क्या फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स (एफ़एटीएफ़) जल्द ही पाकिस्तान को काली सूची में डाल देगा और उसके बाद विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और अंतरराष्ट्रीय वित्त निगम जैसी वित्तीय संस्थाएँ पाकिस्तान को मदद करना बंद कर देंगी? क्या मूडीज़, स्टैंडर्ड एंड पूअर और फ़िच जैसी रेटिंग एजेन्सियाँ पाकिस्तान की क्रेडिट रेटिंग कम कर देंगी और उसके बाद निजी कंपनियाँ भी वहाँ निवेश करने से कतराने लगेंगी? यह इस पर निर्भर करता है कि भारत की ओर से एफ़एटीएफ़ को दिए डोज़ियर में सबूत कितने पुख़्ता हैं और पाकिस्तान के जवाब से यह संगठन कितना संतुष्ट होगा।
एफ़एटीएफ़ के पेरिस मुख्यालय में बैठक शुरू हो चुकी है, भारत ने अपने प्रस्ताव का नोटिस दे दिया है और वह मंगलवार तक अपना डोज़ियर पेश कर देगा। पाकिस्तान के लिए मुसीबत का सबब इसलिए भी है कि वह पहले से ही 'ग्रे लिस्ट' में है, यानी उस पर जो आरोप लगे हैं, एफ़एटीएफ़ ने उस पर जवाब माँगा है, उस पर निगरानी रख रहा है। पहले से तय कार्यक्रम के मुताबिक़, जून में पाकिस्तान की रिपोर्ट पर विस्तार से चर्चा कर उस पर अपना फ़ैसला सुनाया जाना तय था। इस बीच पुलवामा में आतंकवादी हमला हो गया और पाकिस्तानी गुट जैश-ए-मुहम्मद ने ब़क़ायदा वीडियो जारी कर इसकी ज़िम्मेदारी ली है।
क्या है एफ़एटीएफ़?
एफ़एटीएफ़ 36 देशों का संगठन है, जिसका मक़सद ऐसे तमाम वित्तीय लेनदेन को रोकना है, जिससे मनी लॉन्डरिंग होती हो, आतंकवादी संगठनों या लोगों को धन महैया कराना मुमकिन हो या दूसरी तरह के ग़ैर-क़ानूनी आर्थिक क्रिया-कलाप होते हों। इसकी स्थापना 1989 में हुई और इसका मुख्यालय पेरिस है। इसकी स्थापना जी-7 देशों ने मनी लॉन्डरिेंग रोकने के लिए की थी, पर 2001 में 9/11 के हमले के तुरन्त बाद अक्टूबर में हुई बैठक में आतंकवाद से लड़ने को भी इसमें शामिल कर लिया गया।
एफ़एटीएफ़ की कार्रवाई
एफ़एटीएफ़ ने 27 फ़रवरी 2015 को एक बेहद महत्वपूर्ण रिपोर्ट सौंपी। इसमें इस्लामिक स्टेट ऑफ़ इराक़ एंड लेवान्त (आईएसआईएल) के वित्तीय ढाँचे पर था। इसमें तीन महत्वपूर्ण सिफ़ारिशें की गई थीं।
- 1.किसी भी आतंकवादी व्यक्ति और आतंकवादी सगंठन को किसी तरह की वित्तीय मदद करना अपराध घोषित कर दिया जाए।
- 2.आतंकवादी लोगों और संगठनों की हर किस्म की जायदाद को फ़्रीज कर दिया जाए और हर तरह के प्रतिबंध लगा दिए जाएँ।
- 3.ऐसी प्रक्रिया विकसित की जाए, जिससे संयुक्त राष्ट्र की सिफ़ारिशों के मुताबिक आतंकवाद से जुड़े लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जा सके।
क्या है पाकिस्तान का स्टैटस?
एफ़एटीएफ़ के रडार पर पाकिस्तान पहले से ही है। इसने फ़रवरी 2015 में कहा था कि मनी लॉन्डरिंग रोकने में पाकिस्तान ने पहले से बेहतर काम किया है, लिहाज़ा उसे निगरानी सूची से बाहर कर दिया जाए। इसके बाद जुलाई 2018 में पाकिस्तान को एक बार फिर निगरानी सूची में डाल दिया गया। लेकिन इस बार उस पर ज़्यादा गंभीर आरोप हैं।
पाकिस्तान पर आरोप हैं कि वह आतंकवादी गुटोें को वित्तीय मदद मुहैया कराता है, आतंकवादी लोगों और उनके संगठनों को पैसे न मिले, इसके लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहा है। उसे जुलाई, 2018 में साल भर का समय दिया गया, उस पर निगरानी शुरू हो गई और कहा गया कि जून 2019 में उसके कामकाज की एक बार फिर समीक्षा होगी।
पाकिस्तान पर कोई फ़ैसला जून, 2019 की बैठक में लिया जाएगा। उस पर आतंकवादी तत्वों को वित्तीय मदद देने का आरोप लगाने वाला अकेला देश भारत नही हैं, ईरान भी उस पर आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप लंबे समय से लगाता रहा है। यदि इस बैठक में पाकिस्तान का जवाब संतोषजनक नहीं हुआ तो उसके लिए मुसीबतें शुरू हो जाएँगी।
पेरिस मुख्यालय में एफ़एटीएफ़ की बैठक (फ़ाइल फ़ोटो)
भारत को रोकने की तैयारी
