ब्रिटिश पत्रिका 'द लांसेट' को दुनिया के 21 विशेषज्ञों ने कहा है कि कोरोना की तीसरी लहर को रोकने के लिए भारत को बड़े और सख़्त कदम उठाने होंगे।
उन्होंने इसके लिए भारत को आठ सलाह दिए। इन विशेषज्ञों में दो भारतीय हैं- हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर देवी शेट्टी और बायोकॉन की प्रमुख किरण शॉ मजुमदार।
इन्होंने कहा है कि-
- आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं का विकेंद्रीकरण कर दिया जाए। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग स्थितियाँ हैं और यह साफ है कि एक ही उपाय सब जगह कारगर नहीं हो सकती है।
- आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की कीमतें और शुल्क एक हो, उनकी एक राष्ट्रीय नीति हो और वह पूरी तरह पारदर्शी हो। एंबुलेन्स सेवा, ऑक्सीजन, ज़रूरी दवाएँ और अस्पतालों के चार्ज वगैरह एक समान हो। अस्पताल ऐसे शुल्क न लें कि रोगी के परिजन के लिए उन्हें चुकाना मुमिकन ही न हो। इन सभी खर्चों का भुगतान बीमा से किया जाए, यह व्यवस्था हो। ऐसा कुछ जगहों पर किया गया है।
- कोरोना से निपटने के उपायों के रूप में तथ्य आधारित जानकारी हों, जिनका प्रचार-प्रसार किया जाए। इनमें घर पर सेवा करने, ज़िला अस्पताल में दाखिल करने या स्थानीय अस्पतालों में दाखिल करने पर देखभाल की जानकारी अंतरराष्ट्रीय मानकों के आधार पर हों।
- स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े सभी लोगों चाहे वे सरकारी क्षेत्र में हों निजी क्षेत्र में, उनका इस्तेमाल किया जाए। ये लोग उपकरण, क्लिनिकल खोजों, बीमा और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े हो सकते हैं। इन सबका इस्तेमाल किया जाए।
- सभी राज्य टीकाकरण के मामले में अपनी प्रथामिकता खुद तय करें, यानी उपलब्ध टीकों के सही इस्तेमाल करने के लिए वह खुद प्रथामिकता तय करे। सरकार खुद टीकाकरण करे और इसे निजी क्षेत्र के भरोसे न छोड़ा जाए।
- कोरोना से लड़ने में समाज के हर तबके का इस्तेमाल किया जाए। ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ताओं और सिविल सोसाइटी की मदद ली जाए, वे स्थानीय स्तर पर बेहतर काम कर सकते हैं।
- कोरोना से जुड़े आँकड़े एकत्रित करने और मैथेमैटिकल मॉडलिंग तैयार में पूरी पारदर्शिता बरती जाए। स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों को उम्र, लिंग, अस्पातल में भर्ती कराने से जुड़ी जानकारी, मौत की दर जैसी तमाम जानकारियाँ दी जाएं और यह बिल्कुल सही हों।
- असंगठित क्षेत्र के जिन लोगों की आजीविका कोरोना की वजह से चली गई है, उन्हें सीधे नकद रकम देकर उनकी मदद की जाए। संगठित क्षेत्र के नियोक्ताओं को चाहिए कि वे इस दौरान किसी को नौकरी से न निकालें, जिन कर्मचारियों का कंट्रैक्ट ख़त्म हो गया हो, उन्हें भी नौकरी पर रहने दें। सरकार अर्थव्यवस्था सुधरने के बाद इन कंपनियो की मदद कर इसकी भरपाई करे।
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