झारखंड में केंद्रीय छात्रवृत्ति योजना में 'बड़ा घोटाला' उजागर हुआ है और इस पर राज्य के मुख्यमंत्री ने जाँच के आदेश भी दे दिए हैं। रुपये के घपले जिस तरह से किए गए हैं वे चौंकाने वाले हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनिफ़िट ट्रांसफ़र से गड़बड़ी की गई। डीबीटी के लिए आधार आईडी, फ़िंगरप्रिंट, बैंक खातों और ऑनलाइन डेटाबेस ज़रूरी होता है। यानी तकनीकी रूप से इतनी निगरानी होने के बाद भी गड़बड़ियाँ हुईं। 3 कमरों का स्कूल, 80 नामांकन और 323 को छात्रवृत्ति। गड़बड़ी करने के लिए आदिवासी को बताया पारसी और महिला को बताया कि सऊदी अरब से दान का पैसा आया है। उम्रदराज महिला एवं पुरुषों को 7वीं-8वीं का छात्र बताकर छात्रवृत्ति दी गई। 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने इस 'घोटाले' पर रिपोर्ट छापी है।
रिपोर्ट के मुताबिक़, 'द इंडियन एक्सप्रेस' ने पिछले महीने 6 ज़िलों में 15 स्कूलों के रिकॉर्ड खंगाले, 30 से अधिक छात्रों, अभिभावकों और स्कूल अधिकारियों से इस संबंध में बात की।
इस मामले के उजागर होने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसके लिए पिछली बीजेपी सरकार की आलोचना की है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, 'यह शर्मनाक है कि पिछली बीजेपी सरकार, इसका नेतृत्व और तत्कालीन कल्याण मंत्री डॉ. लुईस मरांडी ने हाशिए पर धकेले गए समुदायों के छात्रों की छात्रवृत्ति में गड़बड़ी को रोकने के लिए एक भी क़दम नहीं उठाया। जाँच चल रही है और दोषी को बख्शा नहीं जाएगा।'
It's shameful that the previous @BJP4Jharkhand Govt & it's leadership including the then Welfare Minister @loismarandi'ji didn't take a single step to stop ciphoning of scholarship of students from marginalized communities. Investigation is underway & guilty will not be spared. https://t.co/Jujzdcsg07 pic.twitter.com/L8WOzf4hM0
— Hemant Soren (घर में रहें - सुरक्षित रहें) (@HemantSorenJMM) November 2, 2020
द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय मंत्रालय के तहत प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति के पैसे निकालने के लिए बिचौलियों, बैंक कर्मचारियों, स्कूल अधिकारियों और राज्य सरकार के कर्मचारियों की साँठगाँठ के कारण यह गड़बड़ी हुई। 'द इंडियन एक्सप्रेस' द्वारा की गई पड़ताल में पाया गया है कि स्कूलों ने आँकड़ों में हेराफेरी की है, यहाँ तक कि उन्हें अल्पसंख्यकों के रूप में दिखाने के लिए छात्रों के धर्म को भी बदल दिया है। उनमें से कई अपने लिए छात्रवृत्ति का एक हिस्सा रखते हैं। ऐसे मामले हैं जहाँ माता-पिता को बिचौलियों के साथ सौदा करने को मजबूर किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, कई ऐसे मामले हैं जहाँ स्कूलों से लाभ प्राप्त करने के लिए उपयोगकर्ता के आईडी और पासवर्ड चुराने के लिए बैंक कोरेस्पोंडेंट, एजेंटों और स्कूल स्टाफ़ ने धोखाधड़ी की। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह सब ज़िला, राज्य और केंद्र के अधिकारियों की नाक के नीचे होता रहा। इन अधिकारियों को आवेदनों को पड़ताल करने की ज़िम्मेदारी दी गई थी। 'इंडियन एक्सप्रेस' ने रविवार को ही रिपोर्ट की थी कि झारखंड के कई स्कूलों, छात्रों और अभिभावकों के आधार आईडी, फ़िंगरप्रिंट, बैंक खातों और ऑनलाइन डेटाबेस सहित कई जाँचों के बावजूद कैसे यह स्कैम होता रहा।
