अतिरिक्त बलों को वापस भेजना
पहले 10 हज़ार सुरक्षा कर्मियों को वापस भेजने के मुद्दे पर बुनियादी तथ्यों को बताया जा सकता है। पिछले साल 5 अगस्त को, मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर के विशेष संवैधानिक दर्जे को समाप्त कर और राज्य का दर्जा छीन कर इसे दो केंद्र शासित क्षेत्रों में विभाजित करने के एकतरफा कदम से घाटी में संभावित सार्वजनिक प्रतिरोध को रोकने के लिए सीआरपीएफ, बीएसएफ, एसएसबी और सीआईएसएफ की 4 सौ अतिरिक्त कंपनियों को घाटी में भेजा था।
पिछले 30 वर्षों के दौरान प्रत्येक असाधारण स्थिति, यहाँ तक कि अमरनाथ यात्रा और चुनावों की पूर्व संध्या पर, अतिरिक्त बलों को कश्मीर में तैनात करने के लिए बाहर से लाया जाता है और तब वापस भेजा जाता है जब उनका काम ख़त्म हो जाता है।
क्या राजनीतिक प्रक्रिया शुरू हो रही है?
यह निर्विवाद है कि पिछले साल 5 अगस्त के बाद से अब तक बीजेपी और अपनी पार्टी को छोड़कर सभी राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर कश्मीर में प्रतिबंध लगा दिया गया है। सैयद अल्ताफ़ बुख़ारी के नेतृत्व में गठित 'आपनी पार्टी' मूल रूप से पीडीपी के 31 भगोड़ों या निष्कासित लोगों का एक संगठन है, जो इस वर्ष मार्च में स्थापित किया गया है। आम धारणा है कि उसे बीजेपी का आशीर्वाद हासिल है। पिछले एक साल के दौरान केवल बीजेपी और अपनी पार्टी को राजनीतिक गतिविधियों को जारी रखने की अनुमति दी गई है।
इस बैठक में नैशनल कॉन्फ्रेंस के कई वरिष्ठ नेताओं, अब्दुल रहीम राथर, अली मोहम्मद सागर, नासिर असलम वानी और मोहम्मद शफ़ी ओरी के साथ-साथ नेशनल कॉन्फ़्रेंस के दो सदस्यों ने भाग लिया। संसद सदस्य अकबर लोन और हसनैन मसूदी भी उपस्थित थे।
चुनाव की तैयारी
पीडीपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती अभी भी सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के तहत क़ैद हैं। कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी और अन्य छोटे राष्ट्रीय मुख्यधारा के दलों ने अभी तक यह संकेत नहीं दिया है कि वे अपनी राजनीतिक गतिविधियों को फिर से शुरू करेंगे। उनमें से कुछ अभी भी अपने घरों में बंद हैं। बीजेपी को छोड़कर सभी दलों ने पिछले साल अक्टूबर में जम्मू-कश्मीर में हुए ब्लॉक विकास परिषद चुनावों का बहिष्कार किया था।सरकार विधानसभा चुनावों से पहले खाली पड़े पंचों और सरपंचों की 12,000 सीटों के लिए चुनाव कराना चाहती है। बीजेपी महासचिव और कश्मीर मामलों के प्रभारी ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि जो लोग धारा 370 को वापस लाने की बात कर रहे हैं, 'उन्हें हुर्रियत में शामिल हो जाना चाहिए'।
क्या करेंगे राजनीतिक दल?
इन परिस्थितियों में यह सवाल है कि क्या ये सभी मुख्यधारा की पार्टियाँ अब पिछले साल 5 अगस्त को हुई घटना को भूलकर राजनीतिक क्षेत्र में कूदेंगीं? यदि हाँ, तो यह देखना दिलचस्प होगा कि आम जनता, यहाँ तक कि उनके अपने कार्यकर्ता, इस पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं।ये दल इस बार मतदाताओं को लुभाने के लिए क्या कहेंगे और अब उनका चुनावी घोषणापत्र क्या होगा? जनता से क्या वादे करेंगे?
