सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति का मामला काफ़ी बड़ा होता जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस संजय कृष्ण कौल ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई समेत कॉलिजियम को एक पत्र लिखकर अपनी आपत्ति दर्ज़ कराई है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया की ख़बर के मुताबिक़, कौल की आपत्ति विशेष तौर पर राजस्थान हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग की जगह दूसरे जज की नियुक्ति का प्रस्ताव भेजने को लेकर है।
कौल ने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि जिस क्षेत्र से नंदराजोग के नाम पर विचार हुआ था, वह उस क्षेत्र के वरिष्ठतम जज हैं और अगर उनकी अनदेखी की गई तो इससे बेहद ख़राब संदेश जाएगा। अख़बार के मुताबिक़, जस्टिस संजय कौल ने यह भी लिखा है कि नंदराजोग अत्यंत योग्य जज हैं।
कौल ने साफ़ किया है कि जस्टिस संजीव खन्ना को लेकर उनके मन में कोई दुराग्रह नहीं है और संजीव खन्ना सुप्रीम कोर्ट का जज बनने के लिए अपने मौक़े का इंतजार कर सकते हैं। हम आपको बता दें कि कल इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने यह छापी थी कि 12 दिसंबर को हुई कॉलिजियम की बैठक में जस्टिस प्रदीप नंदराजोग और दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन को सुप्रीम कोर्ट में जज नियुक्त करने का प्रस्ताव किया गया था।
लेकिन बाद में जनवरी के महीने में कॉलिजियम की दूसरी बैठक में जस्टिस नंदराजोग और जस्टिस मेनन की जगह कर्नाटक हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दिनेश माहेश्वरी और दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस संजीव खन्ना को जज नियुक्त करने का प्रस्ताव किया गया।
असहज महसूस कर रहे जज
अख़बार ने यह भी लिखा है कि कॉलिजियम के इस क़दम से सुप्रीम कोर्ट के कुछ जज काफ़ी असहज महसूस कर रहे हैं। जस्टिस कौल की चिट्ठी को इसी रोशनी में देखा जा रहा है। जस्टिस कौल की तरह ही दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज कैलाश गंभीर ने भी राष्ट्रपति को चिट्ठी लिख कर कहा था कि कॉलिजियम का यह फ़ैसला भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में काला अध्याय साबित होगा। इसलिए महामहिम राष्ट्रपति को इस मामले में दख़ल देना चाहिए और इस फ़ैसले को अपनी संस्तुति नहीं देनी चाहिए।
फ़ैसले का दिया हवाला
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में जस्टिस नंदराजोग का नाम क्यों बदला गया, इस बारे में जानकारी दी गई है। अख़बार के मुताबिक़, जनवरी के महीने में हुई कॉलिजियम की बैठक में जस्टिस नंदराजोग के एक फ़ैसले का हवाला दिया गया। यह फ़ैसला एफ़ हॉफ़मैन लॉ रोस लिमिटेड बनाम सिप्ला लिमिटेड से जुड़े एक मामले में सुनाया गया था।
इस फ़ैसले में 35 पैराग्राफ़ 2013 में छपे एक लेख से उठाए गए थे। बाद में जस्टिस नंदराजोग और बेंच की दूसरी सदस्य जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने अपनी ग़लती मानी और लेख के लेखकों से क्षमा माँगी। जस्टिस नंदराजोग का कहना था कि ये पैराग्राफ़ एक क्लर्क की ग़लती से फ़ैसले में जुड़ गए थे। अब यह तर्क दिया जा रहा है कि कॉलिजियम की बैठक में इस वजह से फ़ैसला बदला गया।
जस्टिस कौल की चिट्ठी से साफ़ है कि कॉलिजियम को इस पूरे मामले पर अपना पक्ष रखना चाहिए और जल्द से जल्द इस विवाद को ख़त्म करने की कोशिश करनी चाहिए।
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