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अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने के बाद क्या जम्मू कश्मीर में आतंकवाद बढ़ गया है? इस सवाल का जवाब हाल की घटनाओं में ढूंढा जा सकता है।
जम्मू कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों में हाल में क्या बदलाव आए हैं, इससे पहले यह जान लें कि इससे जुड़े दूसरे घटनाक्रम कैसे चले हैं। तालिबान ने हाल ही एक साक्षात्कार में खुलेआम बयान दिया है कि कश्मीर के मुसलमानों के लिए आवाज़ उठाने का हक़ है, जबकि तालिबान ने ही पहले कहा था कि वह जम्मू कश्मीर मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा। एक अन्य घटनाक्रम में भारत में आतंकवादियों को घुसपैठ करने के लिए ज़िम्मेदार मानी जाने वाली पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी के प्रमुख काबुल पहुँचे। तालिबान के सरकार गठन में आईएसआई की भूमिका की रिपोर्टें आई हैं। आईएसआई का जिस आतंकवादी संगठन अल क़ायदा से संबंध बताया जाता रहा है उसने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद एक बड़ा बयान दिया है। उसने जम्मू-कश्मीर में 'जिहाद करने', कश्मीर को 'आज़ाद कराने' और वहाँ 'इसलाम के दुश्मनों' का सफ़ाया करने की बात कही थी।
तो क्या अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के आने से जम्मू कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ेंगी? अब तक के रुझान क्या बताते हैं? हाल में मीडिया रिपोर्टें आती रही हैं कि पिछले दो महीने से जम्मू कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों में तेज़ी देखी जा रही है। ये दो महीने का वह समय है जब अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से धीरे-धीरे अपने सैनिक निकालने शुरू कर दिए थे और तालिबान ने कई क्षेत्रों में कब्जा करना शुरू कर दिया था। 15 अगस्त को तो उसने काबुल पर भी कब्जा जमा लिया था जब पूरी अमेरिकी फौजें वापस गई भी नहीं थीं। 30 अगस्त को सभी अमेरिकी सैनिकों के वापस जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान पर पूरी तरह तालिबान का कब्जा हो गया है।
रिपोर्ट आ रही है कि तालिबान के कब्जे से पहले ही आईएसआई ने जम्मू कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को तेज़ कर दिया था। टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार इस रणनीति के हिस्से के रूप में अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान के अधिग्रहण से पहले ही सक्रिय आईएसआई पिछले दो महीनों से अपने 'संरक्षण' वाले आतंकवादी संगठनों- लश्कर, जेईएम और अल-बद्र को केंद्र शासित प्रदेश में धकेल रहा है। अख़बार ने केंद्रीय सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र के हवाले से लिखा है कि वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में लगभग 200 आतंकवादी सक्रिय हैं। सूत्र ने कहा, 'आखिर में जब भी आईएसआई निर्देश देगा, वे आतंकवादी हमलों में शामिल होंगे।'
हाल के इन घटनाक्रमों का नतीजा यह है कि पिछले कुछ दिनों से जम्मू-कश्मीर में मुठभेड़, सुरक्षा बलों व नेताओं पर हमले और इससे जुड़ी दूसरी वारदात बढ़ने लगी हैं।
'एनडीटीवी' ने अभी कुछ दिन पहले ख़बर दी थी कि खुफ़िया एजेन्सियों का मानना है कि पिछले कुछ दिनों में छह पाकिस्तानी आतंकवादी गुटों ने जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ की है, लगभग 25-30 आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों को उलझाए रखा है और कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में उनसे दो-चार हाथ करना ही पड़ा है। एक खुफिया अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया है कि 'पिछले एक महीने में लगभग रोज़ाना सुरक्षा बलों पर विस्फोटकों से हमला हुआ है या राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाया गया है।'
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पिछले एक महीने में लगभग हर दिन ग्रेनेड हमला या गन-बैटल हुआ है। साफ़ है कि घाटी में आतंकवादियों की आमद हुई है और वे हमले करने में पहले से अधिक सक्रिय हैं। एनडीटीवी ने एजेंसियों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि लगभग 300 आतंकवादी सीमा पार पाकिस्तान में घात लगाए बैठे हैं और पाकिस्तानी सेना उन्हें मौक़ा मिलते ही भारत में घुसपैठ कराने के इंतज़ार में है।
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर पुलिस के सूत्रों ने कहा है कि जुलाई से उत्तरी कश्मीर और जम्मू क्षेत्र में सीमा पर घुसपैठ तेज़ हो गई है। बांदीपुर, कुपवाड़ा और बारामूला में आतंकवादी लॉन्चपैड और घुसपैठ के रास्ते काफ़ी सक्रिय हैं, जबकि आतंकवादी गतिविधियाँ ज़्यादातर दक्षिण कश्मीर में केंद्रित हैं। हालाँकि, एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी ने टीओआई को बताया कि भारतीय एजेंसियाँ पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सीमा पार से घुसपैठ और आतंकी लॉन्चपैड के फिर से सक्रिय होने को अफ़ग़ानिस्तान में होने वाली घटनाओं से जोड़कर नहीं देखती हैं। दरअसल, वे उन्हें आईएसआई के गेमप्लान के हिस्से के रूप में देखती हैं।
वैसे, अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्जे और कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं को जोड़कर देखे जाने की आधिकारिक तौर पर तो कोई ख़बर अब तक नहीं आई है, लेकिन इसके बाद के जो घटनाक्रम हुए हैं उससे ज़रूर इन आशंकाओं को बल मिलता है। तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान में आने के बाद पाकिस्तानी अधिकारियों के जश्न मनाने की ख़बरें आई थीं। तालिबान से जुड़े ऐसे कई आतंकवादी संगठन हैं जो पाकिस्तान से खुद को संचालित करते हैं। अफ़ग़ानिस्तान में पिछले तीन-चार दिनों में जो घटनाक्रम चले हैं और जिस तरह से पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के प्रमुख एकाएक काबुल पहुँच गए उससे भी जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को जोड़कर देखा जा रहा है। तालिबान के प्रतिद्वंद्वी गुटों के बीच विवाद है और उन गुटों में समझौते के बीच आईएसआई प्रमुख का नाम आया है। कहा जा रहा है कि तालिबान के ही दो गुटों में जो सरकार बनाने में तनातनी चल रही थी उसको निपटाने व नया फॉर्मूला बनाने में पाकिस्तान की भी भूमिका है।
इन सब घटनाओं में पाकिस्तान का हाथ किस हद तक है यह इससे भी समझा जा सकता है कि अफ़ग़ानों ने पाकिस्तान के हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया है। तालिबान ने राजधानी काबुल में पाकिस्तान के हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे दर्जनों अफ़ग़ानों पर गोलियाँ चलाई हैं। ये गोलियाँ भीड़ तितर-बितर करने के लिए हवा में चलाई गईं।
अब पाकिस्तान के आईएसआई और तालिबान के बीच किस तरह का संबंध है और आईएसआई भारत के जम्मू कश्मीर में क्या चाहता है, यह किसी से छुपा नहीं है। ऐसे में आतंकवादी गतिविधियाँ बढ़ने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
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