जम्मू-कश्मीर के नेताओं ने
आज दिल्ली में एक सर्वदलीय बैठक की और केन्द्र शासित प्रदेश में चुनाव कराने को
लेकर निर्वाचन आयोग से मुलाकात की। चुनाव आयाग से मुलाकात करने गये 13 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व नेशनल कॉन्फ्रेंस के
अध्यक्ष डॉ फारूक अब्दुल्ला ने किया।
चुनाव से मुलाकात करने
गये प्रतिनिधि मंडल में नेशनल कांफ्रेस के साथ कांग्रेस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक
पार्टी शामिल रही। प्रतिनिधिमंडल में महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला, प्रमोद तिवारी और नसीर हुसैन सांसद एनसी हसनैन मसूदी, रतन लाल गुप्ता (एनसी), रविंदर शर्मा (कांग्रेस), हरशदेव सिंह (पैंथर्स पार्टी),
मुजफ्फर शाह (एएनसी), अमरीक सिंह रीम (पीडीपी), मास्टर हरि सिंह (सीपीआईएम), गुलचैन सिंह (डोगरा सबा), मनेश सनानी (शिव सेना), तरनजीत सिंह टोनी (आप) और खजूरिया शामिल हुए।
चुनाव आयोग के साथ हुई बैठक
के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने
कहा कि चुनाव आयोग ने इस मामले को देखने का आश्वासन दिया है। अबदुल्ला ने प्रेस से
बात करते हुए कहा, "यह
दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक राज्य जो भारत का ताज है, उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। हम जम्मू-कश्मीर में
लोकतांत्रिक सरकार चाहते हैं।
बैठक से पहले संवाददाताओं
से बात करते हुए अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के 13 दलों ने आज यहां एक बैठक की और इस बात पर सहमति जताई कि
जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा बहाल किया जाना चाहिए। हम सभी इस मुद्दे पर एकमत
हैं कि जब स्थिति सामान्य है तो फिर जम्मू-कश्मीर में चुनाव क्यों कराए जा रहे
हैं।
एमसीपी प्रमुख ने शरद पवार
ने कहा कि वे भी इस मुद्दे पर सहमत हैं। पवार ने राष्ट्रीय राजधानी में
संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि हम सभी जम्मू
कश्मीर के लोगों का दर्द साझा करने और उन्हें आश्वासन देने के लिए श्रीनगर जाने को
तैयार हैं।
केंद्र द्वारा अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और इसे तीन केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा हटा दिया गया था।
जम्मू-कश्मीर के विभाजन से
पहले वहां आखरी चुनाव 2014 में कराया गया था। जिसमें पीडीपा और भाजपा ने मिलकर सरकार
बनाई थी। उसके बाद से वहां कोई चुनाव नहीं कराया गया है। जम्मू कश्मीर के अलग संविधान
के कारण वहां विधानसभा का कार्यकाल छह साल निर्धारित किया गया था। अगर राज्य का
विभाजन नहीं किया जाता तो 2019 में वहां चुनाव कराए जाने थे।
राज्य का विभाजन किये जाने
के बाद से वहां अभी तक चुनाव नहीं हुए हैं। उम्मीद की जा रही है कि इस साल चुनाव
कराए जा सकते हैं। अगर इस साल 90 सदस्यीय विधानसभा
के लिए चुनाव होते हैं, तो यह 2014
के बाद और राज्य का दर्जा समाप्त होने के बाद
होने वाला पहला चुनाव होगा।
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