अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद से हिरासत में लिए गए लोगों की याचिकाओं पर जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में क्या तेज़ी दिखाई दे रही है? ये वे याचिकाएँ हैं जो देश के हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वह अपनी सुरक्षा के लिए सरकार के गिरफ़्तारी या हिरासत के आदेश को चुनौती दे। ये याचिकाएँ हैं हैबियस कॉर्पस यानी बन्दी प्रत्यक्षीकरण की। यह नागरिकों को बिना किसी आरोप के हिरासत में लेने की सरकार के असीमित अधिकार के ख़िलाफ़ संविधान में सुरक्षा की गारंटी देती है। देश में उच्च न्यायालयों को विशेष रूप से इस रिट यानी याचिका से संबंधित आदेश जारी करने, तेज़ी से कार्य करने का अधिकार है। उच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह हिरासत में लिए गए व्यक्ति को कोर्ट के सामने पेश करने और उचित क़ानूनी प्रक्रिया को पालन करने का सरकार को आदेश दे।
पाँच अगस्त यानी अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद से जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में दायर की गई ऐसी ही याचिकाओं पर ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें कहा गया है कि पिछले चार हफ़्तों में यानी पाँच अगस्त से गुरुवार तक 252 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएँ जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की श्रीनगर बेंच के सामने आई हैं। इसमें ज़िला मजिस्ट्रेटों द्वारा पीएसए के तहत पारित गिरफ़्तारी के आदेशों को चुनौती दी गई है। अख़बार ने इनके रिकॉर्ड की पड़ताल कर लिखा है कि इन याचिकाओं पर सुनवाई में कम तेज़ी दिखाई गई है।
बता दें कि 5 अगस्त को सरकार ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त कर दिया था और इसे दो संघ शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया है। इस बड़े बदलाव के कारण किसी अनपेक्षित स्थिति से निपटने के लिए बड़े स्तर पर पाबंदी लगाई गई, सशस्त्र बल तैनात किए गए, संचार सेवाएँ बाधित कर दी गईं और बड़े पैमाने पर नेताओं और लोगों को हिरासत में लिया गया। सरकार के इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई। हाल ही में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट तक पहुँच नहीं होने की शिकायत भी मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के पास पहुँची थी। तब उन्होंने कहा था कि यदि ज़रूरत हुई तो वह जम्मू-कश्मीर का दौरा भी कर सकते हैं।
कोर्ट के लिहाज से ही जम्मू-कश्मीर में 16 अगस्त और 16 सितंबर के बीच काफ़ी कुछ बदला है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट के मुताबिक़ 16 अगस्त को जब सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस एस.ए. बोबडे ने कहा था कि उन्होंने जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल के साथ टेलीफ़ोन पर बातचीत की, जहाँ उन्होंने कहा कि ‘बीएसएनएल लाइनें अच्छी तरह से काम कर रही थीं’। और 16 सितंबर को जब भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने न्यायमूर्ति मित्तल से प्रतिबंधों के कारण उच्च न्यायालय तक पहुँच नहीं होने के आरोपों के बारे में रिपोर्ट माँगी तो स्थिति काफ़ी अलग थी। जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की श्रीनगर बेंच में एक अभूतपूर्व स्थिति सामने आई।
बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं की स्थिति
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने अपनी रिपोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं की पूरी पड़ताल की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च न्यायालय द्वारा कम तेज़ी दिखाई गई है। प्रत्येक मामला या तो स्वीकार किए जाने के चरण में है या फिर आदेशों के लिए सूचीबद्ध किया गया है। 147 याचिकाएँ स्वीकार किए जाने के चरण में हैं और 85 आदेशों को सूचीबद्ध किया गया है। 20 मामलों में स्थिति क्या है, यह पता नहीं चल सका।
रिपोर्ट के अनुसार, पहली याचिका 5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन द्वारा सीआरपीसी की धारा 491 के तहत दायर की गई थी। यह धारा बंदी प्रत्यक्षीकरण जारी करने के उच्च न्यायालय के अधिकार से संबंधित है। हालाँकि, इस मामले की स्थिति क्या है, यह पता नहीं है। दूसरी याचिका 20 अगस्त को दायर की गई थी। 20 अगस्त के बाद से दायर सभी याचिकाओं को पीएसए के तहत हिरासत में चुनौती दी गई थी। एक ही दिन में सबसे ज़्यादा याचिकाएँ 3 सितंबर को 24 याचिकाएँ दायर की गईं।
सरकार ने कितने मामलों में नोटिस जारी किए हैं, कितने में सरकार ने जवाब दिया है, इन सवालों के जवाब अभी तक साफ़ नहीं हैं।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़ 11 मामलों में जहाँ उच्च न्यायालय की एकल पीठ द्वारा दिए गए आदेश ऑनलाइन अपलोड किए गए हैं, लेकिन इससे पता चलता है कि इन मामलों में कोई जल्दी नहीं दिखाई गई है। उदाहरण के लिए, एक याचिका जो 23 अगस्त को दायर की गई थी, अंतिम बार 16 सितंबर 2019 को सूचीबद्ध की गई थी। फिर 16 सितंबर को आदेश में कहा गया कि अतिरिक्त महाधिवक्ता ने जवाबी हलफ़नामा दायर करने के लिए चार और सप्ताह माँगे हैं और अदालत द्वारा इसको अनुमति दे दी गई थी। अदालत अब इस मामले की सुनवाई 9 अक्टूबर को करेगी।
रिपोर्ट के अनुसार, एक अन्य मामले में जो लंबित है, अदालत ने 7 सितंबर को दायर की गई याचिका पर 13 सितंबर को सुनवाई की। इसने सरकार को नोटिस जारी किया और इसे चार सप्ताह का समय दिया। अदालत ने मामले को सुनवाई की अगली तारीख़ के रूप में 14 अक्टूबर के लिए सूचीबद्ध किया।
पीएसए की धारा 22 को चुनौती
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, 147 याचिकाओं में हिरासत और पीएसए की धारा 22 को चुनौती दी गई। धारा 22 को चुनौती देने का मतलब है कि याचिकाकर्ताओं ने हिरासत के आदेश को चुनौती दी है। यह इस आधार पर कि नेकनीयती में आदेश पारित नहीं किया गया था। 147 याचिकाओं में से 53 को आदेश के लिए सूचीबद्ध किया गया है और 90 अभी भी स्वीकार किए जाने के चरण में ही हैं।
अख़बार की रिपोर्ट में लिखा है कि 83 याचिकाएँ उच्च न्यायालय के समक्ष चली गई हैं और इसने अधिनियम की धारा 8 को चुनौती दी है। इसका मतलब है कि याचिकाकर्ताओं ने इस बात को चुनौती दी है कि उनकी गतिविधि राज्य की सुरक्षा के लिए ख़तरा नहीं है। ऐसी 83 याचिकाओं में से 18 आदेशों के लिए सूचीबद्ध हैं और 53 अभी भी स्वीकार किए जाने के चरण में हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक़ सोलह याचिकाओं में अधिनियम की धारा 13 के तहत हिरासत को चुनौती दी गई है जिसमें कहा गया है कि जिस आधार पर हिरासत के आदेश दिए गए हैं उन्हें प्रभावित व्यक्तियों को बताना होगा। इसके तहत हिरासत में लेने के आम तौर पर पाँच दिनों में और विशेष परिस्थितियों में दस दिन के अंदर अधिकारी को कारण बताना होता है।
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