नौकरशाह से राजनेता बने शाह फ़ैसल पर लगा पब्लिक सेफ़्टी एक्ट (पीएसए) हटा लिया गया है और अब जल्द ही उन्हें रिहा किया जा सकता है। फ़ैसल ने केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने की तीख़ी आलोचना की थी। फ़ैसल को पिछले साल अगस्त में दिल्ली एयरपोर्ट पर तब हिरासत में ले लिया गया था, जब वह विदेश जा रहे थे। कुछ समय बाद उन पर पीएसए लगा दिया गया था।
केंद्र सरकार ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती पर भी पीएसए लगा दिया था। फ़ारूक और उमर को इस साल मार्च में रिहा कर दिया गया था। जबकि महबूबा मुफ़्ती को अपने घर जाने की अनुमति दी गई है लेकिन उन्हें आधिकारिक रूप से रिहा नहीं किया गया है।
मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाये जाने के बाद से ही कई नेताओं को पहले हिरासत और फिर राजनीतिक नज़रबंदी में रखा गया था। इसके बाद कई नेताओं पर पीएसए लगा दिया गया था।
फ़ैसल ने पिछले साल जनवरी में कश्मीर में हत्याएं होने की बात कहते हुए नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था और राजनीति में आने की इच्छा जताई थी।
बेहद ख़तरनाक है पीएसए
8 अप्रैल, 1978 को जम्मू एवं कश्मीर जन सुरक्षा अधिनियम (जेएंडके पीएसए) को मंजूरी दी गई थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री शेख अब्दुल्ला ने इसे विधानसभा से पारित कराया था। इसके तहत 16 साल से अधिक की उम्र के किसी भी आदमी को गिरफ़्तार किया जा सकता है और बग़ैर मुक़दमा चलाए उसे दो साल तक जेल में रखा जा सकता है। 2018 में इसमें संशोधन किया गया, जिसके तहत यह प्रावधान जोड़ा गया कि जम्मू-कश्मीर के बाहर के भी किसी आदमी को पीएसए के तहत गिरफ़्तार किया जा सकता है।
इस क़ानून के तहत कोई व्यक्ति यदि ऐसा कोई काम करता है, जिससे क़ानून व्यवस्था पर बुरा असर पड़ता है तो उसे एक साल के लिए गिरफ़्तार किया जा सकता है।
और यदि कोई आदमी ऐसा कुछ करता है जिससे राज्य की सुरक्षा पर कोई संकट खड़ा होता है तो उसे दो साल के लिए जेल में रखा जा सकता है। इस क़ानून में यह कहा गया है कि पीएसए के तहत गिरफ़्तारी का आदेश डिवीज़नल कमिश्नर या ज़िला मजिस्ट्रेट दे सकते हैं।
साथ ही यह भी कहा गया है कि गिरफ़्तार करने वाले आदमी के लिए यह बताना ज़रूरी नहीं होगा कि वह क्यों गिरफ़्तार कर रहा है।
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