5 अगस्त, 2019
पिछले साल 5 अगस्त को, नई दिल्ली ने एकतरफा रूप से जम्मू-कश्मीर के विशेष संवैधानिक दर्जा को समाप्त करने और राज्य का दर्जा छीनने के साथ ही इंटरनेट सेवा, संचार के सभी साधन यहाँ तक कि लैंडलाइन फ़ोन तक काट दिए थे। कई हफ्तों के बाद फ़ोन सेवा बहाल कर दी गई, लेकिन लगभग छह महीने तक इंटरनेट सेवा पूरी तरह से बंद रही। जनवरी में, इसे आंशिक रूप से 2-जी गति पर बहाल किया गया था।पिछले आठ महीनों से, जम्मू- कश्मीर के 70 लाख नागरिकों के पास केवल 2-जी स्पीड इंटरनेट सेवा है। इस प्रकार, यह दुनिया का एकमात्र क्षेत्र बन गया है, जहाँ नागरिकों को सबसे लंबे समय से इंटरनेट से वंचित रखा गया है।
अर्थव्यवस्था पर बुरा असर
इंटरनेट सेवा की अनुपलब्धता का कश्मीर के सभी क्षेत्रों में बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष शेख़ आशिक ने सत्य हिंदी से बात करते हुए कहा, ‘इंटरनेट छह महीने से बंद और 2-जी की गति पर फिर से शुरू होने से न केवल हमारे वाणिज्यिक, चिकित्सा, शैक्षिक और पत्रकारिता क्षेत्रों पर असर पड़ा है, बल्कि हमारे हस्तशिल्प उद्योगों को भी इससे भारी नुकसान हुआ है।’ उन्होंने कहा,“
इंटरनेट की अनुपलब्धता के कारण बड़ी संख्या में लोगों, विशेषकर युवाओं को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। हस्तशिल्प उद्योग ने निर्यात कार्य बंद कर दिया है और इस ने लाखों कारीगरों को प्रभावित किया है।’
शेख़ आशिक, अध्यक्ष, कश्मीर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज
आईटी में नौकरी गई
इंटरनेट सेवा बंद होने से सबसे अधिक नुक़सान सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र को उठाना पड़ा है जो जारी है। विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले साल 5 अगस्त को इंटरनेट सेवा पूरी तरह से बंद होने के परिणामस्वरूप विभिन्न राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आईटी कंपनियों के साथ काम करने वाले 1,200 लोगों ने अपनी नौकरी खो दी।पर्यटन बदहाल
एक अन्य उदाहरण श्रीनगर के अशफाक बट हैं। अशफाक एक प्रसिद्ध ट्रैवल एजेंसी, वैली हॉलीडे के निदेशक हैं। लेकिन उनका व्यापार पूरे देश में फैला हुआ है। अशफाक की कंपनी के कई घरेलू और विदेशी, विशेष रूप से चीनी, टूर और ट्रैवल एजेंसियों के साथ व्यापार समझौते हैं।“
‘पर्यटकों को आकर्षित करने और उन्हें आमंत्रित करने, उनके संपर्क में रहने, उनके लिए हवाई जहाज का टिकट बुक करने, ठहरने की व्यवस्था करने और यात्रा के लिए वाहनों की बुकिंग आदि के लिए इंटरनेट बेहद ज़रूरी है।’
अशफाक बट, व्यवसायी
स्टार्ट अप्स कैसे स्टार्ट हों?
सरकार ने कश्मीर में बढ़ती बेरोज़गारी को रोकने के लिए कुछ साल पहले कई व्यापार और औद्योगिक योजनाओं की शुरुआत की थी। इन योजनाओं के तहत, शिक्षित युवा लड़कों और लड़कियों ने नई और कुछ अनूठी वाणिज्यिक और औद्योगिक परियोजनाएं शुरू कीं।इंटरनेट पर प्रतिबंध के कारण, इन स्टार्ट-अप्स को गंभीर नुक़सान पहुंचा है। यह सब उस समय हुआ जब बड़ी संख्या में कश्मीरी युवा पहले से ही बेरोज़गार थे।
बेरोज़गारी
2016 की आर्थिक सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि जम्मू- कश्मीर में 18 से 29 वर्ष (24.6%) के बीच बड़ी संख्या में युवा बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं। यह स्पष्ट है कि सरकार ने बेरोज़गारी को कम करने के बजाय अब इंटरनेट सेवा को निलंबित करके इसे बढ़ा दिया है।ऑनलाइन क्लास नहीं
वर्तमान में, कोविड-19 के कारण, दुनिया भर में ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली को अपनाया गया है। लेकिन दुर्भाग्य से, 2 जी इंटरनेट सेवा के कारण, हमारे अधिकांश बच्चे भी ऑनलाइन शिक्षा से लाभ उठाने में असमर्थ हैं। देश के अन्य राज्यों में शिक्षकों को वेबिनार के माध्यम से ऑनलाइन शिक्षा में प्रशिक्षित किया जा रहा है। क्या हम ऐसा कर सकते हैं?’चिकित्सा
कश्मीर शायद एकमात्र ऐसी जगह है जहाँ इंटरनेट की कम गति के कारण, मरीज वीडियो कॉल पर डॉक्टरों से संवाद करने में सक्षम नहीं हैं और डॉक्टर खुद अपना काम ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। कुछ महीने पहले, श्रीनगर में एक प्रमुख चिकित्सा संस्थान महाराजा हरि सिंह अस्पताल में तैनात प्रमुख फिजिशियन डॉ सलीम इकबाल (प्रोफेसर ऑफ़ सर्जरी, सरकारी मेडिकल कॉलेज, श्रीनगर ) ने खुले तौर पर एक सामाजिक नेटवर्किंग साइट पर अपनी निराशा व्यक्त की।इंटरनेट मौलिक अधिकार
क़ानूनी रूप से इंटरनेट सेवा को नागरिकों का मौलिक अधिकार घोषित किया गया है। चार साल पहले, 2016 में, न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की एक पीठ ने इंटरनेट सेवा को नागरिकों का ‘मौलिक अधिकार’ घोषित किया था।अदालत ने स्पष्ट किया था कि इंटरनेट का उपयोग ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के अधिकार से संबंधित है, और कोई भी सरकार इस अधिकार से नागरिकों को वंचित नहीं कर सकती है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
इतना ही नहीं, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में दिशानिर्देशों को निर्धारित करते हुए आगे कहा कि देश के संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत, इंटरनेट के माध्यम से लोगों द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति वास्तव में उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जुड़ी है।हैरानी की बात है कि जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट पर प्रतिबंध सरकार द्वारा 135 साल पुराने भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम के तहत लगाया गया है।
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