मणिपुर हिंसा को लेकर संसद भवन में शनिवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक हुई। हिंसाग्रस्त मणिपुर की स्थिति का जायजा लेने के लिए अमित शाह ने ये बैठक बुलाई थी। इस बैठक में तमाम राजनीतिक दलों ने अपनी बात रखी।गृह मंत्री ने सभी राजनीतिक दलों को मौजूदा हालातों की जानकारी दी। गृह मंत्रालय की ओर से शांति स्थापित करने के लिए अब तक उठाए गए कदमों के बारे में बताया। संसद भवन में करीब 3 घंटे तक यह बैठक चली। इस बैठक में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, राजद, वामदलों समेत विभिन्न राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया। बैठक में विपक्षी दलों ने मांग कि है कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को मणिपुर भेजा जाए। राज्य में और पुलिस बल की तैनाती की जाए। कहा कि यह पुलिस और सेना या असम राइफल्स द्वारा नियंत्रित की जाने वाली कानून और व्यवस्था का उल्लंघन नहीं है। यह राज्य और केंद्र सरकार में शासन की विफलता है।
सर्वदलीय बैठक पर क्या बोले विपक्षी नेता
इस बैठक के बारे में जानकारी देते हुए राजद सांसद मनोज झा ने कहा कि विपक्षी नेताओं ने बैठक में कहा कि मणिपुर के प्रशासन का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति भरोसेमंद नहीं है। उन्होंने कहा कि जब तक वह सत्ता में हैं मणिपुर में शांति नहीं हो सकती है। बैठक पर डीएमके सांसद तिरुचि शिवा ने कहा कि बैठक में हमने पिछले 50 दिनों से अधिक समय से मणिपुर में चल रही घटनाओं के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की है। गृह मंत्री ने हम सभी की बात सुनी। उन्होंने कहा कि गृहमंत्री ने हमें भरोसा दिलाया है कि वह इस मामले पर नजर बनाए हुए हैं, शांति बहाल की जाएगी।
सर्वदलीय बैठक मणिपुर में करने की जरूरत
कांग्रेस पार्टी की ओर से बैठक में गए मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री इबोबी सिंह ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाया। इबोबी सिंह कहा है कि इस तरह की सर्वदलीय बैठक मणिपुर में करने की जरूरत है।
समाजवादी पार्टी ने इस सर्वदलीय बैठक में मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की मांग की। वहीं तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने कहा कि एक हफ्ते में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल मणिपुर भेजा जाए। वहीं शिवसेना (यूबीटी) की नेता और राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी को मणिपुर हिंसा को देखना चाहिए।
अटल सरकार में भी जल रहा था मणिपुर:जयराम
मणिपुर पर हुई इस सर्वदलीय बैठक के बाद कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मीडिया से बात करने हुए भाजपा पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि जून 2001 में में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब भी मणिपुर जल रहा था। उसके बाद मणिपुर अमन, शांति और विकास के रास्ते पर लौट आया उसका प्रमुख कारण था कि मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री इबोबी सिंह ने 15 साल वहां स्थिर सरकार दी। तीन मई से ही हम मांग कर रहे हैं कि प्रधानमंत्री इसपर कुछ बोलें, प्रधानमंत्री को इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए। उन्होंने कहा कि बेहतर होता कि यह सर्वदलीय बैठक इंफाल में होती जिससे यह संदेश जाता कि मणिपुर की पीड़ा देश की पीड़ा है। वहां अलग-अलग मिलिटेंट ग्रुप हैं जिनके पास हथियार हैं। हमारी सरकार से मांग है कि बिना किसी भेदभाव के सारे मिलिटेंट ग्रुप से हथियार वापस लिए जाएं। जब तक एन. बीरेन सिंह मणिपुर के मुख्यमंत्री रहेंगे तब तक मणिपुर में स्थिति में सुधार की संभावना नहीं है, उनसे इस्तीफा लेना चाहिए।
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