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यूरोज़ोन के लिए बेहद बुरी ख़बर है। इस वर्ष की शुरुआत में ही यूरोज़ोन तकनीकी तौर पर आर्थिक मंदी में चला गया है। यूरोपीय संघ की सांख्यिकी एजेंसी के गुरुवार को आए आँकड़ों से इसकी पुष्टि हुई।
यूरोस्टेट ने 2022 की अंतिम तिमाही में 0 प्रतिशत वृद्धि और 2023 की पहली तिमाही में 0.1 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान पहले लगाया था। लेकिन इन आँकड़ों को घटाकर अब दोनों अवधियों के लिए 0.1 प्रतिशत का सिकुड़न कर दिया है। इसका मतलब है कि नेगेटिव विकास दर की वजह से वहाँ की अर्थव्यवस्था इतनी सिकुड़ी है। यदि सकल घरेलू उत्पाद में लगातार दो तिमाहियों में गिरावट नकारात्मक विकास दर हो यानी अर्थव्यवस्था सिकुड़े तो तकनीकी मंदी मान ली जाती है।
यूरोज़ोन में यूरोपीय संघ के 20 सदस्य शामिल हैं, जो यूरो को अपनी आधिकारिक मुद्रा के रूप में उपयोग करते हैं। यूरोपीय संघ के 7 सदस्य (बुल्गारिया, चेक गणराज्य, डेनमार्क, हंगरी, पोलैंड, रोमानिया और स्वीडन) यूरो का उपयोग नहीं करते हैं। हालाँकि, भले ही कुछ देश यूरो का इस्तेमाल अपने देश में नहीं करते हैं, लेकिन माना जाता है कि यूरो में आर्थिक संकट आने से यूरोपीय यूनियन के सभी देश प्रभावित होंगे।
यूरोज़ोन में तकनीकी तौर पर आर्थिक मंदी आने से पहले यूरोस्टेट ने पहले के पूर्वानुमान को संशोधित किया था, जिसमें मामूली वृद्धि की भविष्यवाणी की गई थी। इसके बाद यूरोज़ोन में उम्मीद की जा रही थी कि आर्थिक संकट का ख़तरा टल रहा है। लेकिन इसी बीच आर्थिक महाशक्ति जर्मनी द्वारा पिछले महीने कहा गया था कि यह मंदी में चला गया है। इसके बाद से यूरोज़ोन के भी आर्थिक मंदी में जाने का ख़तरा बढ़ गया था। कहा जा रहा है कि महंगाई और उच्च ब्याज दरों के रूप में यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में मांग पर अंकुश लगने से ऐसी स्थिति आई।
वैसे, पूरे यूरोप की अर्थव्यवस्था रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद से ही भारी दबाव में है। रूस से आने वाले तेल की सप्लाई बाधित होने से ऊर्जा की बढ़ती कीमतों ने महंगाई को बढ़ा दिया है। एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार बढ़ती महंगाई के बीच यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने पिछले साल जुलाई में मौद्रिक सख्ती के एक अभूतपूर्व अभियान शुरू करने के बाद से अपनी प्रमुख दरों में 3.75 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है।
यूरोपीय आयोग ने मई के मध्य में भविष्यवाणी की थी कि वर्ष के लिए एकल मुद्रा का उपयोग करने वाले 20 देशों में विकास 1.1 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। बहरहाल, तकनीकी मंदी की खबर से केंद्रीय बैंक पर और सख्ती बरतने का दबाव पड़ सकता है।
कहा जाता है कि यदि यूरोप आर्थिक संकट में आता है तो इसका असर अमेरिका तक पर पड़ेगा। अमेरिका पहले से ही ख़राब आर्थिक स्थिति से गुजर रहा है। चर्चा ये भी हो रही थी कि ऐसे हालात पैदा हो सकते हैं जब अमेरिका कर्ज़ चुकता नहीं कर पाएगा यानी उसके डिफ़ॉल्टर होने का ख़तरा था। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, दुनिया के अनेक देशों की हालत अमेरिका में आए मामूली आर्थिक बदलाव से बनने-बिगड़ने लगती है। भारत की अर्थव्यवस्था भी अमेरिका से काफ़ी जुड़ी हुई है। ऐसे में भारत के लिए भी ये हालात अनुकूल नहीं ही रहेंगे!
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