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ग्राउंड रिपोर्टः झारखंड में 'लव' और 'जमीन जिहाद' का कोई असर नहीं

भाजपा ने झारखंड में कथित बंग्लादेशी घुसपैठ  को  चुनावी मुद्दा बनाना चाहा। दिन-रात हिन्दू मुस्लिम जिहाद का राग अलापने वाले असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने एक से बढ़कर एक विवादित भाषण दिए, लेकिन झारखंड की आदिवासी बेल्ट पर उसका कोई असर नहीं दिख रहा। उल्टा लोग सवाल कर रहे हैं। अब इसी सवाल को लीजिए- चंपई सोरेन छह बार के विधायक हैं, वह झारखंड मुक्ति  मोर्चा सरकार में मंत्री थे। उन्हें तथाकथित घुसपैठ तब क्यों नहीं दिखी? लेकिन जब दिल्ली से उनका चश्मा बनकर आया तो उनको घुसपैठिया नज़र आ गया।

पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला खरसावां और पश्चिमी सिंहभूम जिलों को मिलाकर, कोल्हान क्षेत्र की 14 सीटों के लिए मतदान 13 नवंबर को है। ये सभी 14 सीटें आदिवासी बहुल सीटें हैं। बीजेपी को कोल्हान में कभी खास सफलता नहीं मिली और 2019 में उसे 14 में से एक भी सीट नहीं मिली। 20 सीटें एसटी  (अनुसूचित  जनजाति) के लिए रिजर्व हैं। भाजपा ने इस बार रणनीति बदल दी और यहां के आदिवासियों को मुस्लिमों के घुसपैठ का डर दिखाया। पूरा चुनाव कथित बांग्लादेशी घुसपैठ की आड़ में हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण कराने की कोशिश की गई। यहां तक की इस लाइन पर पीएम मोदी और अमित शाह के भाषण भी रहे। 

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इंडिया गठबंधन यानी जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी गठबंधन ने 2019 के विधानसभा चुनावों में 17 सीटें जीतीं।  भाजपा को सिर्फ दो सीटें दक्षिणी छोटानागपुर में मिली। उसके सहयोगी झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) (जेवीएम-पी) ने एक सीट जीती। जेवीएम-पी का अब बीजेपी में विलय हो गया है।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भाजपा की कुल उम्मीद झामुमो के सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक चंपई के भाजपा में शामिल होने से है। भाजपा को लगता है कि चंपई कोल्हान क्षेत्र में उसकी मदद कर सकते हैं। लेकिन आदिवासियों के बीच भाजपा की पहचान की राजनीति और इसके नतीजों को लेकर तमाम आशंकाएं व्याप्त हैं। यहां पर संथाल परगना जैसा असर नहीं दिखता। जहां हिंदुओं और मुसलमानों के बीच संघर्ष की घटनाओं के कारण भाजपा के अभियान को अधिक सफलता मिल रही है। यानी संथाल परगना में जो ध्रुवीकरण भाजपा ने कराया है, उसका असर कोल्हान क्षेत्र में नजर नहीं आ रहा है।

हेमंत सोरेन की झामुमो सरकार मैया सम्मान योजना काफी लोकप्रिय है। यहां तक कि जो लोग कहते हैं कि वे भाजपा को वोट दे सकते हैं, उन्हें जमीन के लिए आदिवासी लड़कियों से शादी करने वाले भाजपा के घुसपैठियों के दावों पर संदेह है। यानी भाजपा का लैंड जिहाद नारा यहां नाकाम नजर आ रहा है। यहां एक बात और मुख्यमंत्री और झामुमो नेता हेमंत सोरेन के पक्ष में जा रही है। लोग यह मानते हैं कि पहले तीन साल कोविड महामारी और उसके बाद उनकी गिरफ़्तारी के कारण इस सरकार को झारखंड में काम करने का मौका ही नहीं मिला। हेमंत की गिरफ्तारी से आदिवासी अवगत हैं।

रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा 2016 में छोटा नागपुर किरायेदारी अधिनियम और संथाल परगना अधिनियम में बदलाव की कोशिश की वजह से भी भाजपा को इस चुनाव में दिक्कत हो रही है। कानून में बदलाव के प्रयास के कारण बड़े पैमाने पर आंदोलन हुए, जिससे आदिवासियों को विस्थापन और पहचान खोने का डर सताने लगा था। अब उनकी सोच ये है कि अगर भाजपा वापस आई तो वो फिर से उन कानूनों को लागू करेगी, जिसे हेमंत सोरेन सरकार ने खत्म कर दिया है। सामाजिक कार्यकर्ता हेम्ब्रम ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया: "जब रघुबर सरकार ने (अधिनियमों के साथ) भूमि बैंक बनाने की कोशिश की तो आदिवासियों ने भाजपा पर अपना भरोसा खो दिया... आदिवासियों के लिए, सब कुछ - उनकी आजीविका, पहचान और अस्तित्व - भूमि से जुड़ा हुआ है।"

