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एचडीएफ़सी विलय के बाद सरकारी बैंकों पर दबाव बढ़ेगा?

विलय के पहले ही एचडीएफसी बैंक के पास देश में सबसे ज़्यादा ऑफिस थे, लेकिन कर्मचारियों की गिनती स्टेट बैंक से कम। और सरकारी बैंक भी मुक़ाबले में कमजोर पड़ते दिखेंगे। यानी अब ग्राहकों के साथ-साथ सरकारी बैंक कर्मचारियों की भी फिक्र बढ़ने का वक़्त है और भारत सरकार की भी।
आलोक जोशी

देश का सबसे बड़ा बैंक अब और बड़ा हो रहा है। इतना बड़ा कि उसकी शुरुआत करनेवाली पैरेंट कंपनी भी अब इसी बैंक में समाने जा रही है। घर के लिए कर्ज यानी होम लोन देनेवाली भारत की सबसे बड़ी कंपनी एचडीएफसी अब अपनी ही एक सहयोगी कंपनी एचडीएफसी बैंक में विलीन होने जा रही है। दोनों कंपनियों के बोर्ड ने इस विलय को मंजूरी दे दी है और एचडीएफसी के हर शेयरहोल्डर को उनके पच्चीस शेयरों पर एचडीएफसी बैंक के बयालीस शेयर मिलेंगे। यह भारतीय कॉर्पोरेट इतिहास के सबसे बड़े ऐसे सौदों में से एक है। अनुमान लगाया जा रहा है कि विलय के बाद एचडीएफसी बैंक टीसीएस को पीछे छोड़कर भारत की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी बन जाएगा।

दोनों ही कंपनियों की तरफ़ से इस विलय का एलान सुबह शेयर बाज़ार खुलने के पहले आया और बाज़ार ने खुलते ही इस सौदे को जबर्दस्त सलामी दी। शायद यह पहला मौक़ा था जब दोनों ही कंपनियों के शेयरों में एक साथ तेरह-चौदह परसेंट तक का उछाल देखने को मिला। इन्हीं की तेजी का असर था कि पूरा बाज़ार जश्न के मूड में दिखाई दिया। सेंसेक्स और निफ्टी दोनों ही जबर्दस्त उछाल के साथ बंद हुए। 

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उछाल की वजह भी साफ़ है। एचडीएफसी यानी हाउसिंग डेवलपमेंट फाइनेंस कॉर्पोरेशन ही एचडीएफसी बैंक की प्रोमोटर कंपनी है और उसकी सबसे बड़ी शेयरहोल्डर भी। अब एचडीएफसी के पास एचडीएफसी बैंक के जितने भी शेयर हैं वो सब ख़त्म हो जाएंगे। समूह के चेयरमैने दीपक पारेख ने साफ़ कहा भी है कि अब इस कंपनी का कोई प्रोमोटर नहीं होगा, यह पूरी तरह से पब्लिक कंपनी बन जाएगा। यानी इसके शेयरहोल्डर ही इसके मालिक होंगे। एचडीएफसी की स्थापना आईसीआईसीआई ने की थी। ताकि देश में ज़्यादा से ज़्यादा लोग कर्ज लेकर घर खरीद सकें और होम लोन का एक बड़ा और व्यवस्थित क़ारोबार शुरू हो सके।  

आईसीआईसीआई भी देश में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने के इरादे से फोर्ड फाउंडेशन से मिले अनुदान से बनाया गया था। लेकिन नब्बे के दशक में जब रिजर्व बैंक ने नए बैंकों के लाइसेंस दिए तो इन दोनों ही कंपनियों ने एक एक बैंक शुरू करने की अर्जी दी और उसके साथ ही इन दोनों के अपने बैंक शुरू हो गए। मगर कुछ ही साल बाद 2002 में आईसीआईसीआई ने खुद को अपने बैंक के साथ विलय करने का फ़ैसला किया। तब इस फ़ैसले पर बहुत से सवाल उठे थे क्योंकि बैंक का आकार मूल कंपनी के आकार का क़रीब एक तिहाई ही था। फिर भी तर्क साफ़ था। बैंक के पास बैंकिंग लाइसेंस था और दोनों कंपनियाँ मिलकर बड़े उद्योगों से लेकर आम रिटेल ग्राहक तक के बीच बेहतर तरीक़े से पकड़ बना सकती थीं। इसका नतीजा क्या हुआ वो तो सामने है।

लेकिन एचडीएफसी कंपनियों के विलय के समय अब वैसा कोई सवाल खड़ा नहीं हो सकता। क्योंकि एचडीएफ़सी बैंक कई मायनों में अपनी पैरेंट कंपनी को पहले ही पीछे छोड़ चुका है। 

लगातार पच्चीस परसेंट से ऊपर की सालाना ग्रोथ दिखाकर एचडीएफ़सी बैंक न सिर्फ देश का सबसे बड़ा बैंक बन चुका है बल्कि निवेशकों के बीच भी इसका खासा नाम है क्योंकि जिसने इस बैंक में पैसा लगाया उसने जमकर कमाया है।

कमाई के मामले में या तेज़ी से बढ़ने के मामले में एचडीएफसी भी किसी से कम नहीं है। बल्कि बहुत से निवेश सलाहकार तो वर्षों से दोनों के बीच में एचडीएफसी को ही बेहतर निवेश बताते रहे हैं। वजह यह है कि एचडीएफसी अपने कारोबार से जो कमाई करती है उसके अलावा एचडीएफसी बैंक में करीब छब्बीस परसेंट की हिस्सेदारी भी उसकी कमाई का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। यानी बैंक की तरक्की में भी उसे मोटा हिस्सा मिलता रहा है। बाज़ार में बहुत से जानकार काफी समय से अटकलें लगा रहे थे या इस बात की पैरवी कर रहे थे कि इन दोनों कंपनियों का एक हो जाना इनके लिए फायदेमंद होगा। वजह यह है कि बैंक को अपने करेंट और बचत खातों के रास्ते काफी कम ब्याज पर बहुत सी ऐसी रक़म मिलती है जिसे अगर होम लोन बांटने के लिए इस्तेमाल किया जाए तो खासा मुनाफे का सौदा है।  