रिपोर्ट के मुताबिक़, राज्य में छात्रवृत्ति में फर्जीवाड़ा करने वाला गिरोह सक्रिय है, जो पहले अल्पसंख्यक समुदाय के जरूरतमंद लोगों की तलाश करता है। फर्जी तरीक़े से राष्ट्रीय छात्रवृत्ति पोर्टल में स्कूल की मिलीभगत से छात्रवृत्ति के लिए आवेदन जमा करता है। बैंक में छात्रवृत्ति की राशि आने पर कुछ राशि उसे देकर बाक़ी ख़ुद रख लेता है।
रामगढ़ के दुलमी स्थित फैजुल रजा मदरसा में बिचौलियों ने कई ऐसे लोगों को भी शामिल किया, जो काफ़ी उम्रदराज लोग हैं।
अंजुमन कमेटी ने रामगढ़ डीसी को शिकायत की। फिर इस मामले की जाँच की गई। इसमें पता चला कि मदरसा तो डेढ़ साल से बंद है। इस गड़बड़ी के बाद दूसरे स्कूलों में भी छात्रवृत्ति को लेकर गड़बड़ियाँ सामने आईं।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, बहरातोली क्षेत्र में रहने वाले राशीद अंसारी को भी पैसे मिले। उन्होंने कहा, 'मुझे बताया गया था कि पैसा सऊदी सरकार का था। मैंने बिचौलिए को अपना आधार नंबर और खाता विवरण दिया। मेरी पत्नी और मुझे 10,700 रुपये मिले, और हमने आधी रक़म उस आदमी को दे दी। ' 39 वर्षीय अंसारी ने कहा, 'मैंने पैसे इसलिए लिए क्योंकि हमारे परिवार में आठ लोग हैं और लॉकडाउन लागू होने के बाद से ही हमें भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।'
रिकॉर्ड में पता चलता है कि अंसारी का नाम उस योजना के लाभार्थी के रूप में है जिसमें कक्षा 1 से 5 के छात्रों को प्रति वर्ष 1,000 रुपये, कक्षा 6 से 10 के छात्रों को प्रति वर्ष 5700 रुपये, और यदि वे छात्रावासों में रहते हैं तो उन्हें 10700 रुपये मिलते हैं। 1,400 करोड़ रुपये के केंद्रीय आवंटन से झारखंड को इस योजना के लिए 2019-20 में 61 करोड़ रुपये मिले।
एक रिपोर्ट के अनुसार, राँची के गॉड चर्च स्कूल, हुतुप में पढ़ने वाले ज़िक्रुल अंसारी ने कहा कि उन्हें मई में 2,700 रुपये मिले, जो कि हर साल मिलने वाले 5,700 रुपये के आधे से भी कम हैं। पूरी स्कॉलरशिप मांगने पर अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने भी कड़ी मेहनत की है और वो भी पैसे के हकदार हैं।
आदिवासी को पारसी बता दिया
राँची के हुतुप के गॉड चर्च स्कूल में एक आदिवासी को पारसी के रूप में दिखाया गया। कक्षा 9 के छात्र राहुल उरांव एक आदिवासी समुदाय से हैं, लेकिन उन्हें पारसी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। उन्होंने कहा, 'मुझे बिना किसी रसीद के 2,700 रुपये नकद मिले।'
स्कूल के चेयरमैन अनिल चकोर ने स्कूल इंचार्ज और टीचर्स पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। ऐसे भी आरोप लगाए गए कि छात्रावास नहीं है और छात्रवृत्ति दी गई।
रिपोर्ट के अनुसार, घुघरी के लॉर्ड कृष्णा स्कूल में सिर्फ़ 5 कमरे हैं। स्कूल में 324 छात्रों में से कम से कम 213 ऐसे छात्र हैं जिन्हें 10,700 रुपए मिले हैं।
रामगढ़, गोला के ब्लू बेल्स स्कूल में 179 छात्रों को स्कॉलरशिप दी गई, जिसमें 176 छात्रावास में बताए गए हैं। लेकिन रिपोर्ट के अनुसार, स्कूल में कोई हॉस्टल ही नहीं है। रांची के मंदार ब्लॉक के बेराटोली की 47 वर्षीय गुलशन आरा ने 2 फरवरी को अपने पति को खो दिया। उन्होंने कहा, 'हम एक कठिन समय से गुज़र रहे थे, जब एक परिचित ने हमसे कहा कि अगर मैंने उसे अपना आधार और बैंक पासबुक की जानकारी दी तो मुझे सऊदी अरब से कुछ चैरिटी के पैसे मिलेंगे। अप्रैल में मुझे 10,700 रुपए मिले, जिसमें से आधे बिचौलिए ने लिए।'
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