केंद्र सरकार को उखाड़ फेंकने की साजिश रचने का आरोप लगा कर जिन तथाकथित अर्बन नक्सल को गिरफ़्तार किया गया, उनमें से एक के लैपटॉप से छेड़छाड़ की गई, बाहर से आपत्तिजनक सामग्रियाँ उसमें ट्रांसफर की गईं और उसे जानबूझ कर फँसाया गया। अमेरिकी अख़बार वाशिंगटन पोस्ट ने यह खबर दी है।
'वाशिंगटन पोस्ट' का दावा है कि उसने तीन स्वतंत्र एजेंसियों से अलग-अलग जाँच कराई और इस आरोप को सही पाया।
अख़बार का कहना है कि कार्यकर्ता रोना विल्सन को गिरफ़्तार करने से पहले उसके लैपटॉप कंप्यूटर में 10 आपत्तिजनक चिट्ठियाँ बाहर से डाली गईं। रोना विल्सन के वकील सुदीप पसबोला ने अख़बार से कहा कि अमेरिका के मेसाच्यूसेट्स स्थित डिजिटल फ़ोरेंसिक कंपनी आर्सेनल कंसलटिंग ने लैपटॉप की इलेक्ट्रॉनिक कॉपी का अध्ययन करने के बाद इसकी पुष्टि की है।
आर्सनल कंसलटिंग ने अपनी रिपोर्ट में साइबर हमला कर लैपटॉप में आपत्तिजनक सामग्री बाहर से डालने की पुष्टि की है, लेकिन यह नहीं बताया है कि यह काम किसने किया है।
एनआईए का इनकार
वाशिंगटन पोस्ट का कहना है कि आर्सनल की रिपोर्ट को उनके कहने पर तीन स्वतंत्र पर्यवेक्षकों ने जाँच की और इसे सही पाया।
लेकिन राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी ने इससे इनकार किया है। एनआईए की प्रवक्ता जया कुमार ने 'वाशिंगटन पोस्ट' से कहा कि विल्सन के लैपटॉप से छेड़छाड़ का कोई सबूत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि विल्सन के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत हैं।
रोना विल्सन पर आरोप है कि उन्होंने माओवादी विद्रोहियों को चिट्ठी लिखी और मोदी की हत्या के लिए बंदूक व गोलियों की ज़रूरत बताई।
कैसे हुआ साइबर अटैक?
'वाशिंगटन पोस्ट' के अनुसार, आर्सनल ने अपनी रिपोर्ट में इस साइबर अटैक के बारे में विस्तार से बताया है। इसके अनुसार जून, 2017 में विल्सन को कई ई-मेल मिले, जो ऐसा लगता था कि उनके परिचित एक कार्यकर्ता ने भेजे थे। उस कार्यकर्ता ने विल्सन से कहा कि वे उसमें लगे एक नागरिक अधिकार समूह के एक बयान को डाउनलोड कर लें। लेकिन वह लिंक 'नेटवायर' का था। 'नेटवायर' एक मैलिशियस सॉफ़्टवेअर है, जो बाज़ार में उपलब्ध है। इससे किसी सिस्टम में घुसना संभव हो जाता है।
आर्सनल का कहना है कि उस मैलवेअर ने विल्सन के की स्ट्रोक, पासवर्ड और उनके ब्राउजिंग क्रियाकलाप का पता लगा लिया। उसने फाइल सिस्टम का पता लगाया, फोल्डर बनाया, उसमें चिट्ठियाँ डालीं और फोल्डर को छुपा दिया। इसमें गड़बड़ी यह हुई कि चिट्ठियों में माइक्रोसॉफ़्ट के उस वर्जन का इस्तेमाल किया गया था, जो विल्सन के कंप्यूटर में नहीं था।
आर्सनल के अध्यक्ष मार्क स्पेन्सर ने 'वाशिंगटन पोस्ट' से कहा कि यह बहुत ही सुनियोजित साइबर हमला था।
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निष्पक्ष जाँच
'वाशिंगटन पोस्ट' ने खबर लिखने के पहले अमेरिका के तीन स्वतंत्र विशेषज्ञों को आर्सनल की रिपोर्ट का अध्ययन करने को कहा।
टोरंटो विश्वविद्यालय के सिटीजन लैब के वरिष्ठ शोधकर्ता जॉन स्कॉट-रेलटन ने कहा कि आर्सनल ने गंभीर और भरोसा लायक विश्लेषण किया है।
इस साइबर हमले को अंजाम देने वाले ने अकेले विल्सन को ही निशाना नहीं बनाया। उसने उसी सर्वर और आईपी अड्रेस का इस्तेमाल कर इस मामले के दूसरे लोगों को भी निशाना बनाया और साइबर हमले किए।
एमनेस्टी के लोग भी निशाने पर
मानवाधिकार संगठन एमनेस्ट इंटरनेशनल ने बीते साल कहा था कि नौ लोगों को नेटवायर ने इस तरह के ई-मेल भेजे थे।
'वाशिंगटन पोस्ट' के अनुसार, साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में काम कर रही कंपनी क्राउडस्ट्राइक के वरिष्ठ उपाध्क्ष एडम मेयर्स ने कहा कि यह संयोग नहीं है कि एक ही सर्वर और आईपी अड्रेस आर्सनल और एमनेस्टी दोनों की जाँच में पाया गया है।
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भीमा कोरेगाँव से तार जुड़े
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने यह भी कहा था कि तीन कार्यकर्ताओं को 2019 में एनएसओ समूह के पैगेसस स्पाइवेअर से निशाना बनाया गया था, उन पर निगरानी रखी गई थी।
रोना विल्सन और दूसरे लोगों को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाँव में 1 जनवरी, 2018 को हुई हिंसा से भी जोड़ा गया था।
भीमा कोरेगाँव कांड की जाँच संभालने के लगभग 10 महीने बाद एनआईए ने अदालत में चार्जशीट दाखिल की है, जिसमें 8 लोगों के नाम हैं और इन पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं।एनआईए ने चार्जशीट में कहा है कि 1 जनवरी 2018 को 'योजनाबद्ध रणनीति' के तहत दलितों पर हमले हुए थे।
क्या है भीमा कोरेगाँव?
2018 में भीम कोरेगाँव युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ थी, इस कारण बड़ी संख्या में लोग जुटे थे। इस सम्बन्ध में शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के अध्यक्ष संभाजी भिडे और समस्त हिंदू अघाड़ी के मिलिंद एकबोटे पर आरोप लगे कि उन्होंने मराठा समाज को भड़काया, जिसकी वजह से यह हिंसा हुई।
लेकिन इस बीच हिंसा भड़काने के आरोप में पहले तो बड़ी संख्या में दलितों को गिरफ़्तार किया गया और बाद में 28 अगस्त, 2018 को सामाजिक कार्यकर्ताओं को।
हर साल जब 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं, वे वहाँ बनाए गए 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि ऐसा माना जाता है कि 1818 में भीमा कोरेगाँव युद्ध में शामिल ईस्ट इंडिया कंपनी से जुड़ी टुकड़ी में ज़्यादातर महार समुदाय के लोग थे, जिन्हें अछूत माना जाता था। यह ‘विजय स्तम्भ’ ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस युद्ध में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था जिसमें कंपनी के सैनिक मारे गए थे।
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