भारत और चीन के बीच बढ़ रहे तनाव में अमेरिका की दिलचस्पी बढ़ती ही जा रही है। वह कभी मध्यस्थता की पेशकश करता है तो कभी चीन को कूटनीतिक तौर तरीकों का सम्मान करने की हिदायत देता है तो कभी भारत पर 'आक्रामक' होने के लिए चीन की निंदा करता है।
अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के हिसाब से बेहद अहम घटनाक्रम में अमेरिका ने भारत में 'चीनी आक्रमण' पर चिंता जताई है और चीन से आग्रह किया है कि वह सीमा के सवाल को सुलझाने के लिए 'मौजूदा कूटनीतिक माध्यमों का सम्मान करे।'
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'चीनी आक्रमण'
अमेरिकी संसद हाउस ऑफ़ रीप्रेजेन्टेटिव्स के विदेशी मामलों की समिति के प्रमुख इलियट एंजेल ने कहा, 'मैं वास्तविक नियंत्रण रेखा पर फ़िलहाल चल रहे चीनी आक्रमण से बेहद चिंतित हूं। चीन यह साफ़ कर देना चाहता है कि वह अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर समस्या को निपटाने के बजाय अपने पड़ोसी को डराना चाहता है।'याद दिला दें कि उत्तराखंड और लद्दाख के इलाक़ों में वास्तविक नियंत्रण रेखा के आर-पार चीन और उसके बाद भारत ने अपने सैनिकों की मौजूदगी बढ़ा दी है और अपने सैनिक साजो-सामान का जमावड़ा भी बढ़ा दिया है। चीनी सैनिक भारतीय इलाक़े में घुस आए हैं और भारतीय सैनिकों के कहने पर भी पीछे नहीं हट रहे हैं।
क्या कहा माइक पैम्पियो ने
लगभग इसी समय अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पैम्पियो ने भी इस पर चिंता जताई है कि चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास सैनिक और साजो-सामान का बड़ा जमावड़ा कर रखा है।उन्होंने कहा, 'हमने देखा है कि आज भी चीन ने भारत के उत्तर में वास्तविक नियंत्रण रेखा तक अपनी अपनी सेना की मौजूदगी में बढ़ोतरी कर ली है।'पैम्पियो ने इसके साथ ही हांगकांग की चर्चा की और कहा कि उसके प्रति व्यवहार से पता चलता है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का राज लोकतंत्र विरोधी है।उन्होंने कहा कि इसका असर सिर्फ चीन और हांगकांग में रहने वाले लोगों पर ही नहीं, पूरी दुनिया पर पड़ता है।
पैम्पियो का यह बयान ऐसे समय आया है जब सैनिक स्तर पर भारत और चीन के बीच बातचीत नाकाम हो चुकी है। वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास तैनात दोनों देशों की सेनाओं के स्थानीय कमांडरों की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला। अब बीजिंग और दिल्ली में कूटनीतिक स्तर पर बातचीत चल रही है।
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