तमिलनाडु ने कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) के खिलाफ आज मोर्चा खोल दिया। तमिलनाडु विधानसभा ने सोमवार को एक प्रस्ताव पारित कर मोदी सरकार से सीयूईटी प्रस्ताव को वापस लेने का आग्रह किया। केंद्र सरकार के निर्देश पर हाल ही में यूजीसी ने देश की 47 यूनिवर्सिटीज में सीयूईटी लागू कर दिया है। अब इन यूनिवर्सिटीज में सिर्फ सीयूईटी पास करने वाले स्टूडेंट्स को ही एडमिशन मिलेगा। इससे पहले मेरिट के आधार पर एडमिशन मिलता था। सीबीएसई की परीक्षाओं में दक्षिण भारत के स्टूडेंट्स अच्छे मार्क्स लाते थे और उनका एडमिशन दिल्ली समेत देश की जानी-मानी सेंट्र्ल यूनिवर्सिटीज में आसानी से हो जाता था। लेकिन मोदी सरकार ने उस व्यवस्था को अब खत्म कर दिया है। अब मेरिट की जगह सीयूईटी के नतीजे में मिले मार्क्स का महत्व होगा।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने यह प्रस्ताव पेश किया, जिसमें केंद्र सरकार से प्रवेश परीक्षा वापस लेने का आग्रह किया गया। प्रस्ताव में कहा गया है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि एनईईटी की तरह सीयूईटी भी देशभर में विविध स्कूली शिक्षा प्रणाली को दरकिनार कर देगा, स्कूलों में समग्र विकास-उन्मुख दीर्घकालिक शिक्षा की प्रासंगिकता को कम कर देगा और छात्रों को अपने प्रवेश परीक्षा स्कोर में सुधार के लिए कोचिंग सेंटरों पर निर्भर रहना पड़ेगा।प्रस्ताव में कहा गया कि तमिलनाडु विधानसभा को लगता है कि राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के पाठ्यक्रम पर आधारित कोई भी प्रवेश परीक्षा उन सभी छात्रों को समान अवसर प्रदान नहीं करेगी, जिन्होंने देश भर में विभिन्न राज्य बोर्ड के पाठ्यक्रम में अध्ययन किया है।
प्रस्ताव का विरोध करते हुए, बीजेपी ने वाकआउट किया। जबकि मुख्य विपक्षी दल, एआईएडीएमके और सत्तारूढ़ डीएमके के सहयोगियों-कांग्रेस और वाम दलों सहित अन्य ने प्रस्ताव का समर्थन किया। स्पीकर एम अप्पावु ने कहा कि प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया है।
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