हिंसा जारी है
घाटी के किसी न किसी हिस्से में सेना और आतंकवादियों के बीच झड़पें हर कुछ दिन बाद होती रहती हैं। ताज़ा संघर्ष 4 अगस्त को उत्तरी कश्मीर के केरी इलाक़े में हुआ, जिसमें 3 सुरक्षाकर्मी और 2 उग्रवादी मारे गए। कश्मीर में जारी हिंसा को लेकर स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल झड़पों में 40 से अधिक सुरक्षाकर्मी और 160 आतंकवादी मारे गए हैं।
आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, इस साल के पहले 5 महीनों में 35 स्थानीय युवा उग्रवादियों के साथ शामिल हो गए हैं, जबकि सैन्य अधिकारियों का कहना है कि आतंकवादी फिर से एलओसी पर घुसपैठ करने के लिए तैयार हैं।
घुसपैठ जारी है
पिछले महीने, सेना के दूसरे इन्फैंट्री डिविज़न के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) मेजर जनरल वरिंदर वत्स ने उत्तरी कश्मीर के बारामूला में संवाददाताओं से कहा, 'सीमा पार से कम से कम 250 आतंकवादी घुसपैठ की तैयारी में बैठे हैं।' उन्होंने कहा कि पाकिस्तान सेना घुसपैठ की प्रतीक्षा कर रहे इन आतंकवादियों की सहायता और सुविधा दे रही है।नियंत्रण रेखा पर गोलीबारी
नियंत्रण रेखा पर हिंसा की घटनाएँ भी अक्सर होती हैं। पाकिस्तानी रेंजर्स आए दिन भारतीय चौकियों को निशाना बनाते रहते हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आँकड़ों के मुताबिक़, पिछले साल पाकिस्तानी सेना ने पिछले साल 3,086 बार और इस साल मई तक 1,547 बार बिना किसी उकसावे के संघर्षविराम का उल्लंघन किया है। इन आंकड़ों को देख कर सीमा पर स्थिति का अच्छी तरह से आकलन किया जा सकता है।
मुख्यधारा के नेताओं को ख़तरा
हाल के हफ़्तों में उग्रवादियों ने आधे दर्जन से अधिक बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमला किया और मार डाला। अभी सरकार ने ज़मीनी स्तर के 1,000 नेताओं और कार्यकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने का निर्णय लिया है, जो ख़तरे में हैं। इनमें से ज़्यादातर पंच और सरपंच हैं। उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में 3,650 सरपंच और 23,660 पंच हैं।
कई राजनीतिक कार्यकर्ता वर्तमान में सरकारी आवासों, होटलों और गेस्ट हाउसों में रखे जा रहे हैं। अगर सभी मुख्यधारा के संगठन चुनावी प्रक्रिया में कूद जाते हैं और सक्रिय हो जाते हैं, तो उनकी सुरक्षा सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी।
खाई को पाटना कितना आसान?
यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि बीजेपी की केंद्र सरकार घाटी और नई दिल्ली में लोगों के बीच विश्वास को कैसे बहाल करेगी, जिसे पिछले साल 5 अगस्त को ठेस लगी थी। यह उल्लेखनीय है कि घाटी में ही नहीं लद्दाख और करगिल में भी आक्रोश की आवाजें सुनाई दे रही हैं। यहाँ तक कि कुछ कश्मीरी पंडित नेताओं ने भी इसके ख़िलाफ़ अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है।
कुछ कहना जल्दबाजी
15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस समारोह को संबोधित करते हुए उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने घोषणा की थी कि जम्मू-कश्मीर में बातचीत की प्रक्रिया जल्द ही शुरू होगी। उन्होंने कहा था कि 'हम जम्मू-कश्मीर के बारे में नैरेटिव को बदलना चाहते हैं और शांति, विकास और सामाजिक समानता पर आधारित नैरेटिव बनाना चाहते हैं।'
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