दुनिया भर में मशहूर और ब्रिटेन से छपने वाली स्वास्थ्य पत्रिका 'द लांसेट' ने शोध में पाया है कि कोरोना टीका की दो खुराकों के बीच का अंतर कम होना चाहिए क्योंकि पहली खुराक़ के बाद इतनी एंटीबॉडी नहीं बनती है कि वह उस व्यक्ति को पूरी तरह इम्यून कर सके। भारत में पाए जाने वाले 'डेल्टा' किस्म के वायरस के साथ ख़ास कर महत्वपूर्ण है।
यह भारत सरकार के उस फ़ैसले के ठीक उलट है, जिसमें दो कोरोना खुराकों के बीच का समय 6-8 हफ़्ते से बढ़ा कर 12-16 हफ़्ता कर दिया गया।
उस समय भी सरकार ने इसके लिए ठोस वैज्ञानिक आधार या किसी शोध का हवाला नहीं दिया था। यह कहा गया था कि कोरोना टीके की कमी के कारण सरकार ने यह फ़ैसला लिया है, हालांकि सरकार ने कोरोना वैक्सीन की कमी से इनकार किया था।
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हमारे शोध के नतीजों से यह पता चलता है कि सबसे अच्छा यह है कि पहली खुराक़ के बाद जल्द से जल्द दूसरी खुराक़ दे दी जाए क्योंकि यह हो सकता है कि नए वैरिएंट के ख़िलाफ़ इम्यून पूरी तरह विकसित न हो।
एमा वॉल, वरिष्ठ सलाहकार, यूसीएलएच इन्फेक्सश डिजीज़
यह शोध ब्रिटिश सरकार के इस फ़ैसले के अनुकूल है कि कोरोना टीका के दो खु़राकों के बीच का समय कम किया जाए।
'द लांसेट' का यह शोध दरअसल भारत में प्रमुखता से पाए जाने वाले 'डेल्टा' वैरिएंट के वायरस पर फ़ाइजर बायो एन टेक के कोरोना टीका के प्रभाव से जुड़ा हुआ है। इसमें यह कहा गया कि फ़ाइजर के टीके की प्रभावकता 79 प्रतिशत है, लेकिन 'अल्फा' वैरिएंट के वायरस पर 50 प्रतिशत, 'बीटा' पर 25 प्रतिशत और डेल्टा पर 32 प्रतिशत प्रभावी है।
'द लांसेट' की टीम ने ब्रिटेन स्थित फ्रांसिस क्रिक इंस्टीच्यूट के क्लिनिक में 250 कोरोना मरीजों पर यह शोध किया।
क्या कहना है सरकराी पैनल का?
बता दें कि कोविशील्ड वैक्सीन की जो खुराकें शुरुआत में 4 हफ़्ते के अंतराल में लगाई जा रही थीं उसको 12-16 हफ़्ते बढ़ाने की सिफ़ारिश सरकारी पैनल ने की। क़रीब दो महीने में यह दूसरी बार है जब कोविशील्ड की खुराक के अंतराल को बढ़ाने की सिफ़ारिश की गई है।
शुरु में यह अंतराल 4-6 हफ़्ते का था। मार्च के दूसरे पखवाड़े में अंतराल को बढ़ाकर 6-8 सप्ताह किया गया था। और अब मई के मध्य में इस अंतराल को बढ़ाकर 12-16 हफ़्ते करने की सिफ़ारिश की गई है।
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क्या कहा था सरकार ने?
कोरोना से संक्रमित मरीज़ों को ठीक होने के बाद अब तक दो हफ़्ते में वैक्सीन लगाई जा रही थी, लेकिन सरकार के विशेषज्ञों के पैनल ने इसे 3-9 महीने में लगाए जाने की सिफ़ारिश कर दी। यानी सिफारिश के अनुसार यदि कोई कोरोना संक्रमण से आज ठीक होता है तो उसे 3 महीने बाद और 9 महीने से पहले उसे टीके की पहली खुराक लगाई जा सकेगी।
विशेषज्ञों के पैनल ने कहा है कि यह फ़ैसला पूरी तरह वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर लिया गया है।
आम तौर पर जो शोध अब तक सामने आए हैं उनमें कहा गया है कि कोरोना संक्रमण से ठीक हुए लोगों में क़रीब तीन महीने तक वायरस के ख़िलाफ़ एंटीबॉडी प्रभावी होती है। शरीर में धीरे-धीरे यह एंटीबॉडी कमजोर पड़ने लगती है और वायरस के संपर्क में आने पर फिर से संक्रमित होने का ख़तरा बढ़ जाता है।
इन्हीं वजहों से दुनिया के अधिकतर देशों में सलाह दी जा रही है कि कोरोना से ठीक हुए लोगों को तीन महीने में वैक्सीन ले लेनी चाहिए।
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