लव जिहाद पर जारी बहस के बीच उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने धर्म परिवर्तन से जुड़ा अध्यादेश पारित कर दिया है। इस अध्यादेश में लव जिहाद का जिक्र नहीं है लेकिन प्रावधान ऐसे हैं कि अगर कोई किसी लड़की का जबरन धर्मांतरण कराता है तो उसके खिलाफ कार्रवाई होगी। योगी आदित्यनाथ सरकार के बड़े राजनीतिक दांव की तरह देखे जाने वाले इस अध्यादेश में एक से दस साल तक की सजा के प्रावधान भी किए गये हैं।
लेकिन कानून के जानकार सरकार के इस फ़ैसले को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। आइए, जानें सुप्रीम कोर्ट के वकीलों ने लव जिहाद कानून पर क्या कहा।
सीनियर एडवोकेट दिनेश द्विवेदी कहते हैं, “कथित लव जिहाद पर लाया गया ये अध्यादेश पूरी तरह से संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन करता है, जो दो वयस्क महिला और पुरुष को उनकी पंसद की शादी करने का न केवल अधिकार देता है बल्कि किसी भी तरह के दबाव, जबरदस्ती से भी शादी करने वाले महिला-पुरुष को संरक्षित करता है।”
द्विवेदी ने कहा, “लव जिहाद के इस अध्यादेश को लाने के पीछे सरकार की इतनी जल्दबाजी ही इसके मकसद पर शंका पैदा करती है, ऐसा क्या आसमान टूट पड़ा था कि यूपी सरकार विधानसभा में बाकायदा बिल पेश कर कानून पर विस्तृत चर्चा कराये बिना अध्यादेश के रास्ते से कानून को लाना चाहती है।”
द्विवेदी आगे कहते हैं, “कथित लव जिहाद को लेकर आये इलाहाबाद हाई कोर्ट के हालिया आदेश ने सरकारों के वोट बैंक की राजनीति पर बड़े सवाल खड़े किए हैं, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने लव जिहाद पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का मौलिक अधिकार है। महज अलग-अलग धर्म या जाति का होने की वजह से किसी को साथ रहने या शादी करने से नहीं रोका जा सकता है। दो बालिग लोगों के रिश्ते को सिर्फ हिन्दू या मुसलमान मानकर नहीं देखा जा सकता।”
‘नये क़ानून की ज़रूरत नहीं’
सीनियर एडवोकेट द्विवेदी आगे कहते हैं, “मान भी लीजिए कि किसी इस्माईल ने मधुर बनाकर किसी हिन्दू लड़की से शादी कर ली है, पहले तो ये साफ है कि इस तरह की शादी बिना प्रेम संबंधों के हो नहीं सकती और ये मानना भी अस्वीकार होगा कि लड़की को प्रेम संबंधों के बीच पता ही नहीं चला कि लड़का किस धर्म या मज़हब का है। मान भी लीजिए कि फिर भी धोखाधड़ी या धर्म को छिपा कर उसने शादी कर ली है तो फिर भी उस शादी को अवैध करार देने के लिए भारतीय दंड संहिता में पहले से ही प्रावधान मौजूद हैं, ऐसे में किसी नये कानून की ज़रूरत मेरी समझ के परे है।”
कानून की वैधता पर अपनी राय रखते हुए दिनेश द्विवेदी कहते हैं कि ये कानून एक मिनट भी अदालत में नहीं टिक सकता, ये किसी भी वयस्क महिला-पुरुष को आजादी से अपना जीवन साथी चुनने के संवैधानिक अधिकार के विपरीत है जिसे अदालतें असंवैधानिक और गैर कानूनी करार देंगी।”
‘लव जिहाद शब्द की मान्यता नहीं’
पूर्व एडवोकेट जनरल और सीनियर एडवोकेट अनूप जॉर्ज चौधरी कहते हैं, “लव जिहाद पर यूपी सरकार का अध्यादेश संविधान के विपरीत है, लव जिहाद शब्द को लेकर केन्द्रीय गृह मंत्रालय खुद संसद में बयान दे चुका है कि इस शब्द की कोई कानूनी मान्यता नहीं है, लव और जिहाद का आपस में कोई संबंध नहीं है और न इसका मुसलिम या कुरान में कोई मतलब है, ये कानून सरासर भ्रमित करने के लिए लाया जा रहा है।”
चौधरी कहते हैं, “सवाल ये है कि यूपी जैसे बड़े राज्य में अगर 8 या 10 मामले हो भी गये हैं तो उससे निपटने के लिए हमारे पास कानून पहले से ही मौजूद हैं, तो फिर नये कानून की क्या ज़रूरत है? संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत धर्म और उपासना की पूरी तरह से स्वतंत्रता है, कैसे कोई जिला अधिकारी ये तय करेगा कि कोई भी व्यक्ति किसी अमुक धर्म को अपनाये या न अपनाये?”
हिन्दुओं के मामले में क्या होगा?
