कोरोना से होने वाली मौतों को कम कर दिखाने की कोशिश में लगे लोगों को एक ज़ोरदार झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद अहम आदेश में कहा है कि कोरोना से होने वाली मौतों के मामले में सर्टिफ़िकेट पर यह स्पष्ट रूप से लिखा जाना चाहिए।
इतना ही नहीं, सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा है कि यदि कोरोना के कारण स्वास्थ्य में कोई गड़बड़ी होती है और उससे रोगी की मौत हो जाती है, उस मामले में भी कोरोना को ही मौत का कारण माना जाएगा और इसे मृत्यु प्रमाण पत्र पर लिखना होगा।
अदालत ने यह भी कहा है कि कोरोना पॉजिटिव टेस्ट होने के दो-तीन महीने के अंदर मौत होने पर भी उसे कोरोना से मौत ही माना जाना चाहिए और मृत्यु प्रमाण पत्र पर यह लिखा जाना चाहिए।
अहम आदेश
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और दूसरे संबधित अधिकारियों से कहा है कि वे मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने से जुड़े दिशा-निर्देश को आसान बनाएँ ताकि उस प्रमाणपत्र पर मृत्यु का कारण कोरोना लिखने में दिक्क़त न हो।
अब तक सरकार कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या कम कर बताती रही है और कोरोना के बाद हुए कॉमप्लीकेशन से हुई मौतों को कोरोना से मौत नहीं मानती रही है। मसलन, यदि कोरोना से संक्रमित रोगी को डायबिटीज़ भी हो तो सरकार उसकी मौत का कारण कोरोना नहीं, बल्कि डाइबिटीज़ ही मानती है।
बड़े पैमाने पर कोरोना से प्रभावित लोगों को न्यूमोनिया, हार्ट अटैक हुआ और उनकी मौत हो गई। ऐसे मामलों में मौत का कारण कोरोना नहीं माना गया। इससे कोरोना से मरने वालों की संख्या काफी कम कर दिखाई गई। इससे सरकार को इन लोगों के परिजनों को मुआवजा भी नहीं देना होगा। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद इस तरह का बहाना नहीं चलेगा।
आदेश में कहा गया है, सभी अधिकारियों को चाहिए कि वे सही और उचित मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करें, जिनमें मृत्यु का सही कारण लिखा हो ताकि यदि भविष्य में कोरोना से मरने वालों के लिए स्कीम की घोषणा हो तो कोरोना से मरने वालों के परिजनों को उसका लाभ मिल सके।
याचिकाएँ
जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एम. आर. शाह की बेंच ने दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद यह आदेश दिया है। इन यचिकाओं में कहा गया था कि अधिकारी जो मृत्यु प्रमाण पत्र देते हैं, कोरोना से मौत होने पर भी उन मृत्यु प्रमाण पत्रों पर मौत का कारण कोरोना नहीं लिखा होता है। इसका नतीजा यह होता है कि ऐसे लोगों के परिजनों को कोरोना से होने वाली मौतों पर दी जाने वाली रियायतें नहीं मिलती हैं।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफ़नामे में कहा है कि कोरोना डायगनोज़ होने पर यानी कोरोना का पता लगने के बाद मृत्यु होने पर उसका कारण कोरोना ही लिखा जाता है, भले ही उसके साथ दूसरे रोग भी उस व्यक्ति को हों। ज़हर या दुर्घटना से होने वाली मौतें इसका अपवाद हैं।
इसके बाद बेंच ने कहा,
“
हमारा मानना है कि मृत्यु प्रमाण पत्र देने की प्रक्रिया जितनी सरल हो उतना ही अच्छा है। इसलिए यह ज़रूरी है कि केंद्र सरकार या संबंधित अधिकारी ये दिशा -निर्देश जारी करें कि पूरी प्रक्रिया को आसान बनाया जाए और यदि कोरोना से मौत हुई हो तो मृत्यु प्रमाण पत्र पर साफ लिखा हो कि कोरोना से मृत्यु हुई है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अंश
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि यह व्यवस्था भी होनी चाहिए कि यदि किसी को यह शिकायत हो कि उसे ग़लत मृत्यु प्रमाण पत्र दिया गया है तो उसकी शिकायत का निपटारा हो।
मुआवजा पर क्या कहना है सरकार का?
याद दिला दें कि इसके पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह कोरोना से मारे गए सभी लोगों के लिए 4-4 लाख रुपये का मुआवजा नहीं दे सकती क्योंकि इससे पूरी आपात राहत निधि खाली हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर यह बात कही थी। सरकार का यह हलफनामा उस याचिका के जवाब में था जिसमें न्यूनतम राहत और कोरोना से मारे गए लोगों को मुआवजा या अनुग्रह राशि देने की माँग की गई थी।
सरकार के आधिकारिक आँकड़ों के मुताबिक़, 9 जून तक 3 लाख 86 हज़ार 713 लोगों की मौत कोरोना संक्रमण के कारण हुई है। इसका मतलब है कि ऐसे किसी राहत पैकेज की घोषणा होने पर इन मृतकों के परिवार वाले इसके लाभार्थी होंगे।
सरकार का तर्क
सरकार ने कहा है कि कोविड-19 के पीड़ितों को 4 लाख रुपये का मुआवजा नहीं दिया जा सकता है क्योंकि आपदा प्रबंधन क़ानून में केवल भूकंप, बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं पर ही मुआवजे का प्रावधान है। इसने यह भी कहा है कि यदि इतनी रक़म दी जाती है तो आपदा राहत निधि के रुपये ख़त्म हो जाएँगे।
आपदा प्रबंधन से जुड़े क़ानून लागू किए गए और उसके मुताबिक काम किया गया, पर सरकार मुआवजा देते समय कहती है कि यह आपदा नहीं है।
अपनी राय बतायें