देश की प्रतिष्ठित भारतीय प्रशासनिक सेवा यानी आईएएस को छोड़कर राजनेता बने शाह फैसल ने अब राजनीति भी छोड़ दी है। उन्होंने ऐसा फ़ैसला क्यों लिया? क्या जम्मू कश्मीर की मौजूदा परिस्थितियों में वह राजनीति करने में सक्षम नहीं थे या फिर उन्हें राजनीति करने की कोई क़ीमत चुकानी पड़ी है? आख़िर उन्हें राजनीति रास क्यों नहीं आई?
इसका जवाब भी शाह फैसल ने दिया है। वह सिलसिलेवार ढंग से इसके पीछे के कारणों को रखते हैं। वह कहते हैं कि उन्होंने महसूस किया कि राजनीति में जनता को सच्चाई बताना वास्तव में कठिन था। उन्होंने कहा कि वह कश्मीरियों की ऐसी उम्मीदों को नहीं बढ़ाना चाहते हैं जो पूरी ही नहीं की जा सकें। उन्होंने कहा कि वह लोगों को ऐसे सपने नहीं दिखाना चाहते थे जब उनके पास इसे बदलने की कोई ताक़त नहीं थी।
पूर्व आईएएस अधिकारी शाह फैसल ने 2019 के मार्च महीने में राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की थी। उन्होंने कश्मीर में लगातार हो रही हत्याओं और भारतीय मुसलमानों के हाशिये पर होने का आरोप लगाते हुए पिछले साल जनवरी में ही पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने पार्टी का नाम जम्मू एंड कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट रखा। पिछले साल 5 अगस्त को जब जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 में फेरबदल का फ़ैसला हुआ था तब बाक़ी नेताओं के साथ शाह फैसल को भी हिरासत में रखा गया था। कुछ वक़्त पहले ही उन्हें छोड़ा गया है।
राजनीति छोड़ने की घोषणा के बाद 'द इंडियन एक्सप्रेस' को दिए इंटरव्यू में फैसल ने कहा कि हिरासत उनके लिए 'काफ़ी सीख देने वाला चरण' साबित हुआ। उन्होंने कहा, 'मुझे एहसास हुआ कि आख़िरकार आप बिल्कुल अकेले होते हैं। यह आपका परिवार है जो सबसे अधिक कष्ट सहता है। विडंबना यह है कि जिनके लिए आप खड़े प्रतीत होते हैं, वे आपके दुख से एक दुखद आनंद की अनुभूति कर रहे होते हैं। हिरासत ने मेरे मन में यह बात साफ़ कर दी कि मैं कहीं और से जुड़ा हूँ। मैं उन लोगों के लिए अपने जीवन को ख़राब नहीं कर सकता, जो मेरे लिए आवाज़ तक नहीं निकालते।'
बता दें कि कुछ ऐसी ही पीड़ा जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था कि यह शायद पहली बार था राजनीतिक रूप से मुझे लगा कि हम बिल्कुल अकेले हैं।
अरविंद केजरीवाल, चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं का नाम लेकर उमर अब्दुल्ला ने कहा था, ‘जब उन लोगों को ख़ुद के लिए ज़रूरी था तो वे हमारा समर्थन पाने पर ख़ुश थे, लेकिन वे हमारी तकलीफों में शामिल नहीं हुए। ईमानदारी से, अब मैं उनमें से किसी के लिए खड़ा नहीं होऊँगा। उनमें से एक के लिए भी नहीं। मैं उनमें से किसी के लिए प्रचार नहीं करूँगा, मैं उनमें से किसी का भी समर्थन नहीं करूँगा और ख़ुदा न करे किसी को भी जेल हुई तो मैं उनके लिए एक शब्द भी नहीं बोलूँगा, क्योंकि वे तब नहीं बोले जब यहाँ के लोग पीड़ित थे।’
इस इंटरव्यू में शाह फैसल ने कहा कि एक धारणा बनाई गई थी कि वह एक राष्ट्र-विरोधी हैं। उन्होंने कहा, 'पिछले एक साल में मेरे कुछ विवादित बयानों के कारण, एक धारणा बनी थी कि मैं एक राष्ट्र-विरोधी हूँ…। मेरे कुछ बयानों ने ऐसे बहुत से लोगों को निराश कर दिया, जिनका मेरे प्रति स्नेह था। मैं उसे पहले की तरह करना चाहता हूँ।'
इस सवाल पर कि क्या वह सरकारी सेवा में लौटने पर विचार करेंगे, इस पर सीधे जवाब नहीं देते हुए फैसल ने कहा कि उनके आगे जीवन पड़ा है और वह आगे बढ़ना चाहते हैं और कुछ करना चाहते हैं। बता दें कि आईएएस सेवा से दिया गया उनका इस्तीफ़ा अब तक स्वीकार नहीं किया गया है। वह पहले ऐसे कश्मीरी हैं जिन्होंने 2009 में सिविल सेवा परीक्षा में टॉप किया।
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