अरुण जेटली कैंसर से पीड़ित हैं और इलाज के लिए अमरीका गए हैं। वे अंतरिम बजट पेश होने तक शायद ही लौट पाएँ क्योंकि इसे लोकसभा में 1 फ़रवरी को इसे पेश किया जाना है। वित्त मंत्री ने ख़ुद ही आधिकारिक तौर पर यह जानकारी दी है कि वह दो हफ़्ते के लिए निजी छुट्टी पर न्यूयॉर्क जा रहे हैं।
बताया जा रहा है कि वित्त मंत्री जेटली को जाँघ में कैंसर वाला एक ट्यूमर है, जिसका इलाज जल्द से जल्द किया जाना ज़रूरी है। इसकी जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि क्योंकि हाल ही में उनकी किडनी ट्रांसप्लांट की गई थी इसलिए यह सर्जरी काफ़ी मुश्किल होगी। कैंसर के इलाज के लिए होने वाली कीमोथीरैपी से किडनी पर ज़ोर पड़ेगा जो ख़ुद ही शरीर से तालमेल बिठाने की प्रक्रिया में है।
ऐसे में सर्जरी की प्रक्रिया में काफ़ी समय लग सकता है और वित्त मंत्री बजट के लिए उपलब्ध नहीं हो सकते हैं। इस स्थिति में फ़िलहाल यह साफ़ नहीं है कि जेटली की अनुपस्थिति में अंतरिम बजट कौन पेश करेगा। पिछले साल जब वह किडनी ट्रांसप्लांट के लिए छुट्टी पर थे तब रेलवे और कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाला था।
अंतरिम बजट क्यों है अहम?
लोकसभा चुनाव से पहले पेश किए जाने वाला यह अंतरिम बजट मोदी सरकार के लिए काफ़ी अहम माना जा रहा है। इसममें कई लोकलुभावन और दूसरे महत्वपूर्ण निर्णय लिए जा सकते हैं। इसमें किसानों के लिए कई योजनाओं की घोषणाएँ भी शामिल हैं।
मध्यवर्ग के लिए भी राहत की घोषणा की जा सकती है। भारतीय उद्योग परिसंघ ने वित्त मंत्रालय को सौंपी अपनी बजट पूर्व सिफ़ारिशों में कहा है कि आयकर छूट सीमा को मौजूदा ढाई लाख रुपये से बढ़ाकर पाँच लाख रुपये कर दिया जाए। व्यक्तिगत आयकर के सबसे ऊँचे स्लैब को 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत करने, चिकित्सा ख़र्च और परिवहन भत्ते पर आयकर में छूट देने और आयकर की दर में कमी करने का आग्रह किया है।
कैंसर बड़ा ख़तरा, पर बचाव के प्रयास नाकाफ़ी
जेटली से पहले भी राजनीतिक दलों के कई नेता कैंसर का शिकार हो चुके हैं। गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर पैनक्रियटिक कैंसर और सोनिया गाँधी सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित हैं। दो महीले पहले ही केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार का इस बीमारी से निधन हो गया था।
देश में पिछले 26 साल में कैंसर के मरीज क़रीब दुगुने हो गए हैं। 2016 के आँकड़ों के अनुसार देश में क़रील 14.5 लाख लोग कैंसर से पीड़ित थे। दो साल में यह संख्या कहीं ज़्यादा हो गई होगी। कैंसर देश में लोगों की मौत की दूसरी सबसे बड़ी वजह है।
इसके बावजूद कैंसर के प्रति सरकार सचेत नहीं है। कचरा निस्तारण से लेकर जल और वायु प्रदूषण तक से निपटने में सरकार विफल रही है। शहरों में अक्सर पीएम 2.5 ख़तरनाक स्तर पर पहुँच जाती है यानी हवा ज़हरीली हो जाती है। यह हमारे फेफड़ों में कैंसर पैदा कर रही है। इसकी चपेट में आम लोग से लेकर ख़ास लोग सभी आ रहे हैं। इसके बावजूद सरकार कोई ठोस नीति तक नहीं बना पा रही है।
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