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ऐसे में बजट से जो अपेक्षाएं होंगी उन्हें पूरा करना मुश्किल तो है ही उसकी समीक्षा भी ज्यादा सघनता से होगी और यह समझने की कोशिश की जायेगी कि सीटें कम होने का बजट पर क्या असर हुआ है या नहीं हुआ है। दूसरी ओर, नरेन्द्र मोदी लोक लुभावन घोषणाओं में यकीन नहीं करते हैं। दूसरे शब्दों में उन्हें इसकी जरूरत भी नहीं है। ऐसे में बजट कैसा होगा अनुमान लगाना मुश्किल है।
संभवतः इसीलिये इस बार यह प्रचारित किया जा चुका है कि बजट की तैयारियों के लिए बैठक हुई, प्रधानमंत्री भी शामिल हुए आदि आदि। जनता मुफ्त अनाज से खुश है बाकी को नरेन्द्र मोदी ‘मुफ्त की रेवड़ी’ कह चुके हैं और 'मोदी की गारंटी' से चुनाव जीत चुके हैं। ऐसे में बजट में होना क्या है जब सरकार भारी कर्ज में है। दूसरी ओर, इन मुश्किलों में कुछ अच्छा करने के लिए अगर कोई समिति बनाई जाये, कुछ लोगों को जिम्मेदारी सौंपी जाये, जानकारी दी जाये तो संभव है, अभी तक जो सूचनाएं छिपा कर रखी गई हैं वो बाहर आ जायें। इसलिए सरकार जोखिम लेगी इसमें भी शक है। इसका एक और कारण यह है कि बजट कैसा भी हो सरकार हेडलाइन मैनजमेंट में सक्षम है, उसे अच्छा ही कहा जायेगा। इसलिए, बजट अच्छा हो इसकी जरूरत ही नहीं है। उसे अच्छा ही कहा जायेगा सो अलग। अच्छे बजट की योग्यता और स्थितियां नहीं हैं, सो अपनी जगह है ही।
वैसे, अब बजट काफी बदल चुका है। टैक्स की दर जीएसटी कौंसिल तय करता है और वह उसकी बैठकों में पूरे साल तय होता रहता है। रेल बजट अलग होता था तो उसकी घोषणाओं का कुछ आकर्षण था वह अब खत्म हो गया है। नई ट्रेन और लाइन की घोषणाएं पूरे साल होती रहती हैं। उसमें कम कुछ होना नहीं है, सब बढ़ना ही है।
यही नहीं, इस समय 2.5 लाख रुपये से पांच लाख रुपये तक की आय पर पांच प्रतिशत टैक्स लगता है, पांच से 10 लाख रुपये की आय पर 20 प्रतिशत और 10 लाख से ज्यादा पर 30 प्रतिशत टैक्स लगता है। इसे ठीक किये जाने की जरूरत है और इसके लिए बहुत ज्यादा कमाने वालों की टैक्स दर बढ़ानी पड़े तो वो भी किया जा सकता है। यह एक मुश्किल और राजनीतिक फैसला होगा जिसे राजनीतिक नजरिये से देखा जायेगा। इसलिए होगा या नहीं वह अलग मुद्दा है।
खबर के अनुसार दिल्ली वालों ने केंद्र को 2.07 लाख करोड़ का आयकर और 25,000 करोड़ रुपये जीएसटी दिया है। बदले में केंद्र ने दिल्ली को एक पैसा भी नहीं दिया है। यही नहीं, दिल्ली की जनता ने अपनी सातों सीटें भाजपा को दी हैं और एनसीआर की भी सारी सीटें भाजपा की झोली में हैं। दिल्ली विधानसभा में भाजपा की हालत आप जानते हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी की यह मांग भाजपा को फंसाने और परेशान करने के लिए कम नहीं है। देखा जाये।
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