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वाएल अल-दहदौहः एक पत्रकार जिसने गजा युद्ध में अपनो को खोया  

इज़रायल और हमास के बीच छिड़ी जंग के शिकार पत्रकार भी हो रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब तक 20 से अधिक पत्रकारों के मारे जाने की सूचना है। इसमें ज्यादातर फिलिस्तीनी हैं। इस बीच एक पत्रकार के परिवार की मौत की खबर ने दुनिया भर के सभ्य समाज को दहला दिया है। 
अल जजीरा के पत्रकार वाएल अल- दहदौह गजा ब्यूरो चीफ के रूप में काम करते हैं। जब से गजा में युद्ध शुरु हुआ है तब से वह दुनिया भर को अपनी खबरों के जरिये गजा के जमीनी हालात बता रहे थे। पिछले दिनों भी वह अपना फर्ज निभा रहे थे तभी उन्हें पता चलता है कि इजरायली युद्धक विमानों की बमबारी में उनके परिवार के सदस्य भी मारे गये हैं। 
इस बमबारी में उनकी पत्नी, बेटी, बेटा और पोते के मौत हो गई। अपने बच्चों के शव को गोद में लिये अस्पताल में घूमते वाएल अल- दहदौह की फोटो दुनिया भर में वायरल हुई। उनके परिवार के सदस्यों की मौत ने दुनिया भर का ध्यान खींचा। दहदौह के परिवार के सदस्यों की मौतों ने बताया कि गजा में पत्रकार किस तरह की चुनौतियों के बीच अपना काम कर रहे हैं। 
इस हमले में मारे गए दहदौह के बेटे महमूद की उम्र पंद्रह वर्ष और बेटी की उम्र सात वर्ष थी। उनका बेटा महमूद भी अपने पिता की तरह ही एक अच्छा पत्रकार बनना चाहता था।  एक पिता के तौर पर दहदौह पर क्या बीत रही होगी जब वह अपने मृत बच्चे को गोद में लेकर अस्पताल में चल रहे थे, यह सोच कर किसी पत्थर दिल इंसान का दिल भी पिघल जायेगा। 
कितना मुश्किल रहा होगा उस बेटी 7 वर्षीय बेटी का शव देखना जिसे भरोसा होगा कि उसका पिता उसे युद्ध में भी बचा लेगा। शर्णार्थी शिवरों में भेजते हुए दहदौह ने उस बच्ची से यही कहा होगा कि वहां वह सुरक्षित रहेगी। उस भरोसे के बल पर ही वह मासूम सी बच्ची अपने घर, अपने खिलौनों सब को छोड़ कर गई होगी। उसके शव को देखते हुए दहदौह को उससे किये गये कितने ही वादे याद आ रहे होंगे। 
कितना मुश्किल रहा होगा पत्रकार दहदौह के लिए अपने किशोर बेटे का शव देखना जो उनके जैसा ही बनना चाहता था। उन्होंने भी अपने बेटे के लिए कितने सपने संजोएं होंगे। कितना मुश्किल होता होगा उन सपनों को टूट कर बिखड़ते देखना। पत्नी का शव देख कर पत्रकार दहदौह का क्या उनसे की गई वे बातचीत याद नहीं आयी होगी जिसमें वह दिलासा भी होगी कि जल्द ही युद्ध खत्म हो जायेगा और उसके बाद सब ठीक हो जायेगा। 
शायद पत्नी का शव देखते समय उनके मन में यह ख्याल आया होगा कि काश उसके मरते समय तो कम से कम साथ रहता। अपने फर्ज को अदा करने की खातिर कितना मजबूर महसूस कर रहा होगा वह पत्रकार जो अपनी पत्नी और बच्चों के साथ मुश्किल समय में भी नहीं रह सका। शायद पत्रकारों की जिंदगी ऐसी ही होती है कि वह दूसरों की खबरें तो देते रहते हैं लेकिन अपनों का साथ उनके मुश्किल वक्त में भी नहीं दे पाते।
 ये मौतें सिर्फ एक पत्रकार के परिवार की मौतें नहीं थी बल्कि हमारे समाज का वह सच है जिसको लेकर ठहर कर सोचने की जरुरत आज हर इंसान को है। बारुद के ढ़ेर पर बैठी दुनिया को कैसे हिंसा और नफरतों से बचाया जाये ताकि किसी को वह दिन नहीं देखना पड़े जो अल जजीरा के पत्रकार वाएल अल- दहदौह ने देखा है। 

क्या युद्ध अपराध का मुकदमा हत्यारों पर चलेगा ?

इन मासूम बच्चों और निर्दोष महिलाओं की मौत इसलिए भी दुखदायी है कि ये एक शरणार्थी शिविर में शरण लिये हुए थे। जिसे इजरायली विमानों ने निशाना बनाकर हमला किया। सवाल उठता है कि शरणार्थी शिवरों पर बमबारी करने वालों पर क्या कभी युद्ध अपराध का मुकदमा चल सकेगा? 