भाजपा ने अब इस विधानसभा चुनाव में वादा किया है कि अगर वह सत्ता में आती है, तो उसकी सरकार आदिवासियों की जमीन को "घुसपैठियों" द्वारा हड़पने से रोकने के लिए एक कानून बनाएगी। जबकि यहां के लोग बता रहे हैं कि संथाल परगना अधिनियम पहले से ही ऐसी किसी भी कोशिश को रोकने के लिए मौजूद है।  जाहिर सी बात है कि  अगर भाजपा नया  कानून लाएगी तो वो समस्या  बढ़ाने वाला होगा। अभी  जो कानून  है  वो ठीक है। यहां के लोग इस बात  से डरे हुए नजर आ रहे हैं कि भाजपा के हाई वोल्टेज कथित घुसपैठ प्रचार अभियान से यहां सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंच सकता है। क्योंकि यहां हिंदू और मुस्लिम एक साथ रहते रहे हैं।

भाजपा यहां कह रही है कि आदिवासी बड़े हिंदू समुदाय का हिस्सा हैं, इससे आदिवासी चिंतित हैं। सरायकेला शहर में एक छोटी सी मिठाई की दुकान पर बैठे हेम्ब्रम ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि ''एससी, एसटी और यहां तक ​​कि ओबीसी भी हिंदू नहीं हैं। हिंदू आकृति (मूर्तियों) में विश्वास करते हैं, हम प्रकृति में विश्वास करते हैं।'' हाल ही में पीएम मोदी और अमित शाह ने एक हैं तो सेफ हैं का नारा दिया। जिसमें आदिवासियों से दोनों ने कहा कि आप बंटेंगे तो सेफ नहीं रहेंगे यानी आप लोग खुद को हिन्दू के रूप में पहचानों, विभिन्न जातियों में नहीं।

हेसल गांव में, 56 साल  के परमेश्वर ओरांव ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि कि रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने आदिवासियों को "वनवासी" कहकर उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। इसके पीछे तर्क यह है कि भाजपा उन्हें आदिवासियों को यहां का मूल निवासी नहीं मानती बल्कि वो उन्हें वनवासी कहती  है  जो जंगलों में रहते हैं। आदिवासी कहते हैं कि इसका  मतलब हमें हमारी जमीन से बेदखल करना, इसलिए हम मूल निवासी हैं और ये जंगल, जमीन, संसाधन हमारे हैं। कांग्रेस और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी अपने भाषणों में आदिवासियों को मूल निवासी न बताने का भाजपा की नीति का विरोध किया  है।

गुमला जिले के बिशुनपुर विधानसभा क्षेत्र के घाघरा चौक पर शीला लकड़ा (26) ने भाजपा के "लव जिहाद" के दावों को बेतुका बताया। हालांकि विकास के मुद्दों पर वो भाजपा का समर्थन करती हैं। एक ईसाई आदिवासी और एक प्रशिक्षित मेडिकल सहायक, शीला कहती हैं: “मैंने भाजपा नेताओं के आरोप सुने हैं कि घुसपैठिये आदिवासी लड़कियों से शादी कर रहे हैं। लेकिन मैंने इस इलाके में ऐसी किसी घटना के बारे में कभी नहीं सुना। उन्होंने यह भी जोड़ा कि अगर कोई दूसरे समुदाय में शादी करता है तो वह आम सहमति से ही होती है।”
शीला ने एक और महत्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि गांवों में आबादी कम होती है। आप यहां अपनी नकली पहचान के साथ किसी को गुमराह नहीं कर सकते। क्योंकि लोगों की कई पीढ़ियां गांवों में रहती आई हैं और लोग  एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं। गांवों में लव जिहाद तो दूर दूर तक नहीं है।

रांची जिले की एसटी-आरक्षित खिजरी विधानसभा सीट के नानकम क्षेत्र में मतदाता पर्चियां बांट रही आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सरोज किर्की को डर है कि भाजपा गलत नारे के साथ यहां चुनाव लड़ रही है। सरोज ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा-  “मणिपुर और छत्तीसगढ़ दोनों में ईसाइयों और आदिवासियों की स्थिति अच्छी नहीं है। लेकिन वहां की भाजपा सरकारों को कोई चिंता नहीं है। अब वह कथित घुसपैठियों द्वारा धर्मांतरण और लव जिहाद का आरोप लगाकर यहां फूट डालने की कोशिश कर रही है। सच तो यह है कि धर्मों के भीतर शादियां आम सहमति से हो रही हैं।'' सरोज  किर्की ने कहा कि वो खुद ईसाई आदिवासी हैं।

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खिजरी के पाहन टोली गांव में किसान करमा ओरांव का कहना है कि उन्होंने 2019 में कांग्रेस को वोट दिया था और इस बार फिर वोट देंगे। उनका कारण भी वही है जो सरोज का था। उन्होंने बताया: “पास के गांव की एक आदिवासी महिला ने हाल ही में एक मुस्लिम युवक से शादी की। मैं जानता हूं कि यह आम सहमति से हुई शादी थी और वे खुश हैं। मुस्लिम युवक की पहचान गुप्त नहीं थी। उनकी कई पीढ़ियां यहां रह चुकी हैं। आदिवासी महिला का परिवार भी यहां न जाने कब से है।''

इंडियन  एक्सप्रेस की रिपोर्ट  से साफ है कि झारखंड में लव जिहाद और जमीन जिहाद का उसका नारा नाकाम हो गया  है। घुसपैठिययों को लेकर उसका प्रचार अभियान कुछ  संदेश नहीं पहुंचा सका।  झारखंड के शहरी क्षेत्रों में भाजपा के प्रचार का असर देखा जा सकता है, जहां हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण सोशल मीडिया की वजह से पहले से ही है।
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क़मर वहीद नक़वी
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