बीजेपी के बड़े नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि बीजेपी जाति जनणगना के ख़िलाफ़ कभी नहीं रही है। सुशील कुमार मोदी ने सोमवार को इसे लेकर एक के बाद एक कई ट्वीट किए। उन्होंने अपने ट्वीट में जाति जनगणना को लेकर ऐतिहासिक घटनाक्रमों का भी ज़िक्र किया है। और तो और यह भी साफ़ किया है कि 'जातीय जनगणना कराने में अनेक तकनीकि और व्यवहारिक कठिनाइयाँ हैं, फिर भी बीजेपी सैद्धांतिक रूप से इसके समर्थन में है।' उन्होंने ट्वीट में यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल में बीजेपी भी शामिल है।
भाजपा कभी जातीय जनगणना के विरोध में नहीं रही, इसीलिए हम इस मुद्दे पर विधान सभा और विधान परिषद में पारित प्रस्ताव का हिस्सा रहे हैं।
— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) August 22, 2021
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने वाले बिहार के प्रतिनिधिमण्डल में भी भाजपा शामिल है।
सुशील कुमार ने एक ट्वीट में कहा है कि वर्ष 2011 में बीजेपी के गोपीनाथ मुंडे ने जाती जनगणना के पक्ष में संसद में पार्टी का पक्ष रखा था। उन्होंने आगे कहा, 'उस समय केंद्र सरकार के निर्देश पर ग्रामीण विकास और शहरी विकास मंत्रालयों ने जब सामाजिक, आर्थिक, जातीय सर्वेक्षण कराया, तब उसमें करोड़ों त्रुटियां पायी गईं। जातियों की संख्या लाखों में पहुंच गई। भारी गड़बड़ियों के कारण उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। वह सेंसस या जनगणना का हिस्सा नहीं था।'
बिहार से आने वाले बीजेपी नेता ने यह भी कहा, 'ब्रिटिश राज में 1931 की अंतिम बार जनगणना के समय बिहार, झारखंड और उड़ीसा एक थे। उस समय के बिहार की लगभग 1 करोड़ की आबादी में मात्र 22 जातियों की ही जनगणना की गई थी। अब 90 साल बाद आर्थिक, सामाजिक, भौगोलिक और राजनीतिक परिस्तिथियों में बड़ा फर्क आ चुका है।'
बीजेपी के जाति जनगणना के विरोधी नहीं होने का सुशील कुमार का यह बयान तब आया है जब पिछले महीने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि भारत सरकार ने जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जाति आधारित आबादी की जनगणना नहीं करने के लिए नीति के रूप में तय किया है।
सरकार के इस बयान के बाद से विरोधी दलों के नेता जाति जनगणना के लिए दबाव बनाने लगे। इसके साथ ही जेडीयू और अपना दल जैसे बीजेपी के ही सहयोगी दल भी विरोध करने लगे। इस बीच बीजेपी के ही कई सांसदों ने खुलकर तो कुछ सांसदों ने दबी जुबान में जाति जनगणना की पैरवी की। समझा जाता है कि इसको लेकर मोदी सरकार पर काफ़ी दबाव पड़ा।
इस दबाव को ऐसे भी समझा जा सकता है कि इस महीने की शुरुआत में ही नीतीश कुमार ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री मोदी उनको मुलाक़ात का समय नहीं दे रहे हैं। लेकिन कुछ दिन पहले ही ख़बर आई कि प्रधानमंत्री ने मिलने का समय दे दिया।
दो दिन पहले ही नीतीश ने कहा था, 'लोगों की इच्छा है कि जाति जनगणना होनी चाहिए। मुझे उम्मीद है कि इस पर सकारात्मक चर्चा होगी।'
क़रीब एक पखवाड़े पहले पत्रकारों से बातचीत में नीतीश ने एक ऐसी जनगणना की मांग दोहराई थी जिसमें भारत की जाति की विभिन्नता को ध्यान में रखा गया हो और जैसा बिहार विधानसभा ने सर्वसम्मति से 2019 में और फिर 2020 में एक प्रस्ताव पारित किया था।
तब मुख्यमंत्री ने कहा था, 'यह समझना चाहिए कि निर्णय केंद्र को लेना है। हमने अपनी मांग रखी है। यह राजनीतिक नहीं है, यह एक सामाजिक मामला है।' यह पूछे जाने पर कि यदि केंद्र ऐसा नहीं करता है तो क्या राज्य भी इस तरह की कवायद करेगा, उन्होंने कहा था, 'फिर हम यहाँ इस पर चर्चा करेंगे, ठीक न?'
बिहार में बीजेपी को छोड़कर क़रीब-क़रीब सभी पार्टियाँ जाति आधारित जनगणना की मांग करती रही हैं।
आरजेडी नेता लालू यादव ने भी हाल ही में इसकी मांग की थी। उनके बेटे तेजस्वी यादव लगातार इसकी मांग करते रहे हैं। तेजस्वी यादव तो तर्क देते आए हैं कि 'जब जानवरों की गणना हो सकती है तो जाति जनगणना क्यों नहीं?' उन्होंने तो यहाँ तक मांग की थी कि यदि केंद्र सरकार सहमत नहीं है तो नीतीश कुमार सरकार को ख़ुद से ही ऐसा कर देना चाहिए। तेजस्वी यादव ने कहा था कि नीतीश कुमार को या तो बिहार के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करना चाहिए या प्रधानमंत्री से बात कर इस मुद्दे को उठाना चाहिए।
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