loader
रुझान / नतीजे चुनाव 2024

झारखंड 81 / 81

इंडिया गठबंधन
56
एनडीए
24
अन्य
1

महाराष्ट्र 288 / 288

महायुति
233
एमवीए
49
अन्य
6

चुनाव में दिग्गज

बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार

जीत

चंपाई सोरेन
बीजेपी - सरायकेला

जीत

बीएसई में भगदड़ क्यों, सेंसेक्स-निफ्टी क्यों हुए लहूलुहान?

बाज़ार में भगदड़... काला सोमवार... दलाल स्ट्रीट बनी हलाल स्ट्रीट... सेंसेक्स और निफ्टी लहूलुहान - यह सारी बातें सोमवार के बाज़ार पर चिपकाई जा सकती हैं। सुबह बाज़ार खुलने के कुछ ही मिनटों के भीतर निवेशकों के क़रीब सवा पाँच लाख करोड़ रुपए हवा हो चुके थे।

दोपहर होते होते यह आँकड़ा नौ लाख करोड़ पर पहुँच गया और बाज़ार बंद होने तक का अनुमान है क़रीब 6.81 लाख करोड़ रुपए का। यह सारी रक़म न किसी की जेब से निकली न किसी की जेब में गई, मगर इसे सांकेतिक या नोशनल नुक़सान कहा जाता है।

यानी शुक्रवार को बाज़ार बंद होते वक्त भारत के बाज़ार में सारे शेयरों की कुल मिलाकर जो क़ीमत थी, उसके मुकाबले सोमवार की सुबह दोपहर और शाम को इन शेयरों के दाम गिरने की वजह से उसमें कितनी कमी आई, यह उसका आँकड़ा था।

लेकिन रात गई तो बात गई। मंगलवार की सुबह फिर तेज़ी के साथ हुई, यानी वही पौने सात लाख करोड़ रुपए का घाटा कहाँ गया, पता नहीं।

अर्थतंत्र से और खबरें

कहाँ गए अरबों रुपए?

जिन लोगों ने न ख़रीदा न बेचा, उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ा। लेकिन फिर भी जिसने भी अपना पोर्टफोलियो खोलकर देखा, उसे कुछ न कुछ झटका तो लगा ही होगा। और यही पहला सबक भी है।

अगर आपने आज अपना पोर्टफोलियो देखा ही नहीं और इसकी वजह यह नहीं थी कि आपके पास वक्त नहीं था या आपको बाज़ार गिरने की ख़बर नहीं थी, तो फिर आपके लिए बाज़ार में मौके ही मौके हैं।

यानी आप सही जगह पर हैं, और जिन्होंने देखा, उनको कुछ वैसी फ़ीलिंग ज़रूर हुई होगी जैसी परीक्षा में फ़र्स्ट क्लास और डिस्टिंकशन के साथ पास होने के बाद भी मेरिट लिस्ट वाले को देखकर होती है।

यानी पिछले साल भर में या उससे पहले कितना कमाया वो वाला खाना नहीं दिख रहा होगा, नज़र सिर्फ उस कॉलम पर अटक गई होगी जहाँ आज का नुक़सान लिखा होता है।

सबसे ज़्यादा फ़िक्र में वे लोग हैं जो पिछले डेढ़ दो साल में शेयर बाज़ार में पहली बार आए हैं। ऐसे लोगों की गिनती कम भी नहीं है। 

इस दौरान लगभग 2.5 करोड़ नए निवेशकों ने बाज़ार में पहला कदम रखा है। इनमें से आधे से ज़्यादा तो इस साल अप्रैल के बाद ही आए हैं। ये वे लोग हैं जिन्होंने बाज़ार में सिर्फ़ तेज़ी देखी है और शायद वही तेज़ी इन्हें बाज़ार में खींचकर भी लाई है।

'मंदी नहीं देखी तो बाज़ार नहीं देखा'

