सामान्य सी दिखने वाली यह बात मामूली नहीं है। चीन-समर्थक छवि वाले ओली के इस व्यवहार को भारत के प्रति झुकाव या भारत के सामने आत्मसमर्पण करने की तरह देखा जा रहा है। इसकी वजह यह है कि पिछले साल इस मुद्दे पर काफी विवाद हुआ था। नेपाल का कहना है कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा उसके इलाक़े हैं और भारत ने उन पर ज़बरन कब्जा कर रखा है।
प्रमोद मल्लिक
क्या नेपाल एक बार फिर भारत के दबाव में आ गया है या उसने अपने दूरगामी हितों को ध्यान में रख कर सोच-समझ कर यह फ़ैसला किया है कि नक्शे के मामले को बहुत अधिक तूल देने के बजाय भारत को शांत किया जाए? कारण चाहे जो हो, पर यह तो साफ है कि दोनों पड़ोसियों के बीच कटुता में कमी आई है। रिश्ते सुधर रहे हैं।
इसे इससे समझा जा सकता है कि देश के सबसे बड़े त्योहार विजय दशमी के मौके पर प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली ने जो ग्रीटिंग कार्ड लोगों को दिया है, उसमें देश के पुराने नक्शे का इस्तेमाल किया गया है। यह महत्वपूर्ण इसलिए है कि नेपाली संसद ने संविधान में संशोधन कर नया नक्शा जारी किया था, जिसमें उन इलाक़ों को भी दिखाया गया है, जो भारत के उत्तराखंड में है।
विपक्ष ने इस पर ओली की यह कह कर आलोचना की है कि 'वे इस मुद्दे पर अपने पहले के रवैए से पीछे हट रहे हैं, इस तरह वे देश की सीमा पर बनी आम सहमति का उल्लंघन कर रहे हैं।'
प्रधानमंत्री के प्रेस सलाहकार सूर्य थापा ने इस पर सफ़ाई देते हुए कहा है कि 'नया नक्शा ही है, पर जगह कम होने के कारण पूरा दिख नहीं रहा है।'ज़ाहिर है, इस सफाई को कोई स्वीकार नहीं करेगा और इसे बहाना ही माना जाएगा।
क्या भारत-नेपाल विवाद के पीछ चीन का हाथ है? वरिष्ठ पत्रकार शैलेश का यह वीडियो देखें।
विजय दशमी के इस ग्रीटिंग्स कार्ड को भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रिसर्च एंड एनलिसिस विंग यानी रॉ के प्रमुख सामंत कुमार गोयल से हुई मुलाक़ात से जोड़ कर देखा जा रहा है। उन्होंने बीते दिनों ही ओली से मुलाक़ात की थी।
विवाद क्या है?
सामान्य सी दिखने वाली यह बात मामूली नहीं है। चीन-समर्थक छवि वाले ओली के इस व्यवहार को भारत के प्रति झुकाव या भारत के सामने आत्मसमर्पण करने की तरह देखा जा रहा है।
इसकी वजह यह है कि पिछले साल इस मुद्दे पर काफी विवाद हुआ था। नेपाल का कहना है कि लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा उसके इलाक़े हैं और भारत ने उन पर ज़बरन कब्जा कर रखा है। भारत का कहना है कि ये इलाक़े भारत के नियंत्रण में हमेशा ही रहे हैं, भारत के ही हैं।
स संविधान संशोधन के समय संसद में प्रधानमंत्री ओली ने भारत का नाम लिए बग़ैर कहा था,
“
'इस मुद्दे को अब और ज़्यादा नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। अगर कोई नाराज़ होता है तो हमें परेशान होने की ज़रूरत नहीं है और हम उस ज़मीन को किसी भी क़ीमत पर हासिल करेंगे।’
के. पी. शर्मा ओली, प्रधानमंत्री, नेपाल
इस पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता ही चला गया। भारत ने इसे खारिज करते हुए कहा है कि यह अस्वीकार्य है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा,
“
'हमने यह देखा है कि नेपाल की प्रतिनिधि सभा ने नेपाल का नक्शा बदलने के लिए एक संविधान संशोधन विधेयक पारित कर दिया है, जिसमें भारतीय इलाक़ों को शामिल किया गया है। हम इस बारे में अपनी स्थिति पहले ही साफ़ कर चुके हैं।'
अनुराग श्रीवास्तव, प्रवक्ता, भारतीय विदेश मंत्रालय
ओली-योगी विवाद
दोनों देशों के बीत तनाव इतना बढ गया था कि केपी शर्मा ओली ने कहा है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह बताया जाना चाहिए कि वह नेपाल को धमका नहीं सकते।
योगी आदित्यनाथ ने नेपाल द्वारा कालापानी इलाक़े पर दावा जताए जाने के बाद कहा था कि नेपाल को तिब्बत द्वारा की गई ग़लती को नहीं दुहराना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा था कि भले ही नेपाल और भारत अलग देश हों लेकिन उनकी आत्मा एक है।
विवाद क्या है?
लिपुलेख एक दर्रा है जो कालापानी के पश्चिम में स्थित है। विवाद की शुरुआत उस समय हुई जब भारत चीन स्थित कैलाश मानसरोवर तक के लिए एक सड़क बना रहा था जो इसी दर्रे से होकर गुजरेगी। नेपाल ने इसका यह कह कर विरोध किया कि यह उसका हिस्सा है और भारत वहां सड़क नहीं बना सकता।
अस्सी के दशक में भारत-नेपाल सीमा निर्धारण के लिए एक तकनीकी स्तर का संयुक्त सीमा कार्यदल गठित किया गया था जिसने कालापानी और सुस्ता के इलाके को छोड़कर बाकी की सीमा तय कर दी थी। इसके तुरंत बाद भारतीय राजनयिकों को चाहिये था कि नेपाली राजनयिकों के साथ वार्ता जारी रखकर इसका हल निकाल लेते, लेकिन यह मसला लटका रहा और जब सन 2000 में तत्कालीन नेपाली प्रधानमंत्री बी.पी. कोईराला ने भारत का दौरा किया तो तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें भरोसा दिलाया कि 2002 तक इस मसले का हल बातचीत से निकाल लिया जाएगा। लेकिन यह मसला फिर लटका रहा।
गौरतलब है कि नेपाल-भारत सीमा का मूल निर्धारण 1816 में तत्कालीन ब्रिटिश भारत और नेपाल सरकार के बीच सुगौली संधि के जरिये हुआ था और फिर 1923 में इस संधि की पुष्टि की गई। इस संधि में महाकाली के पश्चिमी इलाके भारत के अधीन तय किये गए, जहां 309 वर्ग किलोमीटर का कालापानी का इलाका आता है।
अपने-अपने तर्क
नेपाल का कहना है कि महाकाली नदी लिपुलेख के उत्तर-पश्चिम में लिम्पियाधुरा से निकलती है, इसलिए कालापानी और लिपुलेख का इलाका नदी के पूर्व में पड़ता है और इस नाते वह सारा इलाका नेपाल का माना जाना चाहिये जबकि भारत का कहना है कि महाकाली नदी लिपुलेख दर्रे के नीचे से निकलती है और सुगौली संधि में इस इलाके का पक्का निर्धारण नहीं किया गया।भारत का कहना है कि इस इलाके पर 19वीं सदी से ही ब्रिटिश भारत सरकार का राजस्व और प्रशासनिक अधिकार रहा है। इस नाते कालापानी भारत का है जो उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले का हिस्सा बनता है।
गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।
नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & Norms व Cancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 6 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 180 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 6 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
'सत्य हिन्दी' के 12 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से एक वर्ष के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 12 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
सदस्यता तिथि से एक वर्ष की अवधि में 'सत्य हिन्दी' द्वारा आयोजित हर webinar में भाग लेने के लिए आपको मुफ़्त निमंत्रण। आप प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा।
'सत्य हिन्दी' द्वारा यदि भारत में कुछ विशेष कार्यक्रमों (Ground Events) का आयोजन किया जाता है, तो उनमें से किसी एक कार्यक्रम में भाग लेने का विशेष निमंत्रण (Special Invite)* शर्त लागू: (जब तक कोरोना वायरस के कारण उपजी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती, तब तक यह सम्भव नहीं होगा।)
विशिष्ट सदस्यता स्मृति चिह्न।**
* स्मृति चिह्न हम केवल भारतीय पते पर ही भेज पायेंगे, विदेश में नहीं। **स्मृति चिह्न सदस्यता लेने की तिथि के 60 दिन बाद भेजा जायेगा।
विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
सदस्यता तिथि से एक वर्ष की अवधि में 'सत्य हिन्दी' द्वारा आयोजित हर webinar में भाग लेने के लिए आपको मुफ़्त निमंत्रण। आप प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा।
'सत्य हिन्दी' द्वारा यदि भारत में कुछ विशेष कार्यक्रमों (Ground Events) का आयोजन किया जाता है, तो उनमें से किसी एक कार्यक्रम में भाग लेने का विशेष आरक्षित प्रीमियम निमंत्रण (Specially Reserved Premium Invite)* शर्त लागू: (जब तक कोरोना वायरस के कारण उपजी स्थिति पूरी तरह सामान्य नहीं हो जाती, तब तक यह सम्भव नहीं होगा।)
अति विशिष्ट सदस्यता स्मृति चिह्न।**
** स्मृति चिह्न हम केवल भारतीय पते पर ही भेज पायेंगे, विदेश में नहीं। **स्मृति चिह्न सदस्यता लेने की तिथि के 60 दिन बाद भेजा जायेगा।
This membership is open only to Non Resident Indians (NRI), Persons of Indian Origin (PIO), Overseas citizens of India (OCI) or Indian Citizens currently staying abroad. If you are not belong to any of these categories, please do not proceed.
*Membership will be cancelled if the above declaration is found to be false and Membership Fee will be refunded to the source account which was used to pay it.
प्रमोद मल्लिक
लेखक पत्रकार हैं, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर लिखते रहते हैं। और पढ़ें »
अपनी राय बतायें