमीनी स्तर से पार्टी को खड़ा किया, कर्नाटक के बड़े नेता माने जाते हैं, जिनके पास भीड़ है। मजबूत वोट बैंक है। राजनीतिक रूप से प्रभावशाली लिंगायत समुदाय से आने की वजह से येदियुरप्पा का प्रभाव राज्य की सियासत में बहुत ज्यादा है।
अब बीजेपी के प्रचार अभियान से साफ है कि पार्टी "येदियुरप्पा फैक्टर" पर निर्भर है। जो अपने रसूख का लाभ उठाकर पार्टी को जीत की मंजिल तक पहुंचा सकने का दम रखते हैं। बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व - पीएम नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी अध्यक्ष जे पी नड्डा और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह - ने हाल के दिनों में राज्य में अपनी जनसभाओं के दौरान येदियुरप्पा की प्रशंसा की।
येदियुरप्पा होने का अर्थः ऐसा कभी नहीं होता है कि पीएम के कार्यक्रम में कोई और सुर्खियों में छा जाए, लेकिन ऐसे ही एक मौके पर 27 फरवरी को शिवमोग्गा में एक जनसभा में, ऐसा लगा कि मोदी खुद कर्नाटक बीजेपी के कद्दावर नेता येदियुरप्पा को अपनी "गौरवशाली जगह" दे रहे हैं। येदियुरप्पा के 80वें जन्मदिन के अवसर पर शिवमोग्गा हवाई अड्डे के उद्घाटन के अवसर पर हाल ही में हुई जनसभा में मोदी ने सार्वजनिक जीवन में उनके योगदान को 'प्रेरणादायक' करार दिया। पीएम ने मंच पर उनका अभिनंदन किया। मोदी ने जनसभा में शामिल होने वाले लोगों से येदियुरप्पा के सम्मान में अपने मोबाइल फोन की लाइट फ्लैश करने की अपील की और उस रैली से उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिली।
फिर उसी रैली में जैसे ही लिंगायत नेता ने अपना भाषण खत्म किया, मोदी खड़े हुए और उनकी तारीफ की। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा में येदियुरप्पा द्वारा दिए गए अंतिम भाषण का पीएम ने बार-बार जिक्र किया और कहा कि वो सार्वजनिक जीवन में हर व्यक्ति के लिए एक प्रेरणा हैं।
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अमित शाह ने भी हाल ही में एक जनसभा में लोगों से पीएम मोदी और येदियुरप्पा में विश्वास जताने और राज्य में बीजेपी को सत्ता में वापस लाने का आग्रह किया था। इसी तरह की टिप्पणी नड्डा और राजनाथ सिंह ने की है, जो हाल ही में चुनाव प्रचार के लिए राज्य में थे।
कुछ राजनीतिक पर्यवेक्षकों और बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, येदियुरप्पा को प्रोजेक्ट करने के लिए पार्टी के कदम का मकसद एंटी-इनकंबेंसी को कम करना, लिंगायत वोट-आधार को बरकरार रखना और विपक्षी कांग्रेस का मुकाबला करना है, जिसने सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं।
लिंगायतों के वोट का सवाल
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के राजनीतिक विश्लेषक ए नारायण ने कहा कि बीजेपी शुरुआत में येदियुरप्पा के बिना चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही थी, लेकिन पार्टी के लिए स्थानीय स्तर पर भरोसा देने के लिए बहुत कुछ नहीं था। यही वजह है कि बीजेपी जोखिम लेने को तैयार नहीं है। येदियुरप्पा ने 26 जुलाई, 2021 को सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। उस समय उनकी उम्र को एक वजह मानी गई। क्योंकि बीजेपी में 75 साल से ऊपर के लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व विधानसभा चुनावों से पहले नए नेतृत्व के लिए रास्ता बनाना चाहता था। 2018 के चुनाव प्रचार के विपरीत बीजेपी इस बार सामूहिक नेतृत्व के रूप में पार्टी को पेश करना चाहता था। जबकि 2018 में येदियुरप्पा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार और पार्टी का चेहरा थे। पार्टी ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व को प्रोजेक्ट करने की कोशिश की। नारायण कहते हैं- बीजेपी ने बोम्मई के माध्यम से लिंगायतों को जीतने की कोशिश की, लेकिन आरक्षण जैसे मुद्दों पर असंतोष पनपने के साथ, वे लिंगायत वोट हासिल करने के बारे में आश्वस्त नहीं थे। साथ ही जब तक येदियुरप्पा पार्टी से नाखुश हैं, तब तक किसी अन्य लिंगायत नेता के लिए लिंगायत समर्थन हासिल करना संभव नहीं है।
चुनाव पर्यवेक्षकों और बीजेपी के कुछ लोगों के अनुसार, पार्टी अब येदियुरप्पा को अभियान में सबसे आगे रखेगी तो बोम्मई की हिस्सेदारी कमजोर होती दिखेगी। पार्टी के एक अन्य पदाधिकारी के अनुसार, बीएस येदियुरप्पा के सीएम चेहरे नहीं होने के बावजूद लिंगायत वोट आधार को बनाए रखना, बीजेपी के लिए चुनाव जीतने के लिए महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि पार्टी लिंगायत समुदाय को भरोसा देना चाहती है कि येदियुरप्पा अभी भी उसके लिए महत्वपूर्ण हैं। उस पदाधिकारी ने आरक्षण के मुद्दे पर लिंगायत समुदाय के एक वर्ग, विशेष रूप से 'पंचमसाली लिंगायतों' के बीच असंतोष की ओर भी इशारा किया। उसने कहा कि यह खतरा पैदा कर सकता है।
बीजेपी के राज्य महासचिव एन रवि कुमार ने कहा कि येदियुरप्पा कर्नाटक में एक बड़े जननेता हैं और वह ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने राज्य में पार्टी का निर्माण और पोषण किया। वो लिंगायतों सहित सभी समुदायों के नेता हैं और सभी वर्गों के लोग उनका सम्मान करते हैं। उन्हें स्वाभाविक रूप से एक चेहरे के रूप में पेश किया जा रहा है, तो क्या गलत है?
कहा जा रहा है कि येदियुरप्पा को बीजेपी पहले दरकिनार कर रही थी। लेकिन येदियुरप्पा जानते थे कि क्या होने वाला है। येदियुरप्पा वीरशैव-लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता हैं। राज्य में कुल आबादी का यह समुदाय लगभग 17 प्रतिशत है। यही समुदाय बीजेपी का मजबूत वोट बैंक भी है। इसीलिए येदियुरप्पा ने बदले में अपने बेटों के राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने की मांग बीजेपी से कर रहे हैं।
चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा करते हुए येदियुरप्पा ने कहा था कि वह अपनी शिकारीपुरा विधानसभा सीट खाली कर देंगे,अगर आलाकमान सहमत होता है तो वहां से उनके छोटे बेटे और पार्टी के राज्य उपाध्यक्ष बी वाई विजयेंद्र चुनाव लड़ेंगे। येदियुरप्पा सीएम की कुर्सी छोड़ने के बाद से 2021 में विजयेंद्र को मंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन अपने प्रयासों में सफल नहीं हुए। उनके बड़े बेटे, बी वाई राघवेंद्र शिवमोग्गा से सांसद हैं।
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