क्या निर्दोषों की मौत का जिम्मेदार किसी को ठहराया जा सकेगा?  क्या इन मासूम बच्चों के हत्यारों को अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक युद्ध अपराध में कभी सजा हो सकेगी? सवाल उठता है कि इजरायल पर हमला हमास ने किया था लेकिन हमास के किये की सजा इन निर्दोषों को देना कहा का न्याय है?  
इन सवालों का जवाब तो आने वाला समय ही देगा लेकिन खुद को सभ्य और लोकतांत्रिक कहने वाला समाज कम से कम युद्ध और तमाम तरह की हिंसा का समर्थन करना तो बंद कर ही सकता है। 
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निर्दोष नागरिकों पर बमबारी भी गलत है 

जिस तरह से फिलिस्तीन पर इजरायली कब्जे और नागरिकों के मानवाधिकारों के हनन के तमाम पुराने इतिहास के बावजूद हमास का हमला पूरी तरह से गलत और आतंकी हमला था। उसी तरह से गजा या फिलिस्तीन के आम निर्दोष नागरिकों पर बमबारी करना भी गलत है। 

दहदौह के परिवार की मौत ने दुनिया को बताया कि किस तरह से गजा में आज कोई भी सुरक्षित नहीं है। गजा में नवजात बच्चे से लेकर कोई 90 वर्ष का बुजुर्ग या आम घरेलू महिलाओं से लेकर अस्पतालों में भर्ती मरीज भी इजरायली बमों का शिकार हो सकते हैं। 

अब तक करीब 20 पत्रकारों की जा चुकी है जान 

इन मौतों ने गजा में काम कर रहे पत्रकारों और उनके परिवारों की सुरक्षा को लेकर जमीनी स्थिति को भी सामने लाकर रख दिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब तक करीब 20 से ज्यादा पत्रकार इजरायल-हमास संघर्ष में अपनी जान गवां चुके हैं। कई दूसरे घायल हो चुके हैं। इनमें ज्यादातर फिलिस्तीनी हैं। इसके अलावा 2 पत्रकारों के लापता होने की भी खबर है। गजा में हर वक्त मौत के साये में रहते हुए लगातार बिजली कटौती और इंटरनेट की समस्या के बीच काम करना पत्रकारों के लिए कितना मुश्किल होगा इसे आसानी से समझा जा सकता है।   

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हर दिन हो रही सैकड़ो लोगों की मौतें

इजरायल और हमास की चल रही जंग में अब तक करीब 7 हजार फिलिस्तीनियों की मौत हो चुकी है। युद्ध का ऐसा डरावना रूप दशकों से इस दुनिया ने नहीं देखा था। जहां न सिर्फ निर्दोष लोग मारे जा रहे बल्कि हर दिन पूरी इंसानियत की हत्या हो रही है। हर दिन खबरें आ रही हैं कि सैकड़ों लोगों की मौत बीते 24 घंटों के दौरान इजरायली बम हमलों में हो गई है।
 एक-एक दिन में 500 से अधिक लोगों के मरने की खबर आ रही है। हर दिन मरने वाले सैकड़ों निर्दोष बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की मौत सिर्फ आंकड़ा भर नहीं है। हर के साथ जुड़ी होती हैं मानवीय संवेदनाओं से भरी अनगिनत कहानियां। हर मरने वाला किसी के परिवार का हिस्सा होता है। 
कितना मुश्किल होता होगा अपनी पत्नी, अपनी जान से प्यारे छोटे-छोटे बच्चों को मिट्टी में दफनाना। गजा से दूर बैठे लोगों के लिए भले ही ये महज आंकड़े हैं लेकिन इन हर मौत में कोई किसी का बेटा है, कोई बेटी, कहीं कोई महिला विधवा हो रही है तो कहीं किसी पुरुष की पत्नी उसे छोड़ इस दुनिया से जा रही है। अपने जवान होते बच्चों को कब्रगाह तक ले जाना किसी पिता के लिए कितना कठिन होता होगा इसे जरा सी भी मानवीय संवेदना वाला व्यक्ति समझ सकता है। 

गजा के 23 लाख लोग मौत के साये में हैं 

करीब 7 हजार लोग इजरायली बमबारी के शिकार हुए और इस दुनिया से चले गये लेकिन अपने पीछे वह रिश्तेदारों के पास छोड़ गये वह कभी खत्म नहीं होने वाली पीड़ा। किसी अपने को खोने का गम क्या होता है यह वही समझ सकता है जिसने इसे कभी महसूस किया हो। हम अपने प्रियजनों और रिश्तेदारों की मौत का सोच भी नहीं सकते, लेकिन गजा के उन 23 लाख लोगों पर क्या बीतती होगी जो हर दिन मौत के साये में हैं। उन्हे पता है कि हो सकता है अगले ही पल उनके बच्चे इस दुनिया से चले जायेंगे।
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क़मर वहीद नक़वी
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