विवादास्पद कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट के पैनल की रिपोर्ट चार दिन पहले सार्वजनिक हुई। इसे लेकर बड़ा शोर मचा कि तमाम किसान संगठन कृषि बिलों के पक्ष में थे। मीडिया के एक खास वर्ग ने इस रिपोर्ट का धुआंधार प्रचार किया, डिबेट किए। लेकिन वाकई सच ये नहीं है कि अधिकांश किसान संगठन कृषि बिलों के पक्ष में थे। हकीकत ये है कि उस रिपोर्ट को जनता के सामने तोड़-मरोड़कर पेश किया गया। ...तो फिर सच क्या है, इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट छाप कर सच बता दिया है कि उस रिपोर्ट में और क्या था...रिपोर्ट की जांच से पता चलता है कि जिस राय के जरिए पैनल इस नतीजे पर पहुंचा था, दरअसल, उसके राय मांगने की प्रक्रिया व्यापक रूप से किसानों से दूर थी। वास्तव में, समिति ने कुछ से ही सीधे बातचीत की, या तो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए या उन्हें बैठक में बुलाकर सूचना मांगी।
पैनल ने 306 किसान संगठनों में से सिर्फ 73 संगठनों से राय मांगी। यह महज 24 फीसदी की राय बैठती है। पैनल ने किस आधार पर कैसे कहा कि ज्यादातर किसान संगठन कृषि बिलों के पक्ष में थे। उसे जवाब देना होगा, उसे जवाब देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट पैनल ने यह भी दावा किया था कि अपने पोर्टल पर ऑनलाइन फीडबैक के रूप में प्राप्त 19,207 सुझावों में से दो-तिहाई ने कृषि कानूनों का समर्थन किया। लेकिन रिपोर्ट की छानबीन से पता चलता है कि 19,207 प्रतिक्रियाओं में से केवल 5,451 या 28 प्रतिशत किसानों ने सुझाव दिए थे।इनमें से अधिकतम प्रतिक्रियाएं महाराष्ट्र (2,000-2,500) से थीं, 2,000 राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश से थीं। इन राज्यों में कृषि कानूनों का विरोध भी मामूली हुआ था।
तीन राज्यों, यूपी, आंध्र प्रदेश और हरियाणा से 1,000 से 1,500 प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थीं। पंजाब सहित अन्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए यह आंकड़ा 1,000 से भी कम था, जहां तीन कृषि कानूनों के खिलाफ सबसे अधिक विरोध प्रदर्शन हुए।
पैनल की बैठकों में भाग लेने वाले कुल 142 प्रतिनिधियों में से सिर्फ 78 किसान संगठनों से थे, जबकि 64 उद्योग निकायों और अन्य संगठनों के थे।
पैनल की 92 पन्नों की रिपोर्ट से पता चलता है कि 306 किसान संघों और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) को राय लेने के लिए बुलाया गया था। इस सूची में कृषि कानूनों के विरोध में नेतृत्व करने वाले 41 किसान संघ शामिल थे, जिन्होंने पैनल का बहिष्कार किया और बैठकों में भाग नहीं लिया।
रिपोर्ट के मुताबिक पैनल ने 73 किसान संगठनों के साथ सीधे बातचीत की, या फिर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग पर बात की। इन किसान संगठनों ने 3.83 करोड़ से अधिक किसानों का प्रतिनिधित्व किया।
हालांकि रिपोर्ट में यह तथ्य है कि 4 किसान संगठनों ने, जो 51 लाख किसानों (13.3 फीसदी) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, कानून का समर्थन नहीं किया। 7 किसान संगठन जो 3.6 लाख किसानों (1 फीसदी) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, उन्होंने कुछ सुझावों का समर्थन किया।
रिपोर्ट कहती है कि... 3.3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले 61 किसान संगठनों ने अधिनियमों का पूरा समर्थन किया। यह कुल किसानों का 85.7 फीसदी है।
हालांकि, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में किसानों की संख्या 9 करोड़ से 15 करोड़ के बीच है। पीएम-किसान के तहत भी लाभार्थियों की संख्या 10.09 करोड़ है। इसलिए 3.3 करोड़ का आंकड़ा कुल किसानों का लगभग 30 फीसदी या उससे कम है।
रिपोर्ट के मुताबिक पैनल ने 21 जनवरी से 23 फरवरी, 2021 के बीच 11 बैठकें की, जिसमें 142 लोगों ने भाग लिया, जिनमें से 78 किसान संघों और एफपीओ से, 18 प्रत्येक उद्योग निकायों और राज्य सरकारों से, 7 पेशेवर या शिक्षाविद थे, 10 निजी बाजारों और राज्य कृषि विपणन बोर्डों और 11 सरकारी अधिकारियों और खरीद एजेंसियों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी, 2021 को तीनों कानूनों पर रोक लगाते हुए कृषि कानूनों और सरकार के विचारों से संबंधित किसानों की शिकायतों को सुनने और बनाने के उद्देश्य से चार सदस्यीय पैनल का गठन किया था। शीर्ष अदालत ने यह कदम सरकार और किसान संघों के बीच टकराव को सुलझाने में विफल रहने के बाद उठाया था। पैनल की घोषणा के दो दिन बाद, सदस्यों में से एक भूपिंदर सिंह मान ने खुद को अलग कर लिया था।
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