शाह फ़ैसल ने जब पिछले साल 17 मार्च को श्रीनगर में अपनी पार्टी ‘जम्मू-कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट’ की शुरुआत की थी तो ‘हवा बदलेगी’ का नारा बुलंद किया था, तब किसी के वहम-ओ-गुमान में भी नहीं था कि डेढ़ साल से भी कम समय में, शाह फ़ैसल के विचारधारा के गुब्बारे की हवा निकल जाएगी।
आज, अधिकांश पर्यवेक्षकों का कहना है कि शाह फ़ैसल ने राजनीति छोड़कर न केवल अपनी पार्टी बल्कि उन सैकड़ों कश्मीरी युवाओं को मंझधार में छोड़ दिया है जिन्होंने नई पार्टी बनाने में उनका साथ दिया था।
कश्मीरी युवाओं के रोल मॉडल
जब उन्होंने 2010 में सिविल सर्विसेज परीक्षा में टॉप किया, तो राष्ट्रीय मीडिया ने शाह फ़ैसल को कश्मीरी युवाओं के लिए एक रोल मॉडल बताया। मीडिया के माध्यम से उन्हें मिली असाधारण प्रसिद्धि का भी कुछ प्रभाव था। क्योंकि इसके साथ, घाटी में युवाओं की प्रवृत्ति भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की परीक्षाओं के लिए दिखाई देने लगी थी। इतना ही नहीं, बल्कि मुख्यधारा की राजनीति में भी कई युवा चेहरे दिखाई देने लगे थे।
2011 के बाद घाटी में एक दर्जन से अधिक युवा, जिनमें कई लड़कियां भी शामिल हैं, स्थानीय मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों में शामिल हो गए थे। इनमें वहीद पर्रा, जुनैद मट्टू, ताहिर सईद, इमरान नबी डार, सारा हयात शाह आदि शामिल थे।
शाह फ़ैसल ने लगभग दस वर्षों तक विभिन्न सरकारी पदों पर काम करने के बाद कश्मीर में उनके मुताबिक़ "लगातार हो रही हत्याओं" और "अति-राष्ट्रवाद के नाम पर बढ़ती घृणा और असहिष्णुता" के विरोध में अपनी नौकरी छोड़ दी थी तो कश्मीर में इसे उनका सबसे बड़ा बलिदान बताया गया।
अपने त्यागपत्र के समय, उन्होंने कहा था कि वह कश्मीर में हो रही "लगातार हत्याओं" और इसे रोकने के लिए "नई दिल्ली द्वारा राजनीतिक कार्रवाई की कमी" के कारण इस्तीफ़ा दे रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि "भारत में 20 करोड़ मुसलमानों को हिंदुत्ववादी ताकतों ने हाशिए पर रखा है और भारत में अति राष्ट्रवाद के नाम पर असहिष्णुता की संस्कृति बढ़ रही है।"
निराश और उदास हैं युवा
शाह फ़ैसल की राजनीतिक पार्टी से काफी संख्या में युवा जुड़े, जो उन्हें अपना आदर्श मानने लगे थे। अब जबकि उन्होंने अपनी पार्टी और राजनीति, दोनों को अलविदा कह दिया है तो न केवल पार्टी के कुछ सदस्य निराशा व्यक्त कर रहे हैं बल्कि ऐसे युवा जो पिछले छह वर्षों में मुख्यधारा में शामिल हुए, वे भी उनके फ़ैसले से असहमति व्यक्त कर रहे हैं।
पीडीपी के नेता ताहिर साद कहते हैं, ‘‘शाह फ़ैसल ने राजनीति में कूद कर और बड़ी बातें करके कश्मीरी युवाओं में उम्मीद जगाई थी। युवा उन्हें रोल मॉडल समझने लगे। लेकिन राजनीति छोड़कर उन्होंने सभी को निराश किया। हम पिछले साल 5 अगस्त को दिल्ली द्वारा किए गए फ़ैसले से पहले से ही उदास हैं, क्योंकि दिल्ली के इस एकतरफा फ़ैसले से दिल्ली पर कश्मीरियों का विश्वास ख़त्म हो गया है।’’
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2014 के चुनावों में, 60% लोगों ने मतदान किया था। हम युवाओं को यह कहकर लुभाते थे कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 और 35A के दायरे में कश्मीरियों की राजनीतिक आकांक्षाओं को पूरा किया जा सकता है, लेकिन वह भ्रम टूट गया। रही-सही कसर शाह फ़ैसल के निराशाजनक निर्णय ने पूरी कर दी।
ताहिर साद, नेता, पीडीपी
‘‘अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे”
नेशनल कॉन्फ्रेन्स से निकलकर 2014 में शाह फ़ैसल की पार्टी में शामिल होने वाली सारा हयात शाह का कहना है, “शाह फ़ैसल का राजनीति छोड़ने का फ़ैसला उनका खुद का हो सकता है, लेकिन उन्हें यह नहीं कहना चाहिए कि 5 अगस्त की दिल्ली की कार्रवाई नहीं बदली जा सकती। उनके शब्द निराशाजनक हैं। हम अपने अधिकारों के लिए लड़ते रहेंगे।”
शाह फ़ैसल के कई और सहयोगी राजनीति और पार्टी छोड़ने के उनके फ़ैसले पर निराशा व्यक्त कर रहे हैं। उनके एक साथी शौकत मसूदी ने कहा, “मुझे राजनीति में कभी दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन मैं शाह फ़ैसल को देखकर उनकी पार्टी में शामिल हुआ। हमने उत्साह के साथ पार्टी के लिए काम करना शुरू किया। लेकिन अब मुझे लगता है कि उनके नेतृत्व के बिना पार्टी की यात्रा मुश्किल होगी।’’
