झारखंड में राजनैतिक संकट अब संवैधानिक संकट जैसे हालात बना रहा है। यहां जो कुछ हो रहा है वह भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में संभवतः पहली बार हो रहा है। झारखंड का हाल यह है कि यहां अभी न तो कोई मुख्यमंत्री है और न ही यहां राष्ट्रपति शासन लगा है, इस तरह से झारखंड में फिलहाल कोई सरकार नहीं है।
संवैधानिक मामलों के जानकार कह रहे हैं कि 1 फरवरी 2024 का दिन झारखंड के इतिहास में इसलिए भी याद किया जाएगा कि इस दिन झारखंड में कोई भी मुख्यमंत्री नहीं रहा है। सीएम का पद खाली पड़ा है। हेमंत सोरेन ने बुधवार 31 जनवरी को ही सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था।
आम तौर पर सीएम के इस्तीफे के बाद राज्यपाल इस्तीफा देने वाले सीएम को नए सीएम के शपथ लेने तक अपने पद पर बने रहने को कहते हैं। लेकिन झारखंड में हुआ यह कि इस्तीफा देने के तुरंत बाद ईडी ने हेमंत सोरेन को अपनी हिरासत में ले लिया था।
गुरुवार को उन्हें अदालत में पेश किया गया जहां से उन्हें होटवार जेल भेज दिया गया है। दूसरी तरफ हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता चंपई सोरेन को महागठंबधन विधायक दल ने अपना नेता चुन लिया है। उनका दावा है कि उन्होंने बुधवार की रात हेमंत सोरेन के इस्तीफा देते समय ही राज्यपाल से मिलकर नई सरकार बनाने का दावा पेश किया था।
इसके बावजूद राज्यपाल ने उन्हें गुरुवार को सरकार बनाने के आमंत्रित नहीं किया। चंपई सोरेन गुरुवार की शाम 5.30 बजे एक फिर राज्यपाल से राजभवन जाकर मिले और एक बार फिर सरकार बनाने का दावा पेश किया।
प्राप्त सूचना के मुताबिक उन्होंने 43 विधायकों के समर्थन का दावा पेश किया है, उनके हस्ताक्षर वाला कागज और उनकी गिनती करवा कर उसका वीडियो भी राज्यपाल के समक्ष पेश किया है। इतने विधायक सरकार बनाने के लिए पर्याप्त हैं। चंपई सोरेन ने अपनी मुलाकात में राज्यपाल से सरकार बनाने का न्योता मांगा जिसके जवाब में राज्यपाल ने जल्द निर्णय लेने और इसकी सूचना देने की बात कही है।
अब सवाल उठता है कि जब बुधवार रात करीब 9 बजे ही झारखंड मुक्ति मोर्चा और उसके सहयोगी दलों के महागठबंधन ने विधायक दल के नए नेता चंपई सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया था तब राज्यपाल ने गुरुवार को उन्हें सरकार बनाने के लिए न्योता क्यों नहीं दिया?
यह स्थिति तब है जब उनके पास सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत भी है। सवाल उठ रहा है कि जब राज्यपाल ने हेमंत सोरेन का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है तब महागठंबधन द्वारा सरकार बनाने के दावे पर अब तक कोई निर्णय क्यों नहीं लिया गया है। उन्होंने केयर टेकर सरकार को लेकर भी कोई बात नहीं कही है और न ही अब तक झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया गया है।
राजनैतिक हलकों में चर्चा है कि सरकार बनाने में हो रही देरी से महागठबंधन के विधायकों में टूट भी हो सकती है। चंपई सोरेन बुधवार रात से ही 43 विधायकों का समर्थन पत्र सौंपकर सरकार बनाने के न्योते का इंतजार कर रहे हैं।
ऐसे में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए
ऐसे में संविधान के जानकारों का कहना है कि आदर्श रूप में राज्यपाल को तुरंत नई सरकार को शपथ दिलानी चाहिए, लेकिन उन्होंने गुरुवार रात तक ऐसा नहीं किया है। चूंकि उन्होंने ऐसा नहीं किया है इसलिए उन्हें राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर देनी चाहिए थी जो कि उन्होंने नहीं की है। इसका मतलब हुआ कि झारखंड में अभी कोई सरकार नहीं है। जबकि संविधान के मुताबिक कोई भी राज्य एक क्षण के लिए भी सरकार के बिना नहीं रह सकता है। इसके बावजूद केंद्र ने भी अब तक कोई हस्तक्षेप नहीं किया है। चंपई सोरेन के सरकार बनाने के दावे के बावजूद उन्हें सरकार बनाने का आमंत्रण नहीं दिया गया है।
यह सब परिस्थितियां बता रही हैं कि झारखंड में संवैधानिक संकट जैसे हालात पैदा हो रहे हैं। राज्यपाल को तुरंत चंपई सोरेन को या तो सरकार बनाने का न्योता देना चाहिए या फिर राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर देनी चाहिए।
संवैधानिक मामलों के जानकारों का कहना है कि राज्यपाल को बताना चाहिए कि जब हेमंत सोरेन का इस्तीफा हो चुका है और वह जेल में हैं, राज्य में अभी कोई सरकार नहीं है, तब ऐसी स्थिति में भी राष्ट्रपति शासन क्यों नहीं लगाया गया है? राज्यपाल को बताना चाहिए कि इस संकट के समाधान के लिए वह क्या कर रहे हैं?
संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक राज्य के प्रधान राज्यपाल होते हैं लेकिन वह कैबिनेट की सलाह से ही काम करते हैं। माना जा रहा है कि सीएम पद खाली रहने के कारण यहां अभी कोई कैबिनेट भी नहीं है।
हालांकि विधि विशेषज्ञों का कहना है कि यूएन राव वर्सेज इंदिरा गांधी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर विधानसभा भंग हो जाए या कैबिनेट त्यागपत्र देती है तो ऐसे हालात में जब तक नयी कैबिनेट का गठन नहीं हो जाता है तब तक पुरानी कैबिनेट बनी रहती है। ऐसे में सरकार गठन तक मौजूदा कैबिनेट ही कार्यकारी के तौर पर काम करती रह सकती है।
इन तकनीकी कारणों से फंसा हो सकता है पेंच
वहीं कानूनी मामलों के कई जानकारों का कहना है कि महागठबंधन विधायक दल की बैठक में सीएम हेमंत सोरेन के इस्तीफे से पहले ही विधायक दल का नेता चंपई सोरेन को चुन लिया गया था।
तकनीकी तौर पर विधायक दल का नया नेता तभी चुना जाता है जब यह पद रिक्त हो। बिना पद रिक्त हुए विधायक दल का नेता चुना गया, नए नेता के समर्थन में विधायकों के हस्ताक्षर लिए गए और इसे राज्यपाल को सौंप दिया गया। इसके कारण तकनीकी तौर पर मामला उलझ गया।
इस तर्क को देने वालों का कहना है कि पिछले सीएम के इस्तीफे को स्वीकार किए जाने के बाद विधायक दल की हुई बैठक में नए नेता का चुनाव होने पर ही राज्यपाल सरकार बनाने के दावे पर विचार कर सकते हैं। ऐसा नहीं होने पर इस दावे पर विचार करने के लिए राज्यपाल बाध्य नहीं हैं।
माना जा रहा है कि तमाम परिस्थियों पर कानूनी विशेषज्ञों से राय लेने के बाद ही राज्यपाल कोई निर्णय लेंगे। तब तक झारखंड की राजनीति में संकट बरकरार रह सकता है।
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