तेजस्वी यादव एक नए हुंकार के साथ खड़े हुए हैं। चुनाव की बिसात पर वो अपने पिता लालू यादव के आरंभिक दिनों की तरह एक चतुर खिलाड़ी के जैसे आत्मविश्वास से भरे दिखाई दे रहे हैं। उनकी सभाओं में गर्जना के साथ उभरती भीड़ नब्बे के दशक में लालू की सभाओं की याद दिला रही है। लालू यादव सामाजिक न्याय के प्रचंड योद्धा की तरह उभरे थे लेकिन 2005 में पतन के पूर्व वो भ्रष्टाचार और बेलगाम अपराध के सिरमौर बन गए।