लोकतंत्र के पैमाने पर लगातार भारत की रैंकिंग गिरने की रिपोर्टों के बीच ही अब एक और रिपोर्ट सचेत करने वाली है। स्वीडन में गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय में वी-डेम यानी वैरायटी ऑफ़ डेमोक्रेसी की एक नई रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत पिछले दस साल में सबसे बदतर निरंकुश शासन लाने वालों में से एक है। हालाँकि वी डेम की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दुनिया भर में निरंकुशता के मामले बढ़ रहे हैं। इसने कहा है कि 2022 के अंत तक दुनिया की आबादी का 72% लोग निरंकुशता में रह रहे थे, जिनमें से 28% तो क्लोज्ड ऑटोक्रेसी यानी 'संकीर्ण निरंकुशता' में थे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले भारत में उदार लोकतंत्र की स्थिति सुधर रही थी, लेकिन हाल के वर्षों में इसे पहले की स्थिति में धकेल दिया गया है। वी डेम की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे आबादी वाले देशों में गिरावट से औसत स्तर प्रभावित होता है।
एशिया-प्रशांत क्षेत्र में उदार लोकतंत्र की स्थिति अब 45 साल पहले यानी 1978 के स्तर पर पहुँच गई है। यह वह वर्ष था जब डेंग शियाओपिंग ने चीनी अर्थव्यवस्था के उदारीकरण की शुरुआत की थी, और इंदिरा गांधी की भारत में आपातकाल को हटाकर देश के लोकतंत्र को बहाल किया गया था।
बता दें कि 2021 में इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस ने अपनी ग्लोबल स्टेट ऑफ़ डेमोक्रेसी रिपोर्ट में भारत को पिछड़ते लोकतंत्र के रूप में बताया था। इस रिपोर्ट के आँकड़ों से पता चलता है कि 1975 और 1995 के बीच लोकतंत्र के पैमाने पर सुधार होकर भारत का स्कोर .59 से .69 हो गया था। 2015 में यह .72 था। हालाँकि, 2020 में यह घटकर .61 पर आ गया, यानी यह 1975 में भारत के उस स्कोर के क़रीब हो गया है जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था।
वी डेम ने पूरी दुनिया में फैलती निरंकुशता को लेकर चिंचा चताई है और कहा है कि 'पिछले 35 वर्षों में लोकतंत्र के वैश्विक स्तर में हुई प्रगति को ख़त्म कर दिया गया है।'
रिपोर्ट बताती है कि आज उदार लोकतंत्रों की तुलना में अधिक संकीर्ण निरंकुशताएं हैं और दुनिया के केवल 13% लोग ही अब उदार लोकतंत्रों में रहते हैं।
वी-डेम के आँकड़ों के अनुसार, दुनिया की 72% आबादी इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी यानी चुनावी निरंकुशता या क्लोज्ड ऑटोक्रेसी यानी संकीर्ण निरंकुशता में रहते हैं। यह दस साल पहले के 46% से अधिक है। दुनिया की आबादी का 44% चुनावी निरंकुशता में रहते हैं, जिनमें भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, रूस, फिलीपींस और तुर्की जैसे आबादी वाले देश शामिल हैं।
बड़ी आबादी वाले संकीर्ण निरंकुशों में चीन, ईरान, म्यांमार और वियतनाम शामिल हैं। यह शासन प्रकार दुनिया की आबादी का 28% है।
33 उदार लोकतंत्रों में तुलनात्मक रूप से छोटी आबादी है और दुनिया की आबादी का मात्र 13% घर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि यहाँ भी निरंकुशता की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन ये अभी भी उदार लोकतंत्र की श्रेणी में हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि निरंकुशता में बदलने के बाद निरंकुशता की प्रक्रिया भारत सहित कुछ देशों में 'काफी धीमी या रुकी हुई' है।
रिपोर्ट निरंकुश देशों की कुछ विशेषताओं की ओर भी इशारा करती है। इनमें मीडिया सेंसरशिप में बढ़ोतरी और नागरिक समाज का दमन, शैक्षणिक स्वतंत्रता में कमी, सांस्कृतिक स्वतंत्रता और बोलने की आज़ादी शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि मीडिया सेंसरशिप और नागरिक समाज का दमन 'निरंकुश देशों में शासक सबसे अधिक बार और सबसे ज़्यादा इस्तेमाल करते हैं'।
हाल ही में वी-डेम ने ‘अकादमिक स्वतंत्रता सूचकांक’ जारी किया है। उसमें कहा गया कि भारत दुनिया के 179 देशों में से उन 22 देशों में शुमार है, जहां शिक्षण संस्थानों और शिक्षाविदों को काफी कम स्वतंत्रता मिली है। भारत इस मामले में नेपाल, पाकिस्तान और भूटान जैसे अपने पड़ोसी देशों से भी पिछड़ा हुआ बताया गया है।
चुनावी लोकतंत्र सूचकांक में भारत 108 वें स्थान पर
लिबरल डेमोक्रेसी इंडेक्स (एलडीआई) पर भारत की स्थिति एक बार फिर भयावह रूप से कम है। यह 2022 में 100वें स्थान से गिरकर इस साल 108वें स्थान पर पहुँच गया है। पड़ोसी देश पाकिस्तान केवल दो स्थान नीचे 110 वें स्थान पर है।
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