बजट 2020 को लेकर सबसे बड़ा सवाल यह है कि सरकार को बजट में क्या ख़ास करना चाहिए? इसका जवाब आसान है, देश में किसी से भी पूछ लीजिए, वह बता देगा। जवाब होगा कि विकास को वापस पटरी पर लाना है। ग्रोथ को तेज करना है। रोज़गार बढ़ाने हैं। गाँवों पर और इन्फ्रास्ट्रक्चर पर ज्यादा खर्च करना है। महंगाई और सरकारी घाटे की चिंता कुछ समय के लिए ताक पर भी रखी जा सकती है, लेकिन किसी भी क़ीमत पर इस बात को बढ़ावा देना है कि लोग बाज़ार में निकलकर ख़र्च कर सकें।
बजट 2020: लोग बेफिक्र होकर ख़र्च करें, इसका भरोसा दिला पायेगी मोदी सरकार?
- अर्थतंत्र
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- 1 Feb, 2020

वर्तमान आर्थिक हालात का अंदाजा सभी को है, इसलिए सारे विद्वान सरकार को यही सुझाने में लगे हैं कि अब अगर-मगर का वक्त नहीं रहा, सीधे लोगों की जेब में पैसा डालना पड़ेगा। सबका कहना है कि अब इनकम टैक्स में कटौती करनी ज़रूरी है, खासकर सबसे नीचे के स्लैब वाले करदाताओं को राहत दी जानी चाहिए। ये वे लोग हैं जो थोड़ा पैसा बचने पर शायद अपनी कुछ ज़रूरतें पूरी करने की हिम्मत जुटा सकते हैं।
यह अर्थशास्त्र या बाज़ार पर आधारित अर्थव्यवस्था का पुराना सिद्धांत है। लोग ज्यादा ख़र्च करेंगे तभी इकोनॉमी में नई जान आएगी। लेकिन इस वक्त बड़ा सवाल यह है कि लोग ख़र्च करेंगे कैसे? ख़र्च के लिए ज़रूरी है कि जेब में पैसा हो और उसे ख़र्च करने की इच्छा भी हो। हालांकि भारतीय परंपरा में अपरिग्रह (कोई भी वस्तु संचित ना करना) को बड़ी चीज माना गया है और ऐसे दर्जनों दृष्टांत मिलते हैं कि क्यों इन्सान को बहुत ज्यादा बचाने के चक्कर में अपना वर्तमान ख़राब नहीं करना चाहिए। मशहूर कथन है - दाता इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय, मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाए। यानी आज के खाने का इंतजाम हो जाए और अगर कोई मांगने आ जाए तो उसे भी खिला सकूं।