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बीजेपी सांसद ने की लद्दाख के लिए अलग विधायिका की माँग

ऐसे समय जब जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक हो रही है, लद्दाख के लिए अलग विधायिका की माँग ज़ोर पकड़ रही है। 

लद्दाख के राजनीतिक-सामाजिक संगठन पहले से ही यह माँग करते आए हैं, इसे अब मुद्दा बनाया है लद्दाख के बीजेपी सांसद जामयांग त्सेरिंग नामग्याल ने। लेकिन पूर्व सांसद थुप्सतन छेवांग भी उनके साथ हैं। 

क्या कहना है लद्दाख के लोगों का?

छेवांग लद्दाख के राजनीतिक-सामाजिक संगठनों के शीर्ष संगठन से जुड़े हुए हैं। उन्होंने 'इंडियन एक्सप्रेस' से कहा,

अनुच्छेद 370 और 35 ए ख़त्म किए जाने के बाद हम संविधान की छठी अनुसूची के तहत ऐसी व्यवस्था चाहते हैं जिससे हमारी ज़मीन, भाषा, संस्कृति और रोज़गार की रक्षा की जा सके।


थुप्सतन छेवांग, पूर्व सांसद, लद्दाख

उन्होंने इसके आगे कहा,  'हमने अपनी माँगों में बदलाव किया है और अब इस केंद्र-शासित क्षेत्र के लिए अलग विधायिका चाहते हैं।' 

अलग विधायिका क्यों?

उन्होंने कहा कि लद्दाख के सामाजिक संगठनों की शीर्ष संस्था की बैठक हाल ही में हुई, जिसमें यह फ़ैसला किया गया कि अलग विधायिका की माँग की जाए क्योंकि बदली हुई राजनीतिक स्थिति व प्रशासनिक व्यवस्था और ढाँचे में जनता की आकांक्षाओं को तब तक पूरा नहीं किया जा सकता है, जब तक क़ानून बनाने या उसमें संशोधन करने का अधिकार न हो। 

छेवांग ने कहा कि यदि छठी अनुसूची के प्रावधानों के तहत केंद्र-शासित क्षेत्र के लिए अलग विधायिका का गठन नहीं किया जा सकता हो तो हम केंद्र से आग्रह करते हैं कि संविधान में एक अनुसूची जोड़ी जाए।

गृह मंत्री से मुलाक़ात

लद्दाख स्वायत्त विकास परिषद के अध्यक्ष ताशी ग्यालसन भी इस बैठक में मौजूद थे। लद्दाख के लोगों ने इस मुहिम में कारगिल के लोगों को भी शामिल करने का निर्णय किया है।

छेवांग ने कहा कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ उनकी दो बैठकें हो चुकी हैं। अमित शाह ने कहा था कि केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी. कृष्ण रेड्डी की अगुआई में एक कमेटी बनाई जाएगी। यह कमेटी अनुच्छेद 370 और 35 'ए' के रद्द किए जाने के बाद की बदली हुई स्थिति में लद्दाख के लोगों के हितों की रक्षा पर विचार विमर्श करेगी और उनकी आशंकाओं को दूर करेगी। 

ख़ास ख़बरें

क्या है छठी अनुसूची?

संविधान की छठी अनुसूची में स्वायत्त परिषदों का गठन करने के प्रावधान हैं। इसके तहत असम, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल में स्वायत्त परिषदों का गठन किया गया था। 

जम्मू-कश्मीर में कारगिल और लेह के लिए दो अलग-अलग लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद का गठन किया गया था। 

अब माँग यह उठ रही है कि पूरे लद्दाख केंद्र-शासित क्षेत्र के लिए विधायिका का गठन किया जाए। 

separate legislature demanded for ladakh - Satya Hindi

परिसीमन आयोग 

एक दूसरे घटनाक्रम में जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग ने 20 ज़िला विकास परिषदों के उपायुक्तों से बैठक की है। इस बैठक की अध्यक्षता चुनाव उपायुक्त चंद्र भूषण ने की। 

इस बैठक में ज़िला विकास परिषद उपायुक्तों से कहा गया कि वे अपने इलाक़े की समस्याएं बताएं, उन्हें दूर करने के उपाय सुझाएं और लोगों की आकांक्षाओं को पूरी करने के लिए क्या कदम उठाए जाएं, ये बताएं। 

परिसीमन आयोग ने ज़िला परिषदों से जनसंख्या और दूसरे आँकड़े भी माँगे हैं।

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रंजना देसाई, अध्यक्ष, जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग

बता दें कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म करने और उसे दो केंद्र-शासित क्षेत्रों में बाँटने के प्रस्ताव को संसद से मंज़ूरी मिलने के बाद परिसीमन आयोग का गठन किया गया। इसकी प्रमुख रिटायर्ड जज जस्टिस रंजना देसाई हैं। 

परिसीमन आयोग को विधानसभा क्षेत्रों का निर्धारण फिर से करना है। पहले जम्मू में 37 और कश्मीर में 46 यानी कुल मिला कर 87 विधानसभा सीटें थीं। लद्दाख के केंद्र-शासित क्षेत्र बनने के बाद यह संख्या घट कर 83 हो गई। 

विधानभा सीटों की संख्या में सात की वृद्धि की जा सकती है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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