बाज़ार की पुरानी कहावत है कि जब तक आपने मंदी नहीं देखी तब तक दरअसल आपने बाज़ार की असलियत भी नहीं देखी है। जो लोग मंदी का एक या ज़्यादा दौर देखने या झेलने के बाद भी बाज़ार में टिके रहते हैं वही लोग यहाँ लंबे दौर में मोटा मुनाफ़ा कमाते भी हैं और दूसरों को बताते भी हैं।

लेकिन फ़िक़्र उन लोगों की होती है जिनकी शुरुआत ही तेज़ी के एक ज़बरदस्त दौर में होती है और जो कुछ दिन की तेज़ी देखने के बाद अपनी काफ़ी मोटी रकम एक साथ बाज़ार में झोंक देते हैं।

यही नहीं, इनमें बहुत से ऐसे लोग भी होते हैं जो दोस्तों-रिश्तेदारों से उधार लेकर या फिर बाज़ार से ब्याज पर पैसा उठाकर भी लगाने लगते हैं। ऐसे मौसम में तमाम ब्रोकरों की तरफ़ से भी मार्जिन फ़ंडिंग की स्कीमें आने लगती हैं। यानी आप थोड़ा सा पैसा लगाएंगे बाकी ब्रोकर भरेंगे और उसपर आपको ब्याज भरना होगा।

NIFTY, sensex nodedive, BSE, dalal street bloodbath - Satya Hindi

अभी तो पार्टी शुरू हुई है!

जब तक बाज़ार तेज़ चलता है तब तक तो पार्टी चलती रहती है। रोज़ अपना पोर्टफ़ोलियो देखकर ख़ुश रहो और ज़्यादा बढ़ जाए तो मार्जिन पर और पैसे भी लगाते रहो। दिक़्क़त तब होती है जब अचानक बाज़ार गिरता है, जैसा इन दिनों दिखाई पड़ा।

जिसने घर से पैसे लगा रखे हैं परेशानी तो उन्हें भी होती है, लेकिन जिसने ब्रोकर से फ़ंडिंग करवाई है उन्हें तो तुरंत ही मार्जिन बढ़ाकर भरने की माँग आने लगती है। इन्हीं को मार्जिन कॉल कहते हैं।

डूबे हुए पैसे!

जो लोग यह पैसा नहीं दे पाते हैं उनके शेयर औने पौने में बेचकर अगर फ़ाइनेंस का पैसा पूरा हो गया तो वो सही वरना फिर उनके नाम और उधार भी चढ़ जाता है और मार्जिन में लगाए पैसे तो डूबे ही।

ऐसी मुसीबत में फंसने के बाद ही लोग या तो भारी संकट में फंस जाते हैं और किसी तरह उबर भी गए तो फिर दूध के जले की तरह शेयर बाज़ार में दोबारा न आने की कसम खाकर बैठ जाते हैं। उनको लगता है कि यह उनका सबसे समझदारी का फ़ैसला है, जबकि सच यह है कि यही उनकी सबसे बड़ी ग़लती साबित होती है।

जानकारों का कहना है कि इस तरह की बड़ी गिरावट असल में एक अच्छा मौका है कि अगर आपने इक्विटी में यानी शेयर बाज़ार में पूरा पैसा नहीं लगा रखा था तो आप अपना पोर्टफ़ोलियो दुरुस्त कर लें।

मंदड़ियों के हौसले बुलंद 

कोटक म्यूचुअल फंड के प्रबंध निदेशक नीलेश शाह ने एक इंटरव्यू में कहा कि साफ़ है कि बाज़ार में मंदड़ियों के हौसले बुलंद हैं जबकि खरीदार काफ़ी संभल संभल के चल रहे हैं। इसके बावजूद वे पूछते हैं कि पिछले साल भर में क़रीब सौ प्रतिशत की तेज़ी दिखाने के बाद बाज़ार अगर ऊपर से 10-12 प्रतिशत गिर गया तो इसे क़त्लेआम कहना कितना जायज़ है?

