एक और चुनावी सूबे जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के भीतर रार देखने को मिली है। इस केंद्र शासित प्रदेश से आने वाले बड़े कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने सूबे की कांग्रेस प्रचार कमेटी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है। आजाद को कुछ घंटे पहले ही प्रचार कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था। आजाद ने इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की राजनीतिक मामलों की कमेटी के सदस्य का पद भी छोड़ दिया है।
दो लोकसभा चुनाव और कई राज्यों में चुनावी हार का स्वाद चख चुकी कांग्रेस के लिए जम्मू-कश्मीर में आजाद का यह फैसला सियासी नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो सकता है।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, आजाद के एक करीबी ने कहा कि आजाद का अपमान हुआ है क्योंकि वह सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राजनीतिक मामलों की कमेटी के सदस्य हैं और केंद्र शासित प्रदेश की किसी कमेटी में उन्हें शामिल करना बेहद अजीब है।
जल्द हो सकते हैं चुनाव
जम्मू-कश्मीर में इस साल के अंत में या अगले साल की शुरुआत में विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं।
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का अध्यक्ष कौन होगा इसे लेकर कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की प्रभारी रजनी पाटिल ने लंबे वक्त तक मंथन किया था और इसके बाद ही मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के नए कांग्रेस पदाधिकारियों की सूची जारी की थी।
पार्टी का अध्यक्ष कौन होगा इसके लिए गुलाम नबी आजाद के करीबी माने जाने वाले नेता दौड़ में आगे थे।
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विकार रसूल वानी बने अध्यक्ष
कांग्रेस ने मंगलवार को विकार रसूल वानी को जम्मू-कश्मीर कांग्रेस का अध्यक्ष नियुक्त किया था और रमन भल्ला को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया था। विकार रसूल वानी गुलाम नबी आज़ाद के करीबी हैं और हाईकमान ने उनकी पसंद को अहमियत दी है। लेकिन इसके बावजूद आजाद ने नाराजगी जताते हुए अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिया।
इससे पहले जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे गुलाम अहमद मीर के खिलाफ गुलाम नबी आजाद के समर्थकों ने मोर्चा खोल दिया था।
‘अपमानजनक फैसला’
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि गुलाम नबी आजाद को केंद्र शासित प्रदेश की प्रचार कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त करना अपमानजनक फैसला है। उन्होंने कहा कि आजाद चार प्रधानमंत्रियों के मंत्रिमंडल में रह चुके हैं और 7 साल तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि गुलाम नबी आजाद पिछले 37 साल से कांग्रेस में फैसले लेने वाली सर्वोच्च संस्था कांग्रेस वर्किंग कमेटी यानी सीडब्ल्यूसी के सदस्य हैं और कई राज्यों में पार्टी के प्रभारी भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसके बाद एआईसीसी में बैठे लोग उन्हें एक केंद्र शासित प्रदेश की प्रचार कमेटी का अध्यक्ष बना रहे हैं।
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यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी होगा कि गुलाम नबी आजाद ही वह नेता हैं जिनकी कयादत में कुछ साल पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी में बड़े बदलावों की मांग की गई थी। आजाद कांग्रेस में असंतुष्ट नेताओं के गुट G-23 के प्रमुख चेहरे हैं।
नेतृत्व संग खटपट
पार्टी ने इस बार उन्हें राज्यसभा चुनाव में भी उम्मीदवार नहीं बनाया था। गुलाम नबी आज़ाद को जब पद्मभूषण मिला था तो उस वक्त कांग्रेस के कई नेताओं ने इसका खुले मन से स्वागत नहीं किया था और केंद्रीय नेतृत्व ने भी उन्हें इसके लिए बधाई नहीं दी थी। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संसद में गुलाम नबी आज़ाद की तारीफ किए जाने के बाद भी कांग्रेस के भीतर आज़ाद को लेकर अच्छी प्रतिक्रिया नहीं सुनाई दी थी।
गुलाम नबी आजाद के पार्टी के पदों को छोड़ने से पता चलता है कि कांग्रेस के लिए जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ पाना आसान नहीं होगा। क्योंकि आजाद निर्विवाद रूप से जम्मू-कश्मीर में पार्टी के सबसे बड़े चेहरे हैं।
धड़ाधड़ इस्तीफ़े
आजाद के इस्तीफा देने के बाद जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है। अब तक 3 बड़े नेता पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। इन नेताओं में सोपोर से दो बार के विधायक हाजी अब्दुल राशिद के अलावा वरिष्ठ नेता मोहम्मद अमीन भट्ट और गुलजार अहमद वानी शामिल हैं।
यहां वही फिर पुराना सवाल जिंदा होता है कि क्या कांग्रेस हाईकमान इतना कमजोर हो गया है कि उसके द्वारा की गई नियुक्तिों को लेकर बड़े नेता इस तरह खुलकर विरोध दर्ज करा रहे हैं।
पार्टी छोड़ रहे नेता
इसके अलावा तमाम बड़े नेता पार्टी भी छोड़ रहे हैं। बीते कुछ महीनों की बात करें तो पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल, पंजाब में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़, गुजरात में कार्यकारी अध्यक्ष रहे हार्दिक पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार और आरपीएन सिंह पार्टी से किनारा कर चुके हैं।
लगातार चुनावी हार का सामना कर रही कांग्रेस के लिए हिमाचल प्रदेश, गुजरात के साथ ही जम्मू-कश्मीर के चुनाव भी बेहद अहम हैं।
2024 का चुनाव
लगातार चुनावी हार से पस्त कांग्रेस के लिए 2024 का चुनाव बेहद अहम है। लेकिन 2024 का चुनाव लड़ने के लिए उसे 2022 और 2023 के चुनावी राज्यों में बड़ी जीत हासिल करनी होगी वरना वह यूपीए गठबंधन का नेतृत्व भी शायद नहीं कर पाएगी।
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