शाह फ़ैसल के एक अन्य सहयोगी मुहम्मद इकबाल कहते हैं, "मैं पार्टी में काम करना जारी रखना चाहता हूं, लेकिन मुझे पता है कि अब मुझे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।"
‘‘हमें अकेला छोड़ दिया”
शाह फ़ैसल की पार्टी के कई युवाओं का कहना है कि अचानक राजनीति छोड़कर, उन्होंने न केवल पार्टी को छोड़ दिया है, बल्कि इससे जुड़े लोगों को भी मंझधार में छोड़ दिया। इस संबंध में, श्रीनगर के एक 26 वर्षीय युवक ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा, “मैंने शाह फ़ैसल को एक नायक के रूप में माना और उनकी पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में काम किया। लेकिन अब मुझे लगता है कि यह सब झूठ है। जब वह पार्टी शुरू करने वाले थे, तो उन्होंने हमें लुभाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें कहीं और अब उन्होंने अपने करियर के लिए हमें अकेला छोड़ दिया।”
नौकरी छोड़ते समय और फिर एक नई राजनीतिक पार्टी लांच करने के दौरान शाह फ़ैसल लोगों के बलिदान और कश्मीरियों के कथित नरसंहार पर आंसू बहाते दिखाई पड़ते थे।
अपनी नई पार्टी की शुरुआत करते हुए उन्होंने आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान को अपना रोल मॉडल बताया था। उन्होंने कहा था, "हमारी पार्टी कश्मीरी लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप कश्मीर मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए काम करेगी। हम धर्म के नाम पर जम्मू और कश्मीर को बदलने के प्रयासों के विरुद्ध लड़ेंगे।"
शाह फ़ैसल ने पिछले साल साल 4 अगस्त को नेशनल कॉन्फ्रेन्स के नेता फारूक़ अब्दुल्ला के घर पर बैठक में भाग लिया था, जिसमें "गुप्कर घोषणा" के नाम से पारित प्रस्ताव में कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति की रक्षा करने का संकल्प लिया गया था।
शाह फ़ैसल ने कहा था कि उनके प्रेरणा स्रोत नेल्सन मंडेला थे, जिन्होंने अपने राष्ट्र के अधिकारों के लिए 32 साल जेल में बिताए। लेकिन आज, वह कहते हैं कि एक साल जेल में रहने के बाद, उन्हें वह सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं मिली जिसकी उन्हें उम्मीद थी।
जाहिर है, शाह फ़ैसल की पुरानी और नई बातों में एक खुला विरोधाभास है। उन्हें अब सोशल मीडिया पर ट्रोल किया जा रहा है। लोग उन्हें याद दिला रहे हैं कि उन्होंने तब क्या कहा था।
उमर ने बताया था "चाल"
दिलचस्प बात यह है कि जब शाह फ़ैसल ने पिछले साल 17 मार्च को अपनी पार्टी लांच की थी, तब पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दक्षिणी जिले अनंतनाग में अपनी पार्टी के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए नई पार्टी की लांचिंग को नई दिल्ली की "चाल" करार दिया था। उन्होंने कहा था, “नई पार्टियों को केवल कश्मीर में ही क्यों लॉन्च किया जाता है, जम्मू या लद्दाख में क्यों नहीं? क्या इसका स्पष्ट अर्थ यह नहीं है कि यह कश्मीरियों को विभाजित करने की एक चाल है?’’
उमर ने कहा था, ‘यह एक तथ्य है कि जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति को कमज़ोर करने के लिए षड्यंत्र रचे जा रहे हैं। जम्मू और लद्दाख क्षेत्र में राजनीतिक क्षेत्र कांग्रेस और बीजेपी के लिए खुला छोड़ दिया जा रहा है। लेकिन कश्मीर में हमेशा जनादेश को बांटने की कोशिश की जाती है।”
अब तक इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं
यह भी ध्यान रखना दिलचस्प है कि शाह फ़ैसल का इस्तीफ़ा 20 महीने बाद भी स्वीकार नहीं किया गया है। अर्थात नई दिल्ली ने अब तक उनकी वापसी के लिए दरवाजा खुला रखा है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, राजनीति छोड़ने से पहले, शाह फ़ैसल ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से मुलाकात की थी।
यह संभव है कि वह जल्द ही फिर से एक आईएएस अधिकारी के रूप में ड्यूटी ज्वाइन कर लें लेकिन यह निश्चित है कि वह वास्तव में अपने बयानों को बदलकर और डेढ़ साल की अवधि में खुले विरोधाभास दिखाकर अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं। उनके अतीत के बयान उन्हें जीवन भर परेशान करेंगे, जिसके कारण उन्हें वाहवाही मिली थी।
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