अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद से हिरासत में लिए गए लोगों की याचिकाओं पर जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में क्या तेज़ी दिखाई दे रही है? ये वे याचिकाएँ हैं जो देश के हर नागरिक को यह अधिकार देता है कि वह अपनी सुरक्षा के लिए सरकार के गिरफ़्तारी या हिरासत के आदेश को चुनौती दे। ये याचिकाएँ हैं हैबियस कॉर्पस यानी बन्दी प्रत्यक्षीकरण की। यह नागरिकों को बिना किसी आरोप के हिरासत में लेने की सरकार के असीमित अधिकार के ख़िलाफ़ संविधान में सुरक्षा की गारंटी देती है। देश में उच्च न्यायालयों को विशेष रूप से इस रिट यानी याचिका से संबंधित आदेश जारी करने, तेज़ी से कार्य करने का अधिकार है। उच्च न्यायालय को यह अधिकार है कि वह हिरासत में लिए गए व्यक्ति को कोर्ट के सामने पेश करने और उचित क़ानूनी प्रक्रिया को पालन करने का सरकार को आदेश दे।
370- हाई कोर्ट में 252 गिरफ़्तारियों को चुनौती, फ़ैसला एक में भी नहीं
- जम्मू-कश्मीर
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- 20 Sep, 2019
अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद से हिरासत में लिए गए लोगों की याचिकाओं पर जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में क्या तेज़ी दिखाई दे रही है? ये याचिकाएँ हैं हैबियस कॉर्पस यानी बन्दी प्रत्यक्षीकरण की। इनमें 252 गिरफ़्तारियों को चुनौती दी गई है।

पाँच अगस्त यानी अनुच्छेद 370 में बदलाव के बाद से जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में दायर की गई ऐसी ही याचिकाओं पर ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें कहा गया है कि पिछले चार हफ़्तों में यानी पाँच अगस्त से गुरुवार तक 252 बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाएँ जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय की श्रीनगर बेंच के सामने आई हैं। इसमें ज़िला मजिस्ट्रेटों द्वारा पीएसए के तहत पारित गिरफ़्तारी के आदेशों को चुनौती दी गई है। अख़बार ने इनके रिकॉर्ड की पड़ताल कर लिखा है कि इन याचिकाओं पर सुनवाई में कम तेज़ी दिखाई गई है।