उनका कहना है कि ऐसी तेज़ी के बाद इस तरह की गिरावट या करेक्शन आम बात है और यह एक मौक़ा भी है खरीदारी के लिए। हालांकि यह पिछले साल मार्च की गिरावट जैसा बड़ा मौका नहीं है जब बाज़ार इतना गिर गया था कि सारे शेयर सस्ते मिल रहे थे। इस वक्त की गिरावट में शेयर सस्ते नहीं हुए हैं बल्कि अपने सही दाम पर पहुँच गए हैं।

NIFTY, sensex nodedive, BSE, dalal street bloodbath - Satya Hindi

गिरावट की वजहें?

बाज़ार की यह गिरावट मार्च 2020 जैसी तेज़ गिरावट तो नहीं है लेकिन इसमें कुछ फ़र्क़ ज़रूर है जो चिंता बढ़ा सकता है। इस वक़्त बाज़ार गिरने की तीन बड़ी वजहें हैं -

  1. कोरोना यानी ओमिक्रॉन संक्रमण का बढ़ता खतरा।.
  2. भारत के बाज़ारों से एफ़आईआई और एफ़पीआई का पैसा निकालना। 
  3.  महंगाई और बढ़ने की आशंका।

महँगाई का ख़तरा

कोरोना की पहली और दूसरी लहर के साथ महँगाई का ख़तरा लगभग नहीं था क्योंकि तब दुनिया भर की सरकारें नोट छापकर जनता को पैसे बाँटने में लगी थीं। इस बार उलटा चल रहा है, अमेरिका स्टिमुलस पैकेज की वापसी पर काम कर रहा है और अब कोरोना के साथ साथ नक़दी की कमी और महंगाई की मार भी तकलीफ़ बढ़ा रही है।

पश्चिमी दुनिया के उन सभी देशों में ब्याज बढ़ चुके हैं या बढ़ रहे हैं जहाँ पिछले डेढ़ साल से नोट छाप-छाप कर लोगों को मुफ़्त पैसे बाँटे गए थे। 

पिछले दो साल भारतीय बाज़ारों को दिसंबर में झटका नहीं लगा क्योंकि तब यूरोप और अमेरिका में इतने पैसे बाँटे गए थे कि उनके पास उस वक्त सिर्फ़ पैसा लगाने की ही चिंता थी, कहीं से निकालने की नहीं।

क्यों निकाल रहे हैं पैसे?

इसी पैसे का बड़ा हिस्सा भारत में भी आया और उसी के दम पर यहां के बाज़ार रॉकेट की तरह भाग रहे थे।

अब विदेशी निवेशकों की नज़र से देखिए तो भारत से पैसा निकालने के एक से ज़्यादा तर्क इस वक्त उनके पास हैं।

बाज़ार विशेषज्ञ अजय बग्गा का कहना है कि बड़े-बड़े हेज फ़ंड चलाने वाले मैनेजरों को दिसंबर के अंत तक के प्रदर्शन पर ही साल का बोनस मिलता है। इसलिए वे नहीं चाहेंगे कि अगले सात-आठ दिनों में कुछ गड़बड़ हो और उन्हें बोनस से हाथ धोना पड़े। इसीलिए वे ज़्यादा लालच छोड़कर जितने मुनाफ़े में हो सके बाज़ार से निकल लेना चाहते हैं।

NIFTY, sensex nodedive, BSE, dalal street bloodbath - Satya Hindi
दूसरी बड़ी वजह यह रही कि अमेरिका में जो बाइडन 'बिल्ड बैक बेटर' नाम का दो लाख करोड़ डॉलर का जो स्टिमुलस पैकेज लाना चाहते हैं उसे सीनेट की मंज़ूरी मिलना बहुत मुश्किल होता दिख रहा है। इस वजह से ही दुनिया भर के बाज़ारों में बिकवाली का एक झटका आया है।
बग्गा का कहना है कि अक्टूबर से अब तक भारत के बैंकों में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है कि बैंक निफ्टी में 17 प्रतिशत की गिरावट आ जाए। यह सिर्फ़ विदेशों से आने वाले पैसे में कमी का ही असर है कि इन शेयरों में मंदी जैसे हालात दिख रहे हैं।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली की एक वजह भारत के बाज़ार में पिछले साल भर में आया तेज़ उछाल भी है। जो बड़े फ़ंड दुनिया भर के बाज़ारों में पैसा लगाते हैं वे हरेक देश के लिए अपने पैसे का एक निश्चित हिस्सा ही लगाते हैं।

बिकवाली क्यों?

