झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है। उन्हें शाम तक जेल से रिहाई मिल गई। सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने गिरफ्तार किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता ने कई करोड़ रुपये की जमीन का एक बड़ा हिस्सा हासिल करने के लिए, फर्जी लेनदेन और जाली दस्तावेजों के माध्यम से रिकॉर्ड में हेरफेर करने की योजना चलाई थी। सोरेन को जनवरी में गिरफ्तार किया गया था।
जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी भी रजिस्टर या राजस्व रिकॉर्ड में भूमि के कथित अवैध अधिग्रहण में सोरेन की प्रत्यक्ष संलिप्तता का कोई सबूत नहीं है।
हाईकोर्ट में सिंगल बेंच के जस्टिस रोंगोन मुखोपाध्याय ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का यह दावा कि उसकी समय पर कार्रवाई ने सोरेन और अन्य आरोपियों को अवैध रूप से जमीन हासिल करने से रोक दिया, अस्पष्ट है। क्योंकि अन्य गवाहों ने कहा है कि सोरेन ने पहले ही जमीन हासिल कर ली थी।
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ईडी का यह दावा कि उसकी समय पर कार्रवाई ने रिकॉर्ड में जालसाजी और हेरफेर करके भूमि के अवैध अधिग्रहण को रोक दिया था, एक अस्पष्ट बयान प्रतीत होता है। जब इस आरोप की पृष्ठभूमि में विचार किया गया तो पता चला कि भूमि पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी थी और याचिकाकर्ता के पास थी। वह भी वर्ष 2010 के बाद से मौजूद थी।
-झारखंड हाईकोर्ट 28 जून 2024 सोर्सः बार एंड बेंच
अदालत ने कहा ईडी जिस समय के इस मामले की जांच कर रही है, उस अवधि के दौरान सोरेन झारखंड में सत्ता में नहीं थे। कोर्ट ने कहा, "उस जमीन से कथित विस्थापितों के पास अपनी शिकायत के निवारण के लिए अधिकारियों के पास न जाने का कोई कारण नहीं था। अगर याचिकाकर्ता ने उस जमीन का अधिग्रहण किया था और उस पर कब्जा किया था जब याचिकाकर्ता सत्ता में नहीं था।"
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किसी भी रजिस्टर या राजस्व रिकॉर्ड में उक्त भूमि के अधिग्रहण और कब्जे में हेमंत सोरेन की प्रत्यक्ष भागीदारी का कोई सबूत नहीं है। इसके अलावा, इस तरह के कथित अधिग्रहण से पीड़ित किसी ने भी इस तथ्य के बावजूद शिकायत दर्ज करने के लिए पुलिस से संपर्क नहीं किया था।
-झारखंड हाईकोर्ट 28 जून 2024 सोर्सः बार एंड बेंच
हेमंत सोरेन के मामले में यह आरोप शामिल था कि तीन लोगों ने 1985 में कुछ जमीन खरीदी थी। लेकिन सोरेन और अन्य ने जमीन पर कब्जा करने के लिए 2009-10 में उन्हें जबरन बेदखल कर दिया था। आगे यह भी आरोप लगाया गया कि बेदखल किए गए व्यक्तियों की शिकायतों पर पुलिस ने ध्यान नहीं दिया था। ईडी ने पूरा मामला इसी आधार पर तैयार किया था। लेकिन अदालत के फैसले में साफ कहा गया कि जिस समय की बात ईडी कर रही है तो उस समय हेमंत सोरेन सत्ता में ही नहीं थे। याचिकाकर्ता पुलिस के पास भी नहीं पहुंचे, यह तथ्य भी बिल्कुल साफ है। झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता पर ईडी ने फर्जी लेनदेन और जाली दस्तावेजों के जरिए रिकॉर्ड में हेरफेर करने और रांची में करोड़ों रुपये की 8.86 एकड़ जमीन हासिल करने का आरोप लगाया था।
हेमंत सोरेन के वकील अरुणाभ चौधरी ने पीटीआई को बताया, "जमानत मिल गई है। अदालत ने माना कि प्रथम दृष्टया, हेमंत सोरेन दोषी नहीं हैं और याचिकाकर्ता को जमानत दिए जाने पर उसके अपराध करने की कोई संभावना नहीं है।"
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