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देश भर के स्कूलों में बच्चों के नामांकन में बड़ी गिरावट क्यों आई?

जहाँ हर साल स्कूलों में छात्रों का नामांकन बढ़ता था वहीं अब कम क्यों हो गया है? कम भी हुआ तो काफी बड़ी संख्या में। पिछले दो साल में क़रीब दो करोड़ नामांकन कम हुआ है। यानी हर साल क़रीब एक करोड़ छात्रों के नामांकन में कमी आई है।

देश भर के स्कूलों में 2021-22 में छात्रों का नामांकन जहाँ साढ़े 26 करोड़ था वहीं 2022-23 में यह क़रीब सवा 25 करोड़ और 2023-24 में यह 24.8 करोड़ रह गया। देश भर की स्कूली शिक्षा और छात्रों का सबसे पुख्ता आँकड़ा रखने वाले यूडीआईएसई ने यूडीआईएसई+ रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो सत्रों को छोड़ दें तो उससे पहले के चार वर्षों में हर साल औसतन लगभग 26 करोड़ नामांकन रहा था। इस वित्त वर्ष यह नामांकन 24.8 करोड़ ही रहा है।

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ताज़ा रिपोर्ट से पता चलता है कि 2018-19 से 2021-22 तक स्कूल नामांकन 26 करोड़ से ऊपर रहा, जिसमें हर साल कुछ लाख छात्रों की मामूली वृद्धि हुई। 2020-21 के कोविड वर्ष के दौरान थोड़ी गिरावट आई थी, इस पूरी अवधि में संख्या 26 करोड़ से ऊपर रही।

पहली बार, नामांकन के आंकड़े 2022-23 में कम होकर 25.17 करोड़ रह गए और 2023-24 में और भी कम होकर 24.8 करोड़ हो गए। यह 2018-19 से 2021-22 की अवधि से लगभग 1.55 करोड़ कम है। यानी लगभग 6 प्रतिशत की गिरावट आई। तो सवाल है कि ऐसी गिरावट कैसे आ गई?

अधिकारियों ने इस गिरावट का श्रेय डेटा जुटाने के बेहतर तरीक़ों को दिया है, जिससे डुप्लिकेट एंट्री ख़त्म हो गई हैं। दरअसल, अब यूडीआईएसई+ पर एंट्री आधार नंबर पर आधारित हो गई है। 
इससे उन छात्रों के डुप्लीकेट नामांकनों को हटा दिया गया है जिनके नाम दो-दो स्कूलों में थे। आधार नंबर से वेरिफिकेशन में पता चला कि कई बच्चे ऐसे थे जिनका नामांकन सरकारी स्कूलों में तो था ही, निजी स्कूलों में भी नामांकन था।

नामांकनों का जब आधार नंबर से वेरिफिकेशन किया गया तो ऐसे डुप्लीकेट नामांकनों का पता चला। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार मंत्रालय के अधिकारियों ने नामांकन में गिरावट को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि यह 2022-23 में लागू किए गए संशोधित डेटा संग्रह विधियों के कारण है। नई प्रणाली के तहत स्कूलों को अब केवल स्कूल-स्तरीय संख्याओं के बजाय छात्रों की पूरी जानकारी देनी होगी। इसके लिए प्रत्येक छात्र के लिए विस्तृत रिकॉर्ड की आवश्यकता होती है, जिसमें उनका नाम, माता-पिता का नाम, पता और आधार संख्या शामिल है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'इससे कुछ संख्याएँ कम हो सकती हैं, जैसे कि वे बच्चे जो सरकारी स्कूल और निजी दोनों में नामांकित हैं।'

यूडीआईएसई+ की रिपोर्ट में कहा गया है कि डेटा जुटाने की नई पद्धति से समग्र शिक्षा योजना, पीएम पोषण योजना, राष्ट्रीय छात्रवृत्ति योजना आदि के लाभ हस्तांतरण के लिए लाभार्थियों की पहचान हो सकेगी और इससे आने वाले वर्षों में सरकार को महत्वपूर्ण बचत हो सकती है। 

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इसका यह भी अर्थ है कि कई वर्षों तक सरकारी डेटा को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया। सरकारी अधिकारियों के अनुसार, शिक्षा मंत्रालय ने नामांकन के आंकड़ों में उल्लेखनीय गिरावट वाले राज्यों से गिरावट के बारे में स्पष्टीकरण मांगा है। राज्यों में, 2018-19 की तुलना में 2023-24 में नामांकन में सबसे बड़ी गिरावट बिहार में हुई, जहाँ यह 35.65 लाख कम हुई। इसके बाद उत्तर प्रदेश में 28.26 लाख और महाराष्ट्र में 18.55 लाख नामांकन कम हो गए। आंध्र प्रदेश, दिल्ली, जम्मू और कश्मीर और तेलंगाना को छोड़कर अधिकांश राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने 2018-19 की तुलना में 2023-24 में नामांकन में गिरावट दर्ज की है। 

अंग्रेज़ी अख़बार से यूपी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'बच्चे छात्रवृत्ति या अन्य लाभों के लिए सरकारी स्कूलों में दाखिला लेते थे, और निजी स्कूलों में भी दाखिला लेते थे, जिस वजह से कई एंट्री होती थीं जिन्हें अब हटा दिया गया है। डेटा अब आधार से जुड़ा हुआ है।' हालांकि, महाराष्ट्र के अधिकारियों ने कहा कि आधार के इस्तेमाल से कुछ वास्तविक छात्र नामांकन के आंकड़ों से बाहर हो सकते हैं और इन शुरुआती मुद्दों को हल करने के बाद अंतिम संख्या में सुधार हो सकता है। उन्होंने कहा, 'यह बेमेल डेटा जैसे तकनीकी मुद्दों के कारण होता है। उदाहरण के लिए, आधार और स्कूल-रिकॉर्ड में छात्र का नाम मेल नहीं खाता है। इस प्रकार, जब तक आधार कार्ड पर इसे ठीक नहीं किया जाता है, तब तक सत्यापन अधूरा रहता है। शुरुआत में यह स्कूल के लेटर-हेड पर अनुरोध के साथ संभव था, अब यह बदलाव माता-पिता कराएँगे जिनके पास अपना आधार कार्ड होना चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया में समय लगेगा, इस प्रकार कुल नामांकन में उनके शामिल होने में देरी होती है।'

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क़मर वहीद नक़वी
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