अभी तक कश्मीर से ख़बरें आ रही थीं कि अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद वहाँ लोग बेहद नाराज हैं और बाज़ार खोलने के लिए तैयार नहीं हैं। यह भी ख़बरें आईं कि घाटी में बीमार लोगों को दवाएँ नहीं मिल पा रही हैं और वे इलाज के इंतजार में हैं। लेकिन अब जो वाकया राज्य के प्रशासन ने किया है, उसे निश्चित रूप से शर्मनाक कहा जाना चाहिए।
श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कालेज में यूरोलॉजिस्ट उमर सालिम प्रेस के सामने आए और वह मीडिया से बात करना चाहते थे। वह कश्मीर में बीमार लोगों को इलाज को लेकर जो परेशानी हो रही है, उसे मीडिया को बताना चाहते थे। उमर ने अपने हाथ में एक प्लेकार्ड भी लिया हुआ था, जिसमें लिखा था ‘यह एक अनुरोध है न कि विरोध।’ लेकिन ये क्या हुआ। उमर को बोलते हुए सिर्फ़ 10 मिनट ही हुए थे कि पुलिस वहाँ पहुँच गयी और उमर को अपने साथ ले गयी या यूँ कहें कि उठा ले गयी। इससे एक बात पूरी तरह साफ़ हो गयी कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन यह क़तई नहीं चाहता कि कश्मीर के वास्तविक हालात दुनिया के सामने आएँ।
उमर को खोजने की बहुत कोशिश की गई लेकिन सभी कोशिशें नाकाम रहीं। खोजते भी कैसे क्योंकि सरकार तो टेलीफ़ोन सेवाओं को खोलने के लिए तैयार नहीं है। सरकार और मीडिया के बीच होने वाली बातचीत भी दो दिन से नहीं हुई।
लेकिन सवाल यह है कि आख़िर उमर के मीडिया के सामने आने से राज्य के प्रशासन को ऐसी क्या परेशानी हो गई कि उसने उन्हें बीच से ही उठा लिया। आख़िर कश्मीर में क्या चल रहा है?
न तो वह विपक्षी नेताओं को वहाँ जाने देने के लिए तैयार है और न ही मीडिया को। हालाँकि वह जोर-शोर से यह दावे ज़रूर कर रहे हैं कि कश्मीर के हालात सामान्य हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के एक-दो वीडियो जारी करके उसने यह जताने की कोशिश भी की। लेकिन हाल ही में कुछ अंतराराष्ट्रीय मीडिया एजेंसियों ने यह बताया कि कश्मीर में प्रतिबंधों में ढील देने के बाद बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतरे हैं और उन्होंने अनुच्छेद 370 को हटाने का पुरजोर विरोध किया है।
द टेलीग्राफ़ के मुताबिक़, उमर ने मीडिया से कहा, ‘टेलीफ़ोन सेवाओं को बंद किये जाने और सार्वजनिक परिवहन लगभग ठप होने से लोगों की जान को ख़तरा है और ऐसे लोगों के लिए तो ख़ासी मुश्किल है जिन्हें डायलिसिस या कीमोथैरेपी की ज़रूरत है।’ द टेलीग्राफ़ के मुताबिक़, उमर ने कहा कि उन्हें इस बारे में नहीं पता कि राज्य में लगाये गये प्रतिबंधों की वजह से किसी की मौत हुई है या नहीं लेकिन वह ऐसे लोगों को जानते हैं जिन्होंने अपने इलाज को हाल-फिलहाल के लिए रोक दिया है।
जम्मू-कश्मीर से और ख़बरें
अख़बार के मुताबिक़, उमर ने कहा, ‘मेरे पास एक मरीज था जिसकी 6 अगस्त को कीमोथैरेपी होनी थी। लेकिन वह हमारे पास 24 अगस्त को आया लेकिन दवा न होने के कारण उसकी कीमोथैरेपी नहीं हो सकी। एक और मरीज था जिसकी कीमोथैरेपी की दवाएँ दिल्ली से आनी थीं लेकिन वह दवाओं का ऑर्डर ही नहीं कर सका। उसकी कीमोथैरेपी लंबे समय तक के लिए टालनी पड़ गई।’
द टेलीग्राफ़ के मुताबिक़, उमर ने कहा, ‘ऐसे भी मरीज हैं जिन्हें हर हफ़्ते में तीन बार डायलिसिस की ज़रूरत होती है लेकिन वे लोग हफ़्ते में एक ही बार आ रहे हैं। कई मरीज ऐसे भी हैं जो बैंकों में नक़दी की कमी के कारण अस्पताल नहीं आ पा रहे हैं और दवाईयाँ नहीं ख़रीद पा रहे हैं।’
उमर ने मीडिया से कहा कि आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत राज्य में 15 लाख मरीज पंजीकृत हैं लेकिन कोई भी मरीज इस योजना का फ़ायदा लेने के लिए अस्पताल नहीं आ रहा है क्योंकि इंटरनेट बंद है और इसलिए इसका कार्ड काम नहीं कर रहा है।
द टेलीग्राफ़ के मुताबिक़, उमर ने सरकार से यह भी अपील की कि वह सभी अस्पतालों और दवाओं के काम से जुड़ी संस्थाओं की लैंडलाइन फ़ोन सेवाओं को खोल दे जिससे मरीजों को परेशानी न हो।’ उमर ने कहा, ‘अगर लोगों को डायलिसिस नहीं मिलेगा तो वे मर जाएँगे। कैंसर के मरीजों को कीमोथैरेपी नहीं मिलेगी तो वे मर जाएँगे। जिन मरीजों का ऑपरेशन नहीं हो पा रहा है, वे मर सकते हैं।’ उमर ने जितनी बातें कहीं उनसे कश्मीर के हालात का अंदाजा लगा पाना मुश्किल नहीं है।
अपनी राय बतायें