पाकिस्तान ने एफ़एटीएफ़ में भारत को रोकने और उसके दावों को खारिज करने की पूरी तैयारियाँ कर ली हैं। चार सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल पेरिस पहुँच चुका है। इस टीम की अगुआई वित्त सचिव आरिफ़ अहमद ख़ान कर रहे हैं।पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल टास्क फ़ोर्स के एशिया-पैसिफ़िक कमिटी के सामने पेश होगा। प्रतिनिधिमंडल ने चीन समेत कई देशों से संपर्क किया है और कूटनीतिक मोर्चे पर भारत की कोशिशों को नाकाम करने की जुगत में लग गया है। पाकिस्तानी अख़बार 'द डॉन' के मुताबिक़, भारत के ज़ोर देने पर टास्क फ़ोर्स ने पाकिस्तान से जो पाँच सवाल पूछ थे, इस्लामाबाद ने उनके जवाब बीते महीने सिडनी में हुई बैठक में ही दे दिए।
- 1.पाकिस्तान ने कहा है कि उसने सितंबर 2018 तक 8,500 संदिग्ध लेन-देन को पकड़ लिया।
- 2.यह आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल और अंतरराष्ट्रीय मानकों के पालन करने से मुमकिन हुआ।
- 3.पाकिस्तान का कहना है कि उसने जैश-ए-मुहम्मद, फ़लाह-ए-इन्सानियत फ़ाउंडेशन और लश्कर-ए-तैयबा को आर्थिक मदद देने वाले संगठनों का पता लगाया है।
- 4.पाकिस्तान ने टास्क फ़ोर्स को बताया है कि उसने संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावोें को ध्यान में रखते हुए संदिग्ध आतंकवादियों की सूची तैयार की है और आतंक-विरोधी क़ानून के तहत उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई की है।
- 5.इस्लामाबाद ने दावा किया है कि उसने हवाई अड्डों और सीमा पर बनी चौकियों को मज़बूत किया है ताकि मुद्रा की तस्करी रोकी जा सके।
- 6.भारत के कहने पर टास्क फ़ोर्स ने प्रतिबंधित संगठनों और आतंकवादी व्यक्तियों के बारे में जो जानकारियाँ माँगी थीं, इस्लामाबाद ने वे जानकारियाँ देने से साफ़ इनकार कर दिया।
- 7.पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल का कहना है कि जनवरी की बैठक में टास्क फ़ोर्स उसकी बातों से संतुष्ट दिखा था, पर भारत के ज़ोर देने पर उसने सवालों की एक सूची उसे थमा दी थी।
काली सूची का मतलब?
यदि टास्क फ़ोर्स पाकिस्तान की बातों से सहमत नहीं हुआ और उसे भारत की बातों में दम लगा और उसके सबूतों पर उसने यक़ीन कर लिया तो पाकिस्तान को और छह महीने का समय देकर कहा जाएगा कि वह मामला दुरुस्त करे। उसके बाद उसे एक मौका और मिलेगा। यदि उस समय तक पाकिस्तान टेरर फन्डिंग रोकने में कामयाब नहीं हुआ तो उसे काली सूची में डाल दिया जाएगा। टास्क फ़ोर्स की काली सूची में फ़िलहाल दो देश हैं-ईरान और उत्तर कोरिया।
यदि पाकिस्तान एफ़एटीएफ़ की काली सूची में डाल दिया गया तो ऑर्गनाइजेशन फ़ॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलपमेंट भी उसे अपनी काली सूची में डाल देगा। ऐसा होने के बाद पाकिस्तान को विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और एशियाई विकास बैंक जैसी वित्तीय संस्थानों से पैसे नहीं मिल सकेंगे।
इतना ही नहीं, मूडीज़, स्टैंडर्ड एंड पूअर और फ़िच जैस रेटिेंग एजन्सियाँ पाकिस्तान की सॉवरन क्रेडिट रेटिंग कम कर देगी। पाकिस्तान की मौजूदा रेटिेंग भी बहुत अच्छी नहीं है। यह रेटिंग और गिरी तो पाकिस्तान में कोई कंपनी निवेश करना नहीं चाहेगी, कोई देश कर्ज नहीं देगा। चीन की बात और है। चीन उसे पैसे दे सकता है और उसकी अर्थव्यवस्था को कुछ समय तक सहारा देकर टिकाए रख सकता है। पर अकेला चीन कितना पैसा देगा, यह सवाल है। दूसरी बात यह है कि चीन की शर्तें बेहद कड़ी होती हैं, उसकी परियोजनाएं बहुत महँगी होती हैं। कई देशों ने खुल कर उसका विरोध किया है। यहां तक कि पाकिस्तान ने कुछ चीनी परियोजनाओं को बंद करने का आग्रह बीजिंग से औपचारिक तौर पर कर दिया है।
उत्तर कोरिया बन जाएगा चीन?
क्या पाकिस्तान आर्थिक जगत में एकदम अलग-थलग कर दिया जाएगा और उसकी स्थिति उत्तर कोरिया की तरह हो जाएगी? शायद नहीं। इसकी वजह पाकिस्तान की राजनीतिक-भौगोलिक स्थिति है। पाकिस्तान का अस्थिर होना और आर्थिक रूप से बिखरना किसी के हित में नहीं है। ऐसे में भारत के लिए सबसे मुफ़ीद यह होगा कि वह काली सूची का हल्ला मचा कर उसे डराए और आतंकवाद के मुद्दे पर ज़्यादा नहीं तो कम ही सही, सहयोग करने पर मज़बूर करे। इस साल जून तक यह साफ़ हो जाएगा कि भारत पाकिस्तान पर दबाव बनाने में कितना कामयाब हुआ।
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