जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने घाटी में फैले ड्रग्स के ख़तरे को बेहद गंभीर ख़तरा बताया है। उन्होंने कहा है कि वर्तमान में समाज ड्रग्स के जिस खतरे का सामना कर रहा है, वह आतंकवाद से भी बड़ा ख़तरा है। दिलबाग सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस से इंटरव्यू में ये बातें कहीं। दरअसल, अंग्रेजी अख़बार ने जम्मू कश्मीर में ड्रग्स के हालात पर एक स्टोरी की है। वही जम्मू कश्मीर जहाँ लगातार ड्रोन से ड्रग्स की तस्करी की ख़बरें आ रही हैं। यह दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान की ओर से ड्रोन से ड्रग्स गिराए जा रहे हैं। खुद पाकिस्तान के एक शीर्ष अधिकारी ने भी हाल ही में यह बात कबूल की थी। तो क्या जम्मू कश्मीर को अब ड्रग्स से तबाह करने की साज़िश है? आख़िर ड्रग्स को लेकर हालात क्या हैं?
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार पूरी घाटी में ड्रग्स ने युवाओं को अपनी आगोश में जकड़ लिया है। ड्रग्स की लत विनाशकारी महामारी की तरह परिवारों में कहर बरपा रही है। दो महीनों में इंडियन एक्सप्रेस ने बारामूला से श्रीनगर, कुपवाड़ा से अनंतनाग तक कई एडिक्ट उपचार केंद्रों का दौरा किया, प्रभावित परिवारों, डॉक्टरों, मनोचिकित्सकों और परामर्शदाताओं, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों से बात की।
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार एक साल में श्रीनगर के एसएमएचएस अस्पताल में घाटी के सबसे बड़े जिला नशा मुक्ति केंद्र में ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या मार्च 2023 के अंत में 75% बढ़कर 41,110 हो गई। इसका मतलब है कि ओपीडी में हर 12 मिनट में ड्रग्स का एक मरीज आता है।
पिछले 18 महीनों में कश्मीर डिवीजन के 10 में से आठ जिलों को व्यसन उपचार सुविधा (एटीएफ) मिली; शेष दो जिलों में से एक (कुपवाड़ा) में नशा मुक्ति केंद्र है और दूसरे (गांदरबल) में जल्द ही एटीएफ होगा। इस अवधि में पांच जिलों - बांदीपोरा, बडगाम, शोपियां, कुलगाम और पुलवामा में एटीएफ ने सामूहिक रूप से 6,000 मरीजों का इलाज किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 15-30 वर्ष की आयु के युवा पुरुषों में ड्रग्स का उपयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है।
जम्मू-कश्मीर सरकार के सहयोग से इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज, कश्मीर यानी इम्हान्स-के द्वारा 2022-23 सर्वेक्षण में कहा गया है कि 25% उपयोगकर्ता बेरोजगार हैं, लेकिन केवल 8% निरक्षर हैं; 15% स्नातक, 14% इंटरमीडिएट और 33% मैट्रिक हैं।
संकट के बारे में पूछे जाने पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने अख़बार को बताया, 'इस मुद्दे पर हमारा अत्यधिक ध्यान है… एक, ड्रग्स की आपूर्ति श्रृंखला को ध्वस्त किया जाना चाहिए। दूसरा, जागरूकता बढ़ाना और तीसरा, पीड़ित के साथ अपराधी जैसा व्यवहार न करना और पुनर्वास के अवसर प्रदान करना। उनके नेटवर्क को निशाना बनाने के लिए अधिक गिरफ्तारियां हुई हैं, अधिक मामले हैं, और हमने उन लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई की है जो सरकार में हो सकते हैं।'
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घाटी में मनोचिकित्सकों और डॉक्टरों को परेशान करने वाली बात यह है कि सभी उपयोगकर्ताओं में से 90 प्रतिशत से अधिक युवा पुरुष हैं - जिनकी औसत आयु लगभग 28 वर्ष है। कुल में से 52,404 (या 77.67 प्रतिशत) व्यक्तियों ने हेरोइन का सेवन किया। यदि हेरोइन सबसे अधिक खपत वाला ड्रग्स है तो यह सबसे महंगा भी है। इम्हान्स-के सर्वेक्षण के अनुसार, एक उपयोगकर्ता द्वारा औसत मासिक खर्च 88,183 रुपये है।
जम्मू कश्मीर में ड्रग्स की ऐसी ख़राब हालत को लेकर पुलिस महानिदेशक दिलबाग सिंह ने कहा है कि 'अगर हमने ध्यान नहीं दिया और आज ड्रग्स की चुनौती का सामना करने के लिए आगे नहीं बढ़े तो बहुत बड़ा दर्द हमारा इंतजार कर रहा होगा।' उन्होंने कहा है कि जम्मू कश्मीर पंजाब की राह पर है।
वह कहते हैं कि 'सबसे पहले पाकिस्तानी एजेंसियाँ आतंकवाद के कारोबार में थीं, उन्होंने आतंक को वित्त पोषित करने के लिए ड्रग्स का उपयोग करना शुरू किया। उन्होंने समाज को नुकसान पहुंचाने के लिए आतंकवाद को खारिज कर शांति चुनने वाले जम्मू-कश्मीर के लोगों को दंडित करने के लिए ड्रग्स का नीति के रूप में इस्तेमाल किया है। यह पंजाब में भी इसी तरह किया गया था और जबकि राज्य का उग्रवाद काफी समय पहले समाप्त हो गया, ड्रग्स की समस्या पहले की तरह ही भयावह है। हम उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।'
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