एचडीएफसी बैंक अभी तक होम लोन नहीं देता था, वो इस काम के लिए अपने ग्राहकों को एचडीएफसी के पास भेज देता था यानी एक एजेंट की तरह काम कर रहा था। पिछले दिनों रिजर्व बैंक ने बैंकों और नॉन बैंकिंग कंपनियों के लिए एनपीए के नियमों में कुछ फेरबदल किए हैं जिनके बाद इन दोनों के खाते रखने के तौर तरीक़ों यानी एकाउंटिंग नियमों में खास फर्क नहीं रह गया है।

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एचडीएफसी बैंक को छब्बीस साल तक लगातार सालाना छब्बीस परसेंट की रफ्तार से बढ़ाने और देश में बैंकिंग के शिखर तक पहुंचानेवाले आदित्य पुरी के रिटायरमेंट के बाद से लगातार बैंक के कारोबार और उसके भविष्य पर सवाल उठाए जा रहे थे। लेकिन इस फैसले ने उन सारे सवालों का जवाब दे दिया है। आज की ज़ोरदार तेज़ी के बावजूद बाज़ार के जानकारों को एक समसया दिख गई है। विलय से पहले निफ्टी में एचडीएफसी बैंक का हिस्सा साढ़े आठ परसेंट के ऊपर और एचडीएफसी का हिस्सा छह परसेंट से कुछ ही कम था। दोनों मिलाकर चौदह परसेंट से कुछ ऊपर हो जाते हैं। 

अब सेबी ने म्यूचुअल फंडों पर पाबंदी लगा रखी है कि किसी एक कंपनी में उनकी हिस्सेदारी दस परसेंट से ऊपर नहीं होनी चाहिए। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि बहुत से फंडों को ये शेयर बेचने पड़ेंगे। लेकिन दूसरी तरफ़ एचडीएफसी के पास एचडीएफसी बैंक के जो छब्बीस परसेंट के लगभग शेयर हैं अब वो ख़त्म हो जाएंगे और एचडीएफसी के शेयरधारकों को हर पच्चीस शेयर पर बैंक के बयालीस शेयर मिलेंगे। नतीजा यह होगा कि एचडीएफसी के शेयरधारक अब बैंक में करीब इकतालीस परसेंट के हिस्सेदार होंगे। इससे म्यूचुअल फंडों का गणित भी बदल सकता है। इसके साथ ही किसी एक शेयर में विदेशी निवेश की जो सीमा लगी हुई है उसमें भी विदेशी संस्थानों के लिए कुछ और खरीद की गुंजाइश निकलेगी यानी विदेशी निवेशकों की खरीदारी से शेयर बढ़ने के आसार दिखते हैं।

लेकिन शेयर बाज़ार से अलग हटकर देखें तो इतना बड़ा एक बैंक खड़ा हो जाना बैंक के ग्राहकों के लिए भी मुश्किलें खड़ी कर सकता है और मुकाबले में खड़े बैंकों और हाउसिंग लोन कंपनियों के लिए भी।

असर

विलय के पहले ही एचडीएफसी बैंक के पास देश में सबसे ज़्यादा ऑफिस थे, लेकिन कर्मचारियों की गिनती स्टेट बैंक से कम। और सरकारी बैंक भी मुक़ाबले में कमजोर पड़ते दिखेंगे। यानी अब ग्राहकों के साथ-साथ सरकारी बैंक कर्मचारियों की भी फिक्र बढ़ने का वक़्त है और भारत सरकार की भी। यह बात काफी समय से चल रही है कि तमाम छोटे सरकारी बैंकों को मिलाकर एक किया जाए और ज़्यादा से ज़्यादा चार बड़े सरकारी बैंक रखे जाएं जो बाज़ार में प्राइवेट बैंकों को टक्कर दे सकें। लेकिन अब इसपर तेज़ी से क़दम बढ़ाने का वक़्त आ गया है। खासकर इसलिए कि अभी तो एचडीएफसी के इस फ़ैसले को सीसीआई की मंजूरी भी मिलनी है और उसके बाद बैंक को अपने अंदरूनी मसले भी सुलझाने होंगे। 

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एचडीएफसी के साथ ही उसकी तमाम सहयोगी कंपनियां भी अब एचडीएफसी बैंक का हिस्सा बन जाएंगी। इन सबके आला अफसरों से लेकर निचले स्तर के कर्मचारियों तक के भविष्य का खाका बनाना है और उन्हें समझाना है। यह भी कहा जा रहा है कि अब तक दोनों कंपनियां बाज़ार की ज़रूरतों के हिसाब से तेज़ी से फैसले लिया करती थीं लेकिन अब शायद उनका बड़ा आकार तेज़ी से फैसले करने और उन्हें अमल में लाना मुश्किल बना दे। उम्मीद करनी चाहिए कि यह भीमकाय बैंक अपनी मुश्किलों से पार पाने का रास्ता तेज़ी से निकालेगा, लेकिन इसका मतलब यह भी साफ है कि उनका मुकाबला जिन बैंकों और कंपनियों से है उनके पास भी तैयारी के लिए बहुत वक्त नहीं है। 

(बीबीसी से साभार)

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