अनूप जॉर्ज चौधरी कहते हैं, “सवाल है कि क्या एक हिन्दू वयस्क पुरुष मुसलिम बनकर किसी मुसलिम महिला से शादी कर लेता है तो क्या ये कानून उस पर भी लागू होगा? होगा तो ये एक हिन्दू के लिए लव जिहाद कैसे कहलायेगा? बहुत से मामले ऐसे देखे गये हैं जहां सोशल मीडिया के माध्यम से शादीशुदा हिन्दू पुरुष भी धोखाधड़ी से दूसरी शादी कर लेते हैं, उन मामलों पर भी क्या ये कानून लागू होगा?
हादिया मामले में फ़ैसला
सुप्रीम कोर्ट के हादिया मामले में आये फ़ैसले और लव जिहाद पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले के अवलोकन में सीनियर एडवोकेट चौधरी कहते हैं कि “संविधान के अनुच्छेद 141 के मुताबिक़ सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला अपने आप में कानून बन जाता है जब तक कि संसद उस कोई नया कानून न पास कर दे, हादिया केस में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला कथित लव जिहाद के विमर्श को ही खारिज करता है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न लव जिहाद कोई अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है और न ही इसके लिए कोई विदेशी फंडिंग की जाती है, इसके बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट के लैंडमार्क फ़ैसले ने भी कथित लव जिहाद को सिरे से खारिज कर दिया है।”
चौधरी सवाल पूछते हैं, “क्या देश में कई राज्य सरकारें जो लव जिहाद को लेकर कानून लाने की तैयारी में हैं वो सुप्रीम कोर्ट और इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले का बिल्कुल सम्मान नहीं करना चाहतीं?”
क्या था हादिया का मामला?
केरल लव जिहाद के नाम से मशहूर हादिया के केस में उच्चतम न्यायालय ने कथित लव जिहाद की शिकार केरल निवासी युवती हादिया को 8 मार्च साल 2018 में बड़ी राहत देते हुए शफीन जहां से उसकी शादी अमान्य घोषित करने का केरल उच्च न्यायालय का फ़ैसला निरस्त कर दिया था। पूर्व प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केरल हाई कोर्ट के फ़ैसले पर कहा कि शादी को रद्द नहीं करना चाहिए था, ये शादी वैध है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हादिया को अपने सपने पूरे करने की पूरी आजादी है।
एनआईए की जांच को बरकरार रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एनआईए की जांच में हम दखल नहीं दे रहे हैं। एनआईए किसी भी विषय में जांच कर सकती है लेकिन किन्हीं दो वयस्कों की शादी को लेकर कैसे जांच की जा सकती है?
कोर्ट ने उदाहरण देते हुए कहा कि अगर दो वयस्क शादी करते हैं और सरकार को लगता है कि शादी शुदा दंपति में से कोई गलत इरादे से विदेश जा रहा है, तो सरकार उसे रोकने में सक्षम है।
यह मामला उस समय सुर्खियों में आया जब हादिया के पति शफीन जहां ने उसकी शादी अमान्य करार देने और उसकी पत्नी को माता-पिता के घर भेजने के केरल उच्च न्यायालय के फ़ैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी। शीर्ष अदालत ने हादिया को उसके माता-पिता की निगरानी से मुक्त करते हुए उसे कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिये भेज दिया था। हालांकि, हादिया ने कहा था कि वह अपने पति के साथ ही रहना चाहती है। उच्च न्यायालय ने हादिया और शफीन के विवाह को लव जिहाद का एक नमूना बताते हुए इसे अमान्य घोषित कर दिया था।
देखिए, इस विषय पर चर्चा-
हाई कोर्ट का अहम फ़ैसला
यूपी में लव जिहाद के कथित बढ़ते मामलों के बीच इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फ़ैसला सुनाया। हाई कोर्ट ने कहा है कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने का मौलिक अधिकार है। महज अलग-अलग धर्म या जाति का होने की वजह से किसी को साथ रहने या शादी करने से नहीं रोका जा सकता है।
‘निजता के अधिकार पर अतिक्रमण’
अदालत ने कहा, “दो बालिग लोगों के रिश्ते को सिर्फ हिन्दू या मुसलमान मानकर नहीं देखा जा सकता। अपनी पसंद के जीवन साथी के साथ शादी करने वालों के रिश्ते पर एतराज जताने और विरोध करने का हक न तो उनके परिवार को है और न ही किसी व्यक्ति या सरकार को। अगर राज्य या परिवार उनके शांतिपूर्वक जीवन में खलल पैदा कर रहा है तो वो उनकी निजता के अधिकार पर अतिक्रमण है।”
दरअसल, कुशीनगर के विष्णुपुरा थाने की रहने वाली प्रियंका खरवार ने अपनी पसंद के सलामत अंसारी के साथ प्रेम विवाह किया था। प्रियंका ने शादी से पहले अपना धर्म छोड़कर इसलाम धर्म अपना लिया था और वो प्रियंका से आलिया हो गई थी। इसके बाद प्रियंका के पिता ने सलामत अंसारी के ख़िलाफ़ अपहरण और पॉक्सो समेत कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज करा दिया था। हाई कोर्ट ने इस मुक़दमे को रद्द करने का भी फ़ैसला सुनाया।
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