अगर किसी एक देश का शेयर बाज़ार बाकी के मुक़ाबले काफ़ी तेज़ी से बढ़ जाए जैसा पिछले सालभर में भारत में हुआ और बाकी देश उसके मुक़ाबले कम रफ़्तार से बढ़ें तो फिर पोर्टफ़ोलियो में उस देश की हिस्सेदारी अपनी तय सीमा से काफ़ी ज़्यादा हो जाती है। इसे फिर सही अनुपात में लाने के लिए भी विदेशी निवेशकों को उस देश में बिकवाली का सहारा लेना पड़ता है।

इसी तरह की गणित का असर है कि बहुत-सी बड़ी ब्रोकरेज कंपनियाँ इस वक्त भारत में अपना पोर्टफ़ोलियो हल्का करने और चीन में निवेश बढ़ाने का फ़ैसला कर चुकी हैं। भारत के भी कई म्यूचुअल फ़ंड इस वक्त चीन में निवेश करने वाले फ़ंड लॉन्च कर रहे हैं।

सवाल है कि क्या रिटेल निवेशकों को या नए निवेशकों को भी विदेशी निवेशकों की देखा-देखी अपने शेयर या म्यूचुअल फ़ंड यूनिट बेचकर किनारे बैठ जाना चाहिए? जानकारों की राय में इसका जवाब है कि ऐसा क़तई नहीं करना चाहिए।

हां, आपके पोर्टफ़ोलियो में अगर कोई कमज़ोर शेयर है तो पहला मौका मिलते ही उनसे छुट्टी पा लेनी चाहिए, लेकिन अच्छी कंपनियों के शेयर या म्यूचुअल फ़ंड यूनिट बेचने का नहीं बल्कि गुंजाइश हो तो और खरीदने की सोचनी चाहिए।

बाज़ार में ऐसे कई संकेत दिख रहे हैं कि भारत में हालात यहाँ से बेहतर होने जा रहे हैं। अभी इनकम टैक्स के एडवांस टैक्स के जो आँकड़े दिखाई पड़े उनमें कंपनियों ने पिछले साल के मुकाबले क़रीब 55% ज्यादा टैक्स भरा है।

यानी उन्हें उम्मीद है कि उनकी कमाई भी इसी अनुपात में बढ़ रही है।

रिजल्ट्स देखें तो कमाई अच्छी दिख रही है। ज़्यादातर बड़ी कंपनियों की बैलेंस शीट भी मज़बूत दिख रही है और ग्रोथ के जितने भी अनुमान सामने आए हैं उनके हिसाब से भारत दूसरे इमर्जिंग मार्केट्स के मुक़ाबले बेहतर रफ़्तार से ग्रोथ दिखा रहा है। इसी वजह से जानकारों का कहना है कि यह बाज़ार में पैसा लगाने के लिए अच्छा मौक़ा है।

हालांकि वे यह चेतावनी भी देते हैं कि यहाँ से और गिरावट भी आ सकती है। इसलिए एक साथ सारा पैसा लगा दें यह ज़रूरी नहीं है। लेकिन जिन लोगों ने शेयर या म्यूचुअल फ़ंड में एसआइपी कर रखी हैं उनके लिए ज़रूरी है कि वे अपनी एसआइपी कतई बंद न करें और धीरे-धीरे बाज़ार में पैसा डालते रहें। तभी वे लंबे समय में मुनाफ़े का सौदा पक्का कर पाएंगे।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
आलोक जोशी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

अर्थतंत्र से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें