सरकार ने उत्तराखंड में चीनी सीमा से लगने वाली वास्तविक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ़ एक्चुल कंट्रोल या एलएसी) पर बड़ी संख्या में सैनिकों को तैनात किया है। सीमा के उस पार बड़ी तादाद में चीनी सैनिकों के जमावड़े और इस मुद्दे पर दोनों सेनाओं के स्थानीय कमांडरों की बातचीत नाकाम होने के बाद ऐसा किया गया है।
भारत-चीन सीमा रेखा के पश्चिमी सेक्टर में लद्दाख में भी इस तरह का सैनिक जमावड़ा दोनों तरफ हो चुका है। भारत ने सीमा पर गश्त बढ़ा दी है और ड्रोन के ज़रिए चौबीसो घंटे सीमा की निगरानी का काम काम शुरू कर दिया है।
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दोनों तरफ सैनिक जमावड़ा
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक ख़बर में कहा है कि इसकी शुरुआत सीमा रेखा के मध्य सेक्टर में गुलदोंग में चीनी सैनिकों के जमावड़े का साथ हुई। वहाँ अभी भी बड़े पैमाने पर चीनी सैनिक तैनात हैं। इसके जवाब में भारत ने भी अपने सैनिकों को वहाँ तैनात कर दिया है। इससे वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव बढ़ना स्वाभाविक है।एक वरिष्ठ अफ़सर के मुताबिक़ ‘चीनी सैनिकों की तैनाती के कारण हरसिल सेक्टर में हमें भी अपनी तैनाती बढ़ानी पड़ी।’
ड्रोन से निगरानी
पूर्वी लद्दाख में ड्रोन के परिचालन और नियंत्रण के लिए इंजीनियरों और दूसरे विशेषज्ञों को लगाया गया है क्योंकि निगरानी में इसका इस्तेमाल किया जा रहा है।ड्रोन से निगरानी की बड़ी वजह यह है कि कठिन और ऊँची पहाड़ी वाले इलाक़े में सैनिकों की गश्त मुश्किल है। ड्रोन से निगरानी आसान भी है और उसमें कोई जोख़िम भी नहीं है।
लूप बटालियन
विशेष रूप से प्रशिक्षित सैनिकों को दूसरे थिएटर यानी दूसरे इलाक़े से बुलाया गया है, लूप बटालियन तैयार किया गया है। किसी इलाक़े में कुछ अतिरिक्त सैनिकों को तैयार किया जाता है ताकि ज़रूरत पड़ने पर उन्हें तुरन्त और आवश्यकता के अनुरूप लगाया जा सके। इस तरह से बने बटालियन को लूप बटालियन कहते हैं।विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के लिए सबसे संवेदनशील और अहम वे इलाके हैं, जिन्हें दार्बुक-सायोक-दौलत बेग ओल्डी यानी डीएसडीबीओ कहते हैं। लगभग 255 किलोमीटर लंबी इस सीमा रेखा का पास भारत के अधिक सैनिक तैनात होते हैं।
क्या है दौलत बेग ओल्डी?
दौलत बेग ओल्डी वह इलाक़ा है, जहाँ भारत ने 2008 में जहाजों के उतरने की सुविधा विकसित कर ली है, जिसे एडवांस्ड लैंडिंग फै़सिलिटी कहते हैं। दौलत बेग ओल्डी वही इलाक़ा जहाँ 2017 में भारत-चीन सैनिकों की हाथापाई हुई थी।दौलत बेग ओल्डी तक पहुँचने के लिए भारत ने पहले सड़क बनाई थी, जो 2001 में टूट गई थी। वह सड़क बना ली गई है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बीते दिनों सायोक नदी पर बने पुल का उद्घाटन किया है। यह पुल कराकोरम पहाड़ी और चान चेंगमो रेंज के बीच स्थिति है। यह वह जगह है जहाँ सायोक और गलवान नदियाँ मिलती हैं। उसके पास ही वास्तविक नियंत्रण रेखा गलवान में है।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारत-चीन सीमा पर तनाव बीजिंग की सोची समझी रणनीति के तहत है। चीनी संसद पीपल्स नेशनल कांग्रेस की बैठक चल रही है। साल में एक बार होने वाली यह बैठक बेहद अहम होती है, जिसमें तमाम नीतिगत फैसले लिए जाते हैं और अगले साल के कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है।
इस साल यह बैठक ऐसे समय हो रही है जब कोरोना संक्रमण के कारण सरकार और प्रशासन पर दबाव है। समझा जाता है कि उस दबाव को कम करने और लोगों का ध्यान बँटाने के लिए सीमा पर यह तनाव बनाया जा रहा है।
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