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आरक्षण की सीमा : बड़ी बेंच के पास जाएगा इंदिरा साहनी केस?

इंदिरा साहनी केस एक बार फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह इस पर सुनवाई करेगा कि क्या इंदिरा साहनी केस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए और क्या इसे बड़ी बेंच के पास भेज दिया जाना चाहिए। इंदिरा साहनी केस के फ़ैसले में कहा गया था कि 50 प्रतिशत से ज़्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। 

पाँच जजों की बेंच ने कहा कि इस पर अगले सोमवार से सुनवाई शुरू होगी। अदालत ने सभी राज्यों से भी इस पर अपना पक्ष रखने को कहा है। 

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मराठा आरक्षण की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने यह कहा। इस बेंच में जस्टिस अशोक भूषण, एल नागेश्वर राव, एस अब्दुल नज़ीर, हेमंत गुप्ता और एस रवींद्र भट हैं। 

इसके साथ ही इंदिरा साहनी केस एक बार फिर चर्चा के केंद्र में आ गया।

क्या है इंदिरा साहनी केस?

दिल्ली की वकील इंदिरा साहनी की याचिका पर सुनवाई करने के बाद जस्टिस बी. पी. जीवनरेड्डी की अगुआई में बनी नौ जजों की बेंच ने 1992 में यह फ़ैसला दिया था।

  • इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार व अन्य मामले में बेंच के 6-3 के फ़ैसले में सामाजिक व आर्थिक पिछड़े वर्ग के लिए सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण को सही ठहराया था।
  • बेंच ने आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण को खारिज कर दिया था। इसने कहा था कि पिछड़े वर्ग की पहचान सिर्फ आर्थिक आधार नहीं की जा सकती है। 
  • बेंच ने कहा था कि पिछड़ेपन की एक वजह आर्थिक भी हो सकती है, पर यह एकमात्र वजह नहीं हो सकती है। 
  • अदालत ने यह भी कहा था कि जब तक किसी राज्य की ख़ास परिस्थितयाँ वैसी न हों, आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है।
  • इस फ़ैसले में संविधान के अनुच्छेद 14 का हवाला दिया गया है जिसमें यह कहा गया है कि सरकारी नौकरियों में समान अवसर सबको मिलना चाहिए। 

अनुच्छेद 14 के सेक्शन चार में कहा गया है, "इस अनुच्छेद का कोई प्रावधान सरकार को किसी पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था करने से नहीं रोक सकता, जिसका उचित प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा हो।"

विवाद क्यों?

इस पर विवाद तब शुरू हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में बिहार में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कहा था कि इस अधिकतम सीमा से अधिक आरक्षण देना 'बेईमानी' होगी। 

नरेंद्र मोदी सरकार ने 2018 में संसद से 102वां संविधान संशोधन पारित करवाया। इसके तहत धारा 338 बी, 342 ए, जोड़े गए। इसके तहत संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह सामाजिक व आर्थिक पिछड़े वर्ग की सूची में संशोधन कर सकती है। 

महाराष्ट्र ने सामाजिक व आर्थिक पिछड़ा वर्ग आरक्षण अधिनियम, 2018 पारित कराया। मुंबई हाई कोर्ट ने जून 2019 में दिए एक फ़ैसले में 16 प्रतिशत आरक्षण को खारिज कर दिया था।

supreme court to send indira sahni case to bigger bench? - Satya Hindi
तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के साथ बी. पी. मंडल

क्या थी सामाजिक पृष्ठभूमि?

इसके साथ ही हमें यह भी समझना होगा कि मंडल आयोग की सिफ़ारिशों की क्या पृष्ठभूमि थी। 

मोरारजी देसाई सरकार ने 1 जनवरी, 1979 को बी. पी. मंडल की अगुआई में द्वितीय पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया। प्रथम पिछड़ा आयोग का गठन केंद्र सरकार ने 29 जनवरी 1953 को काका कालेलकर की अगुआई में की थी। आयोग ने 30 मार्च 1955 को अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें 2,399 जातियों की पहचान सामाजिक व आर्थिक पिछड़े के रूप में की गई। 

मंडल आयोग ने दिसंबर, 1980 में अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिसमें पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की गई थी। 

नरसिम्हा राव की सिफ़ारिश

पी. वी. नरसिम्हा राव सरकार ने 1991 में यह व्यवस्था की कि 27 प्रतिशत आरक्षण के अंदर ही आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाए। सरकार ने इसके आलावा सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिये अलग से 10 प्रतिशत आरक्षण की बात कही। इस तरह कुल मिला कर 37 प्रतिशत आरक्षण हो गया। 

इंदिरा साहनी ने इसे ही चुनौती दी थी। 

बार एसोसिएशन की ओर से दायर एक याचिका पर पाँच जजों की बेंच पहले से ही सुनवाई कर रही थी। उसने इस मामले को नौ जजों की बेंच के पास भेज दिया। इस बेंच ने ही वह महत्वपूर्ण फ़ैसला दिया, जिसमें 27 प्रतिशत आरक्षण सीमा को उचित ठहराते हुए अनुच्छेद 16 की धारा 4 का उल्लेख किया था। इस धारा में कहा गया है कि किसी जाति का उचित प्रतिनिधित्व नहीं होने की स्थिति में राज्य उसके लिए आरक्षण की व्यवस्था कर सकता है। 

अब लोगों की निगाहें इस पर टिकी हैं कि सुप्रीम कोर्ट क्या इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेज देगा?

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क़मर वहीद नक़वी
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